रैली का सच : स्वाभिमान व परिवर्तन से जुड़ी प्रतिष्ठा
पटना में 30 अगस्त की स्वाभिमान रैली और भागलपुर में एक सितंबर की परिवर्तन रैली दोनों गठबंधनों की प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गई है। इन दोनों रैलियों की भीड़ एक-दूसरे की हैसियत मापने का पैमाना बनेंगी।
भागलपुर [शंकर दयाल मिश्र]। पटना में 30 अगस्त की स्वाभिमान रैली और भागलपुर में एक सितंबर की परिवर्तन रैली दोनों गठबंधनों की प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गई है। इन दोनों रैलियों की भीड़ एक-दूसरे की हैसियत मापने का पैमाना बनेंगी।
हालांकि, भाजपा के पास तर्कों के विकल्प अधिक होंगे क्योंकि रैली पूरा बिहार बनाम पूर्वी बिहार की होनी है। इधर, रैलियों की सफलता में सीधी भागीदारी के लिए दोनों गठबंधनों के दलों ने भी ताकत झोंक रखी है। टिकट और सीट की दावेदारी के लिए सभी अपनी-अपनी मौजूदगी का अहसास कराना चाहते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, रैली में जुटने वाली भीड़ वोट का पैमाना नहीं होती, पर यह रैली माहौल बनाने का बड़ा जरिया बनती है। अगर रैली में भीड़ उमड़ी तो लोगों के बीच उस पार्टी या गठबंधन के पक्ष में संदेश जाता है और भीड़ नहीं आई तो उस पार्टी या गठबंधन और उसके मुख्य नेताओं की भद पिट जाती है, जिससे उबरने में काफी वक्त लग जाता है।
एनडीए बनाम महागठबंधन
पीएम नरेंद्र मोदी की परिवर्तन रैली के बहाने भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियां पूरे बिहार में घूम-घूमकर ताकत का प्रदर्शन कर रही है। पूरे बिहार में अब तक प्रधानमंत्री की तीन रैली हो चुकी है।
इसकी सफलता से भाजपाई गदगद हैं। इधर, महागठबंधन पटना के गांधी मैदान में होने वाली रैली के रूप में न केवल इन रैलियों का जवाब देने की कोशिश करेगा, बल्कि पीएम की भागलपुर रैली के लिए नई चुनौती भी पेश करेगा।
भागलपुर की परिवर्तन रैली के संयोजक शाहनवाज हुसैन इस चुनौती को पहले ही स्वीकार कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि महागठबंधन की रैली के लिए निर्धारित गांधी मैदान 63 एकड़ का है, जबकि प्रधानमंत्री की रैली के लिए तय भागलपुर हवाई अड्डा का मैदान 223 एकड़ में है। वैसे, प्रशासन इसका आधे से अधिक हिस्सा सुरक्षा आदि के लिए रखेगा।
भीड़ जुटाना होगी भाजपा की चुनौती
दावे जो हों, पर भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती भीड़ जुटाना ही है। लोग गांधी मैदान से तुलना करते वक्त यह भी पूछते हैं कि गांधी मैदान कब भरा था? जेपी आंदोलन में, राजद के रैला मेंं, हुंकार रैली में?
जब पूरे बिहार की रैली होकर गांधी मैदान को भर पाना हमेशा चुनौती रही तो भागलपुर का हवाई अड्डा भरेगा कैसे? यह सवाल इसलिए भी बड़ा हो जाता है क्योंकि भागलपुर एक किस्म से टापू बना हुआ है।
पूरब से आने वाले रास्ते में भैना पुल पर बड़े वाहनों के परिचालन पर रोक है। पश्चिम से चंपा पुल और घोरघट पुल बंद है। दक्षिण से आने वाले रास्तों में परसबन्नी पुल और जगदीशपुर पुल के पास का डाइवर्सन जानलेवा है।
बचता है इकलौता उत्तर का रास्ता। यहां भी विक्रमशिला सेतु पर लगने वाला जाम और इस सड़क की हालत सर्वविदित है। हालांकि इन बातों पर भाजपा के रणनीतिकारों की भी पैनी नजर है। वे इससे निबटने का उपाय खोज रहे हैं। चर्चा यह भी कि संथालपरगना से भी भीड़ को बुलाया जा रहा है।
भागलपुर जिले के मूलवासी गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे को प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय और संयोजक शाहनवाज हुसैन ने रैली में आने का निमंत्रण भी दिया है। हालांकि, दुबे ने बताया कि उन्हें आदमी लाने की जिम्मेदारी नहीं मिली है।
लीडिंग रोल में नजर आ रहा राजद
महागठबंधन में राजद लीडिंग रोल में नजर आने लगा है। पूर्वी बिहार, कोसी-सीमांचल में उसकी गतिविधियां तेज नजर आ रही है। राजद के सांसद-विधायक के अतिरिक्त हारे हुए विधायक और पार्टी के टिकटों के दावेदारों ने अपनी पूरी उर्जा झोंक दी है। नाथनगर के राजद नेता के अनुसार, हम अधिक भीड़ ले जाकर आलाकमान को संदेश देना चाह रहे हैं कि इस सीट पर उनका दावा ज्यादा मजबूत है।
वैसे, इस मामले में जदयू और कांग्रेस की ओर से भी बयान आ रहे हैं। जहां जदयू के सांसद-विधायक हैं वहां जोर अधिक नजर आ रहा है। दूसरी ओर, एनडीए में भाजपा तो पहले से लीडिंग रोल में है। बांकी गठबंधन के साथी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की भूमिका में सिमटे नजर आ रहे हैं।
पोस्टरवार में भाजपा-जदयू की टक्कर
रैलियों के मद्देनजर शहरों में पोस्टरवार छिड़ा हुआ है। इसमें भाजपा को जदयू टक्कर देता नजर आ रहा है। जबकि, महागठबंधन की अन्य दोनों पार्टियां कांग्रेस गौण हैं और राजद मौन नजर आ रहा है। कांग्रेस विधायक के पोस्टर जदयू के मुकाबले बहुत कम हैं और राजद का पोस्टर ढूंढऩा पड़ता है।
इधर, इस पोस्टरवार में भाजपा की ओर से शाहनवाज गुट हावी है। अश्विनी चौबे गुट का कोई पोस्टर अभी दिख नहीं रहा है। वैसे शाहनवाज गुट के पोस्टरों में चौबे की छोटी सी तस्वीर अन्य नेताओं के साथ नजर आती है।