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पटना जंक्शन स्थित महावीर मंदिर की पहचान, मिठाई और प्रसाद का सगम नैवेद्यम

अगर महावीर मदिर पटना की पहचान है, तो नैवेद्यम महावीर मदिर की। घी, बेसन, केसर, मेवे से बने प्रसाद को नैवेद्यम कहते है। इसका स्वाद बहुत ही अच्छा है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 26 May 2018 03:04 PM (IST)Updated: Sat, 26 May 2018 03:54 PM (IST)
पटना जंक्शन स्थित महावीर मंदिर की पहचान, मिठाई और प्रसाद का सगम नैवेद्यम

पटना [नीरज कुमार]। अगर महावीर मदिर पटना की पहचान है, तो नैवेद्यम महावीर मदिर की। घी, बेसन, केसर और मेवे से बने प्रसाद 'नैवेद्यम' का स्वाद जिसने एक बार लिया, उसे वह ताउम्र याद रखता है। नैवेद्यम और महावीर मदिर का साथ 25 साल का हो चुका है।

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महावीर मदिर में चढ़ाया जाने वाला प्रसाद नैवेद्यम लोगों की आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है। इसके स्वाद, शुद्धता और पवित्रता का हर व्यक्ति कायल है। पिछले 25 वर्षो से इसकी प्रसिद्धि लगातार बढ़ती जा रही है। भक्तजन महावीर मदिर में प्रसाद के रूप में नैवेद्यम चढ़ाने के बाद इसे मिठाई के रूप में घरों में रखते हैं। कहते हैं, सभी मिठाइयों का स्वाद एक तरफ और भगवान को भोग लगाने के बाद नैवेद्यम का स्वाद एक तरफ।

तिरुपति बालाजी से पटना आया प्रसाद

महावीर मदिर न्यास समिति के सचिव आचार्य किशोर कुणाल बताते हैं कि महावीर मदिर में नैवेद्यम की शुरुआत वर्ष 1993 में हुई। वह कहते हैं, 93 में मैं तिरुपति मदिर दर्शन करने के लिए गया था। उस समय गृह मत्रालय के अधीन अयोध्या में ओएसडी था। तिरुपति में नैवेद्यम चढ़ाकर प्रसाद ग्रहण किया तो उसका स्वाद काफी पसद आया। उसी समय निर्णय लिया कि पटना जंक्शन स्थित महावीर मदिर में भी इसे प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाएगा। इसके कुछ ही दिनों बाद यहा नैवेद्यम का प्रसाद चढ़ाया जाने लगा।

10 फीसद राशि मिलती है कारीगरों को

महावीर मदिर न्यास समिति नैवेद्यम की कुल बिक्री की दस फीसद राशि प्रसाद बनाने वाले कारीगरों को देती है। यही कारण है कि तिरुपति से आकर कारीगर पटना में काम करने को तैयार हैं। अब तो कारीगरों की दूसरी पीढ़ी भी काम करने आने लगी है।

मुजफ्फरपुर भी जाता है नैवेद्यम

पटना के महावीर मदिर में बनने वाला नैवेद्यम राजधानी के विभिन्न मदिरों में चढ़ाये जाने के साथ-साथ मुजफ्फरपुर गरीबनाथ मदिर में भी चढ़ाया जाता है। राजधानी के बेलीरोड महावीर मदिर एव जल्ला महावीर मदिर में भी नैवेद्यम का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

प्रसाद के रूप में ही ग्रहण की परंपरा

नैवेद्यम के हर पैकेट पर लिखा रहता है- 'नैवेद्यम प्रसाद है, इसको बिना भगवान को चढ़ाये खाना मना है।' ऐसे में महावीर मदिर या अन्य मदिरों से नैवेद्यम खरीदने के बाद भक्तजन पहले इसे प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं। इसके बाद ही प्रसाद के रूप में इसे ग्रहण किया जाता है।

हनुमान मंदिर के अलावा पंचरूपी हनुमान मंदिर बेली रोड, बांस घाट काली मंदिर आदि शहर के प्रमुख मंदिरो में यहां से नैवेद्यम को अन्य जगहों पर भेजा जाता है। मान्यता है कि भगवान को प्रसाद भोग लगाने के बाद ही श्रद्धालु इसका ग्रहण करते है। प्रसाद के निर्माण करने वाले सारे कारीगर दूसरे राज्यों से आकर भगवान की सेवा प्रसाद बनाने को लेकर कर रहे है। प्रसाद बनाने में सभी कारीगर शुद्धता के साथ-साथ पूरी निष्ठा से बनाते है। हर मौसम में शुद्धता और सफाई का ध्यान रखना इन कारीगरों की पहली प्राथमिकता होती है।

ऐसे बनता है आपका नैवेद्यम

सबसे पहले शुद्ध बेसन से बुंदिया तैयार की जाती है। इसके बाद चीनी की चासनी में डालकर उसे मिलाया जाता है। मिलाने के क्रम में ही बुंदिया के साथ-साथ काजू, किशमिश, इलाइची और केसर मिलाया जाता है। चासनी में बुंदिया का मिश्रण लगभग दो घटे तक होता है। इसके बाद मिश्रण को लड्ड् बाधने वाले प्लेटफॉर्म पर रख दिया जाता है। यहा पर एक साथ 15 से 20 कारीगर खड़े होकर लड्डू बाधते हैं। यहा बैठकर लड्डू बनाने की परंपरा नहीं है। लड्डू बाधने के बाद उसे 250 ग्राम, 500 ग्राम और एक किलो के पैकेट में रखा जाता है। फिर उसे महावीर मदिर भेज दिया जाता है। महावीर मदिर से ही नैवेद्यम कई अन्य मदिरों को भेजा जाता है, लेकिन सबसे ज्यादा खपत महावीर मदिर में ही होती है।

कर्नाटक की देसी गायों के घी से होता है निर्माण

आचार्य किशोर कुणाल का कहना है कि शुरू में महावीर मदिर में नैवेद्यम पटना डेयरी प्रोजेक्ट के घी से तैयार किया जाता था, लेकिन तिरुपति जैसा स्वाद नहीं आ पाता था। इसके बाद पता किया गया कि आखिर तिरुपति के नैवेद्यम का स्वाद इतना अच्छा क्यों होता है तो पता चला कि वहा पर कर्नाटक की देसी गायों के घी से इसे तैयार किया जाता है। इसके बाद महावीर मदिर न्यास समिति ने कर्नाटक मिल्क फेडरेशन से सपर्क किया। वहा पर नदनी के नाम से कर्नाटक मिल्क फेडरेशन घी बेचता है। कर्नाटक मिल्क फेडरेशन से बातचीत की गई तो वह तिरुपति मदिर को दिए जाने वाले दर पर ही महावीर मदिर को भी घी देने को तैयार हो गया। यह सस्ता भी पड़ रहा था। यहा का घी 470 रुपये किलो पड़ रहा था, जबकि नदनी घी की कीमत प्रतिकिलो 380 रुपये आती है। महावीर मदिर में वर्तमान में नैवेद्यम 250 रुपये प्रति किलो बेचा जा रहा है।

बिक्री में हुए लाभ से कैंसर मरीजों को मिलता अनुदान

महावीर मदिर द्वारा नैवेद्यम की बिक्री करने से जो लाभ प्राप्त होता है, उससे महावीर कैंसर सस्थान में इलाज कराने वाले गरीब मरीजों की आर्थिक मदद की जाती है। कैंसर के गरीब मरीजों को मदिर की ओर से 10 से 15 हजार रुपये की मदद की जाती है। 18 वर्ष से कम उम्र के सभी मरीजों को 15,000 रुपये अनुदान दिया जाता है। इसके अलावा सभी मरीजों को मुफ्त में भोजन कराया जाता है। प्रतिदिन लगभग 1500 लोग भोजन करते हैं। मरीजों के परिजनों को भी अनुदानित दर पर भोजन दिया जाता है। कैंसर मरीजों को मात्र 100 रुपये प्रति यूनिट खून मुहैया कराया जाता है।

दो बजे रात से कारीगर शुरू कर देते हैं प्रसाद बनना

नैवेद्यम को तिरुपति के ब्राह्मण पूरी पवित्रता एव शुद्धता के साथ बनाते हैं। इसके लिए राजधानी के बुद्ध मार्ग में एक कारखाना तैयार किया गया है। यहा पर प्रतिदिन 35 ब्राह्मणों द्वारा प्रसाद तैयार किया जाता है। नैवेद्यम बनाने वाले तिरुपति के कारीगर शेषाद्री का कहना है कि प्रसाद बनाने से पहले सभी कारीगर रात दो बजे से ही जुट जाते हैं। सभी स्नान के बाद साफ किये हुए कपड़ों को धारण करते हैं।


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