धरती के भगवान तैयार करने पर संकट
मानवाधिकार आयोग और हाईकोर्ट के निर्देश के बाद लावारिस शव नहीं मिलने और लोगों के देहदान नहीं करने से अब मेडिकल कालेजों के सामने कुशल डाक्टर बनाने का संकट गहरा गया है। एनाटामी विभागाध्यक्ष के बार-बार शव उपलब्ध कराने की मांग करने पर प्राचार्य डा. विद्यापति चौधरी ने जिलाधिकारी को इस बाबत पत्र लिखा है।
पटना। मेडिकल संस्थानों में शव को पहला गुरु माना जाता है। इन्हीं शव पर छात्र-छात्राएं न केवल बीमार होने के बाद अंगों में होने वाले बदलावों को समझते हैं बल्कि सर्जरी के दौरान कहां से कौन सी नस गुजरेगी इसे भी देखकर समझते हैं। बार-बार शव परीक्षण करने से विभिन्न अंगों की बारीकियां उनके दिलो-दिमाग में रच-बस जाती हैं और वे कुशल चिकित्सक बन पाते हैं। मानवाधिकार आयोग और हाईकोर्ट के निर्देश के बाद लावारिस शव नहीं मिलने और लोगों के देहदान नहीं करने से अब मेडिकल कालेजों के सामने कुशल डाक्टर बनाने का संकट गहरा गया है। एनाटामी विभागाध्यक्ष के बार-बार शव उपलब्ध कराने की मांग करने पर प्राचार्य डा. विद्यापति चौधरी ने जिलाधिकारी को इस बाबत पत्र लिखा है। उसमें कुशल फिजिशियन व सर्जन तैयार करने के लिए कुछ लावारिस शव मुहैया कराने की मांग की गई है।
डा. विद्यापति चौधरी ने बताया कि विद्यार्थियों की समस्या को देखते हुए जिलाधिकारी से कुछ लावारिस शव मुहैया कराने का आग्रह किया गया है। फिलहाल संस्थान में एक शव है जिस पर एमबीबीएस से लेकर जूनियर डाक्टर तक मानव शरीर की बारीकियां समझते हैं। ऐसे में छात्र-छात्राओं को मानव शरीर देख कर उसे समझने का बहुत कम मौका मिलता है। किताबों और वीडियो से मानव शरीर की जटिल संरचना को बेहतर तरीके से समझ पाना और उसके बाद उसकी विकृति के इलाज का गुर सीखना कतई संभव नहीं है।
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त्रिआयामी डिजिटल बाडी
नहीं हो सकता विकल्प
पीएमसीएच के छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. डा. राजीव कुमार सिंह ने बताया कि अमेरिका में त्रिआयामी डिजिटल बाडी पर मेडिकल छात्रों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है, लेकिन यह वास्तविक शरीर का विकल्प नहीं हो सकता है। एनाटामी व फिजियोलाजी पर सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली टेक्स्ट बुक के लेखक केविन पाटन ने क्रबिस्तानों से चोरी कर 700 शवों पर अध्ययन किया था। किस हड्डी में कहां पर कौन से छिद्र हैं, कहां से कौन सी नस गुजरती है जिसे सर्जरी के समय ध्यान रखना है आदि की जानकारी शव को सामने देखने से ही समझ में आती है। इसके अलावा रोगों के उपचार और अच्छा फिजिशियन बनने के लिए भी शारीरिक संरचना को दिल-दिमाग में बसाना जरूरी है।
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देहदान करने वालों की बढ़ेगी संख्या
दधीचि देहदान समिति के महासचिव पद्मश्री बिमल जैन ने कहा कि मेडिकल छात्र-छात्राएं कुशल चिकित्सक बन सकें इसके लिए कम से कम एमबीबीएस में ही पांच बार उन्हें शव परीक्षण का मौका मिलना चाहिए। इसके लिए आमजन को देहदान और अंगदान के लिए प्रोत्साहित करने का कार्य समिति कर रही है। आशा है कि जल्द ही प्रदेश में इसकी तस्वीर बदलेगी और मेडिकल छात्राओं को सीखने के लिए पर्याप्त संख्या में देह मिल सकेगी। हाल के दिनों में आइजीआइएमएस में तीन देहदान किए गए हैं।