बंदिशों की दहलीज लांघ सिलाई-कढ़ाई कर रिंकी घर चलाने के साथ कर्ज लेकर कर रहीं पशुपालन Patna News
पटना के बख्तियारपुर प्रखंड की मंझौली पंचायत में रहने वाली रिंकी लोगों के लिए मिसाल बन गई हैं। वे मेहनत करके अपने परिवार को पाल रही हैं साथ ही अन्य लोगों को भी सीख दे रही हैं।
श्रवण कुमार, पटना। हसरत पूरी करने की छटपटाहट में पूरी जिंदगी को तपा दिया। सुकून तब मिला तब बेटे का दाखिला आइटीआइ में हुआ। उम्मीद की एक किरण जगी है। मजबूरी की जिस दहलीज में कैद होकर रिंकी ने खुद के पढऩे की हसरत को दफन कर दिया था, उसे लांघते ही खुशियों ने उसका दामन थाम लिया। घर-परिवार तो संवरा ही, बेटे के आइटीआइ में दाखिले के बाद अब सपनों में रंग भरने लगे हैं।
राजधानी से महज कुछ दूर बख्तियारपुर प्रखंड की मंझौली पंचायत में रिंकी जब ब्याह कर आई थी, तब उसकी उम्र खेलने-पढऩे की थी। खेलने के अरमान और पढऩे की हसरत पर घूंघट डालकर वह ससुराल आई थी। पढऩे की चाहत बचपन से थी। लेकिन, मां-बाप की गरीबी आड़े आई। ससुराल आई तो यहां भी हसरत का रास्ता गरीबी ने रोका। बावजूद इसके किसी तरह इंटर तक की पढ़ाई रिंकी ने पूरी कर ली। जब रिंकी ने गरीबी से लडऩे की ठानी तो पति सूरज साव ने समाज और परंपरा का हवाला देकर घर से निकलने पर रोक लगाई। सोच-समझकर और पति को किसी तरह समझाकर रिंकी ने मजबूरी की दहलीज को लांघ डाला।
उसकी जीवटता और दृढ़ इच्छाशक्ति को देखकर चार साल पूर्व लक्ष्मी जीविका स्वयं सहायता समूह एवं प्रकाश ग्राम संगठन साथ आया। 12 हजार रुपये का कर्ज लेकर पहले रिंकी ने सिलाई मशीन खरीदी। सिलाई-कढ़ाई कर घर चलाने में आर्थिक सहयोग देने लगी। फिर 20 हजार का कर्ज लेकर गाय खरीदी। घर की आर्थिक स्थिति थोड़ी सुधरी हुई, तब रिंकी ने बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देना शुरू किया।
बड़े बेटे का दाखिला आइटीआइ में कराने के लिए पैसे की आवश्यकता पड़ी, तब फिर समूह से 10 हजार रुपये का कर्ज लिया। आज रिंकी अपने बच्चों में अपने सपने को पूरा होते देख रही है। अपनी मेहनत से संपन्नता की राह पर है। जीविका पटना की संचार प्रबंधक अर्चना कुमारी ने बताया कि रिंकी की तरह की हर वैसी महिला, जो अपने सपनों को पूरा करना चाहती हैं, उनके सहयोग के लिए हम खड़े हैं।