बिहार में आलू किसान बेहाल, विक्रेता मालामाल, ये है वजह
बिहार में आलू किसान बेहाल हैं और विक्रेता मालामाल हो रहे हैं। आलू की कीमत एक माह के अंदर तीन से चार रूपये प्रति किलो बढ़ गई है। खुदरा विक्रेताओं की मनमानी से खरीददार भी परेशान हैं।
पटना [दिलीप ओझा]। आलू का भाव मत पूछिए। बाढ़ के पानी की तरह बढ़ रहा है। शार्टेज की आशंका से एक माह के अंदर यह चार रुपये किलो तक महंगा हो गया है। हालांकि, इसका लाभ किसानों की जगह स्टॉकिस्ट और खुदरा विक्रेताओं की झोली में जा रहा है।
क्यों बढ़ी कीमत
पिछले तीन साल से आलू किसानों को घाटा लग रहा था। उपज ज्यादा होने से भाव सामान्य रहता था। इससे लागत और बिक्री मूल्य में अंतर नहीं रहता था। लिहाजा इस साल आलू की खेती से किसान दूरी बना लिए। बक्सर जिले के बड़कासिंहनपुरा पंचायत के किसान बबलू, अंजनी और राघवेंद्र ने कहा कि इस साल आलू की खेती 40 फीसद तक कम हुई है। ठंड अधिक पडऩे से पैदावार भी 10 से 15 फीसद कम निकली है। लिहाजा, शार्टेज की आशंका से भाव चढ़ गया है। नई फसल आने के एक माह बाद भी बिहार के अधिकांश कोल्डस्टोरेज भरे नहीं हैं।
तेजी का किसानों को नहीं मिला लाभ
फरवरी के अंत में बिहार का नया आलू बाजार में आया। थोक भाव खुला छह से सात रुपये किलो। अब यह नौ से 11 रुपये किलो के बीच है। इसके बावजूद अधिकांश किसानों के हाथ खाली हैं। किसानों का कहना है कि एक बीघा यानी 20 कट्ठा में करीब 50 से 60 क्विंटल आलू की पैदावार हुई। फरवरी अंत में इसकी कीमत करीब 25 से 30 हजार रुपये हुई क्योंकि आलू का भाव छह रुपये किलो था। एक बीघा आलू उपजाने में लागत करीब 20 हजार रुपये आई। इस तरह से एक बीघा की खेती में पांच से दस हजार रुपये का मामूली फायदा हुआ।
स्टॉकिस्ट और खुदरा विक्रेता मालामाल
छह रुपये किसानों से आलू खरीदने वाले स्टॉकिस्ट इस समय इसे नौ से 11 रुपये किलो बेच रहे हैं। यानी एक माह में उन्हें प्रति किलो तीन से चार रुपये का फायदा मिल रहा है। खुदरा विक्रेता इससे भी ज्यादा चांदी काट रहे हैं। थोक विक्रेताओं से वे नौ से 11 रुपये किलो आलू लेकर पटना में 15 से 18 रुपये किलो तक बेच रहे हैं। यानी वह प्रति किलो छह से आठ रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं। मुसल्लहपुर कृषक व्यवसायी संघ के महामंत्री आनंद रंजन ने कहा कि खुदरा में थोक की अपेक्षा दो से तीन रुपये अधिक कीमत होनी चाहिए लेकिन जमकर मनमानी हो रही है और आम लोग लुट रहे हैं।