सीनेट हॉल में दिनकर ने किया था 'परशुराम की प्रतीक्षा' का काव्यपाठ
देश के साहित्यकारों की समृद्ध परंपरा में रामधारी सिंह दिनकर शीर्ष पर थे
प्रभात रंजन, पटना। बिहार से जुड़े साहित्यकारों की समृद्ध परंपरा में रामधारी सिंह दिनकर शीर्ष पर चमकते नक्षत्रों में शुमार हैं। 23 सितंबर 1908 को बेगूसराय के सिमरिया में जन्मे दिनकर का पटना शहर से गहरा लगाव रहा। 'परशुराम की प्रतीक्षा' का पहला काव्य पाठ दिनकर ने इसके प्रकाशन से पहले ही पटना विश्वविद्यालय के सीनेट हॉल में किया था। वीर रस की कविता को सुनकर छात्रों और शिक्षकों ने खूब तालियां बजाई थीं। मैट्रिक के बाद उनकी पढ़ाई भी पटना में ही हुई और पहली नौकरी भी उन्होंने इसी शहर में की।
पटना रजिस्ट्री ऑफिस में बने सब रजिस्ट्रार :
राष्ट्रकवि के पोते अरविंद बताते हैं कि मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिनकर गांव से पटना आ गए थे। 1932 में उन्होंने पटना विवि से इतिहास में ऑनर्स की उपाधि प्राप्त की। 1934 में पटना निबंधन कार्यालय में सब रजिस्ट्रार के पद से उन्होंने नौकरी की शुरुआत की थी। कहा जाता है कि पटना के निबंधन कार्यालय में वह पहले भारतीय रजिस्ट्रार थे। उन्होंने यहां 1945 तक नौकरी की। इसी नौकरी के दौरान उन्होंने हुंकार, रसवंती आदि रचनाएं लिखीं। अंग्रेजी शासन के दौरान नौकरी करते हुए उन्हें चार वर्ष में 22 बार तबादले का सामना करना पड़ा। इससे तंग आकर 1945 में उन्होंने नौकरी छोड़ने का फैसला किया।
चीनी आक्रमण से आहत होकर लिखी थी कविता :
बिहार विधान परिषद के सदस्य और पटना विश्वविद्यालय में हिदी के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. प्रो. रामवचन राय बताते हैं कि देश पर चीनी आक्रमण से आहत होकर दिनकर 1962 में 'परशुराम की प्रतिक्षा' लिख रहे थे। तब वे आर्यकुमार रोड में रहा करते थे। दिनकर से मिलने प्रो. राय उनके आवास पर चले गए थे। इसी मुलाकात में पटना विवि के सीनेट हॉल में काव्य पाठ की योजना बनी। बाद में राष्ट्रकवि ने सीनेट हॉल में 'परशुराम की प्रतीक्षा' का काव्य पाठ किया। तब यह किताब छपकर नहीं आई थी।
नेहरू और जेपी से रहा लगाव : जवाहर लाल नेहरू को दिनकर की वीर रस की कविताएं बहुत पसंद थीं। नेहरू की प्रेरणा से वे राजनीति में आए। 1952 में वे राज्यसभा सदस्य बने। 1964 तक तीन बार लगातार इस सदन के सदस्य रहे। उनका जेपी से भी गहरा संबंध रहा। जेपी के हजारीबाग जेल से छूटने के बाद उन्होंने 1942 में गांधी मैदान में कविता पाठ किया था।
रेणु और दिनकर के बीच था अटूट प्रेम
फणीश्वर नाथ रेणु और दिनकर में काफी स्नेह था। रामवचन राय बताते हैं कि रेणु और दिनकर एक-दूसरे के प्राण थे। जब रेणु दिनकर के घर जाते तो उनके लिए जलेबी लेकर जाते थे, क्योंकि दिनकर को जलेबी खूब पसंद थी। वही दिनकर जब रेणु के घर जाते तो उनके लिए रसगुल्ला लेकर जाते थे।