केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का बड़ा बयान- देश को आजाद न्यायपालिका की जरूरत
केंद्रीय कानून मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा नेशनल जूडिसियल रिफोर्म्स कमीशन बनाने संबंधी कानून को निरस्त किए जाने को दुखद बताया।
पटना [राज्य ब्यूरो]। केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि देश को चलाने के आजाद न्यायपालिका की जरूरत है। देश को एक से एक निष्पक्ष जज हैं और उनपर हमें गर्व है। केंद्र सरकार का न्यायपालिका के प्रति पूरा सम्मान है, पर वह यह भी मानते हैं कि न्यायपालिका को शासन चलाने और कानून बनाने का अधिकार नहीं है। यह अधिकार पांच वर्षों के लिए चुनी गई सरकार को ही है। राष्ट्रमंडल संसदीय सम्मेलन में 'विधायिका और न्यायपालिका : लोकतंत्र के दो महत्वपूर्ण स्तंभ' विषय पर आयोजित चर्चा में केंद्रीय कानून मंत्री ने कहा कि शासन चलाने का अधिकार जनता के प्रति सीधे तौर पर उत्तरदायी लोगों को है, जिन्हें पांच सालों के बाद जनता बदल भी सकती है।
उन्होंने कहा सदन को कानून बनाने का अधिकार है, तो न्यायपालिका इसे परिभाषित करने का अधिकार संविधान ने दिया है। उसे यह देखने का अधिकार है कि सदन ऐसा कोई कानून तो नहीं बना रहा जो मौलिक अधिकारों का हनन कर रहा हो। अगर कोई कानून आर्बिटे्ररी है, तो उसे खारिज करने का भी कोर्ट को अधिकार है।
जूडिसियल रिफोर्म्स कमीशन पर पीछे हटना दुखद
केंद्रीय कानून मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा नेशनल जूडिसियल रिफोर्म्स कमीशन बनाने संबंधी कानून को निरस्त किए जाने को दुखद बताते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने न्यायपालिका का सम्मान करते हुए इसे स्वीकार कर लिया। प्रसाद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने केवल इस आधार पर इस कानून को निरस्त किया कि इस आयोग में केंद्रीय कानून मंत्री के सदस्य रहते निष्पक्ष तरीके से जजों की नियुक्ति नहीं हो सकती।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, तीनों सेनाओं के प्रमुख, सीएजी, सीवीसी जैसे कई उच्च संवैधानिक पदों पर नियुक्ति में प्रधानमंत्री और सरकार की निष्पक्षता पर तो कोई सवाल नहीं उठाता है, फिर जजों की नियुक्ति पर निष्पक्षता पर सवाल उठाने का औचित्य समझ में नहीं आता।
कानून मंत्री ने माना कि न्यायपालिका में सब ठीक नहीं
कानून मंत्री ने कहा कि न्यायपालिका में सब कुछ ठीक ही रहता तो सुप्रीम कोर्ट को एक जज को जेल भेजने और एक रिटायर्ड जज को कहना क्यों पड़ा कि माफी नहीं मांगी तो जेल भेजेंगे। वैसे भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती इसी में है कि विधायिका और न्यायपालिका परस्पर सामंजस्य और समन्वय से काम करें।
विधायिका और न्यायपालिका कर रहे अपना-अपना काम
रविशंकर प्रसाद ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 221 और 222 से विधायिका और न्यायपालिका के कामों की स्वायत्तता मिली है। यह एक दूसरे के काम में हस्तक्षेप को रोकता है। न्यायपालिका का काम है कि वह यह देखे कि जो कानून बने हैं वह संविधान के बुनियादी ढांचे और उसकी भावना के प्रतिकूल तो नहीं है। विधायिका तब तक इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकती जब तक राष्ट्रपति से मामला रेफर न हो। उसी तरह अनुच्छेद 222 संसद और विधायिका को सदन चलाने और कानून बनाने अधिकार देती है। कोर्ट उसके इस काम में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।