Ram Vilas Paswan Death News: राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी रहे पासवान, अब यादों में ही 'जे है से कि' का तकिया कलाम
Ram Vilas Paswan Death News राम विलास पासवान नहीं रहे लेकिन उनकी यादें साथ रहेंगी। देश की राजनीति में आधी सदी से ज्यादा समय तक चमकते रहे बिहार के इस ध्रुवतारे का तकिया कलाम जे है से कि याद आएगा।
पटना, अश्विनी। Ram Vilas Paswan Death News: 'जे है से कि...।' बात-बात में यह तकिया कलाम जनमानस की यादों में ही रहेगा, क्योंकि खिलखिलाते हुए 'जे है से कि' कहने वाले रामविलास पासवान अब दुनिया में नहीं हैं। राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी रहे रामविलास की वे सभाएं भी, जहां बहुत ही विश्वास के साथ वे प्रत्याशियों को जनता के बीच जीत की माला पहना देते थे। संयोग भी ऐसा कि वह प्रत्याशी जीत जाता था। जिन्हें आगे चलकर राजनीति का मौसम विज्ञानी कहा गया, पूर्वानुमान की यह क्षमता जैसे उनमें बहुत पहले विकसित हो चुकी हो।
वह 1989 का दौर था, जब बिहार में राजनीति करवट ले रही थी। 1990 में बिहार विधानसभा का चुनाव था। लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान, शरद यादव सरीखे नेता एक मंच पर। इसी साल की चुनावी सभाओं में रामविलास ने सोशल इंजीनियरिंग की एक अलग ही परिभाषा गढ़ी। यह जातिगत व्यवस्था पर चोट थी। मंच से उनका सवाल और तालियां पीटकर उनका समर्थन करता वह तबका, जिसे उनमें बदलाव लाने वाले एक महानायक की छवि दिख रही हो।
सामाजिक रिश्तों को दिया एक नया प्लेटफॉर्म
उनकी सियासत का यह अंदाज सामाजिक मानसिकता में परिवर्तन का एक संदेश था। उन्होंने बड़े करीने से सामाजिक रिश्तों को एक नया प्लेटफॉर्म दिया। इसे तब भरपूर समर्थन मिला था। मंच पर आते, भाषण देते और फिर पूछते-इन सबको माला पहना दें न? भीड़ से शोर उठता-हां, और सभी के गले में माला डालकर विजय की घोषणा भी। परिणाम भी इससे इतर नहीं होता।
वक्त के साथ नए-नए मोड़ से गुजरी सियासत
वक्त के साथ राजनीति भी बदलती रही, व्यवस्था के साथ लोगों की मानसिकता भी और इस बदलाव के साथ रामविलास की सियासत भी नए-नए मोड़ से गुजरती रही। जिस हाजीपुर ने उन्हें सिर-आंखों पर बिठाया, आगे चलकर उन्हें वहां से पराजय भी मिली, लेकिन अगली ही बार यहां की जनता ने उनमें फिर अपार विश्वास भी जताया।
नई पीढ़ी के लिए तलाश रहे थे बदलाव के मार्ग
सामाजिक बदलाव के वाहक बने रामविलास अब आने वाली पीढि़यों के लिए वह मार्ग तलाश जा रहे थे, जो आज के प्रतियोगी दौर में उन्हें आगे ले जा सके। केंद्र में दूरसंचार मंत्री रहते हुए उन्होंने अपने इस सपने को अमलीजामा भी पहनाया। हाजीपुर को तो कई सौगात मिली। रेल मंत्री के रूप में भी बिहार को कई तोहफे दिए।
देश की राजनीति के केंद्र में रहा बिहार का यह ध्रुवतारा
एक खासियत यह कि चाहे वह कितना ही सामान्य व्यक्ति क्यों न हो, रामविलास पासवान को वह नाम और चेहरा याद रहता था। नजर पड़ते ही नाम के साथ पुकारना। किसी ने कोई कागज थमा दिया तो पॉकेट में रख लेना। वह काम हो जाता था, इसलिए लोगों का उनमें भरोसा भी था कि उन्होंने कागज ले लिया तो उसकी समस्या भी दूर हो जाएगी। देश की राजनीति में भी हमेशा केंद्र में रहा बिहार का यह ध्रुवतारा अब यादों में ही चमकता रहेगा।