चुनावी दाल की चाल से राहत काफूर, कैसे बनेगी गरीबों की खिचड़ी ?
तब चुनाव था, अवाम के साथ ही अरहर की दाल पर भी चुनावी रंग सुर्ख हो गया था। दाल पर जमकर राजनीति हुई। चुनाव खत्म हुआ बिहार के लिए सस्ती सरकारी दाल उपलब्ध कराने को पटना में मात्र एक केंद्र खोल केंद्र सरकार खामोश हो गई है।
पटना [दिलीप ओझा ]। तब चुनाव था, अवाम के साथ ही अरहर की दाल पर भी चुनावी रंग सुर्ख हो गया था। हालांकि, यह पता नहीं था कि इसकी चाल चुनावी होगी और राहत ऊंट के मुंह में जीरे की तरह। हालत यह कि पूरे बिहार के लिए सस्ती सरकारी दाल उपलब्ध कराने को पटना में मात्र एक केंद्र खोल केंद्र सरकार खामोश हो गई है।
कोशिश तमाम पर राहत नहीं
बिहार विधानसभा चुनाव के समय अरहर की दाल 200 रुपये किलो पर आ गई थी। यह चुनावी मुद्दा बनी तो केंद्र सरकार सतर्क हुई। घोषणा हुई कि दाल के जमाखोरों पर कार्रवाई होगी, साथ ही आयात कर सस्ती सरकारी दाल मुहैया करा लोगों को राहत दी जाएगी। कुछ दिन सब-कुछ हुआ, पर लोगों को राहत नहीं मिली।
सिर्फ नेफेड के कार्यालय से बिक्री
बिहार में पहले सुधा के काउंटरों के जरिए अरहर दाल उपलब्ध कराने की योजना बनी, लेकिन चुनावी वजह से बात नहीं बनी। इसके बाद खादी ग्रामोद्योग आयोग से जुड़ी खादी संस्थाओं के जरिए दाल बेचने की योजना बनी। यह बात भी आगे नहीं बढ़ सकी। इसके बाद पटना स्थित नेफेड के कार्यालय के जरिए 120 रुपये दाल की बिक्री शुरू हुई।
70 क्विंटल दाल भी नहीं बिकी
नेफेड के पटना स्थित कार्यालय में पिछले साल अक्टूबर माह में 70 क्विंटल अरहर दाल पहुंची। प्रति व्यक्ति दो से तीन किलो दाल की बिक्री शुरू हुई। यहां दाल है। बिक भी रही है। खरीदार सुरेन्द्र ने बताया कि दो-तीन किलो दाल मिलती है। इससे मामूली बचत होती है। इतना तो यहां आने में टैंपू का किराया लग जाता है। कम से कम प्रति व्यक्ति पांच किलो दाल देनी चाहिए।
पटना में प्रतिदिन 50 क्विंटल की खपत
बिहार खुदरा विक्रेता महासंघ के महासचिव रमेश तलरेजा ने बताया कि अरहर दाल के भाव में बहुत राहत नहीं मिली है। बढिय़ा अरहर दाल 200 रुपये से घटकर इस समय 160 रुपये पर आ गई है। नरम अरहर दाल 130 रुपये भी बिक रही है। पटना की मंडी में प्रतिदिन 50 क्विंटल अरहर दाल की रोज खपत है।
पटना से आगे नहीं बढ़ी योजना
सस्ती सरकारी दाल से राहत देने की कोशिश पटना में ही अटक गई। हैरानी यह भी कि अक्टूबर से अब तक 70 क्विंटल दाल भी नहीं बिक पाई जबकि यहां प्रतिदिन 50 क्विंटल की खपत है। शेष बिहार तो अब तक चुनावी दाल का इंतजार ही कर रहा है।