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सत्त्ता संग्राम: मधुबनी में सजने लगी चुनावी बिसात, यहां सीधी टक्कर का रहा इतिहास

मधुबनी पेंटिंग के लिए मशहूर मधुबनी जिले की राजनीति अब 2019 के चुनाव के लिए तैयार हो रही है। इसका इतिहास देखें तो पता चलता है कि यहां की राजनीति दो ध्रुवों की रही है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Sat, 30 Jun 2018 09:02 AM (IST)Updated: Sat, 30 Jun 2018 10:54 PM (IST)
सत्त्ता संग्राम: मधुबनी में सजने लगी चुनावी बिसात, यहां सीधी टक्कर का रहा इतिहास
सत्त्ता संग्राम: मधुबनी में सजने लगी चुनावी बिसात, यहां सीधी टक्कर का रहा इतिहास

पटना [अरविंद शर्मा]। खास पेंटिंग शैली के लिए दुनिया भर में मशहूर मधुबनी की राजनीति कई दौर से गुजर चुकी है। इसे कभी कांग्र्रेस और कम्युनिस्ट का गढ़ माना जाता था। अब भाजपा का बोलबाला है। अतीत का मजमून है कि संसदीय चुनावों में यहां अक्सर दो ही कोण बनते हैं। मतलब सीधी टक्कर। पिछली बार भी तीसरा कोना नहीं था।

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भाजपा के हुकुमदेव नारायण यादव ने राजद के अब्दुल बारी सिद्दीकी पर कम अंतर से जीत दर्ज की थी। जदयू के गुलाम गौस ने कोशिश तो की, लेकिन पब्लिक ने नोटिस नहीं लिया। भाजपा और राजद के पराक्रम के आसपास भी नहीं पहुंच पाए। 

अबकी दोनों गठबंधनों की बैटल फील्ड सजने लगी है। प्रत्याशी को लेकर राजग में कोई तकरार नहीं है, किंतु गठबंधन में अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है। दो बार से भाजपा से लगातार हार रहे राजद के अब्दुल बारी सिद्दीकी अबकी बार भी दावेदार हैं। माहौल देखकर कांग्रेस के शकील अहमद का मन भी मचल रहा है। समझौते में यदि कांग्र्रेस की झोली में सीट आ गई तो शकील की किस्मत खुल सकती है।

समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र यादव की भी नजर है। अखिलेश यादव के जरिए लालू प्रसाद से देवेंद्र भी समीकरण साधने में लगे हैं। देवेंद्र पड़ोसी सीट झंझारपुर से सांसद और केंद्र में मंत्री भी रह चुके हैं। 

भाजपा इस बार परिवर्तन की राह पर है। पार्टी की नई रीति के अनुरूप 79 वर्षीय सांसद हुकुमदेव नारायण ने सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने का एलान कर दिया है। उनकी इच्छा विरासत को बेटे अशोक यादव की झोली में डालने की है। अशोक दरभंगा से भाजपा के टिकट पर विधायक रह चुके हैं।

पार्टी के प्रति हुकुम का समर्पण बता रहा है कि उनकी इच्छा पूरी होने में विघ्न-बाधा नहीं है। जदयू के संजय झा की नजर भी मधुबनी पर है। उन्होंने भी आना-जाना तेज कर दिया है। दरभंगा भी निशाने पर है। जहां से बात बन जाए। 

कम्युनिस्टों का गढ़ था मधुबनी

मधुबनी कभी कम्युनिस्टों का गढ़ था। 1996 में भाजपा के हुकुमेदव नारायण को हराकर कामरेड चतुरानन मिश्र इसके आखिरी सेनापति साबित हुए। इसके पहले 1991 में कामरेड भोगेंद्र झा ने तो पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र को भी हरा दिया था। यह सीपीआई की सबसे बड़ी जीत थी।

इसके पहले 1971 में जगन्नाथ यहां से जीत चुके थे। हुकुमदेव ने पहली बार 1977 में लोकदल से खाता खोला था। उसके बाद भाजपा के टिकट पर उन्होंने तीन बार विरोधियों को परास्त किया। कांग्र्रेस से अनिरुद्ध सिंह, शफीक उल्लाह अंसारी, अब्दुल हन्नान, शकील अहमद एवं सोशलिस्ट पार्टी से योगेंद्र झा भी यहां से सांसद रहे हैं।

2014 के महारथी 

हुकुमदेव नारायण यादव : भाजपा : 358040

अब्दुल बारी सिद्दीकी : राजद : 337505

प्रो. गुलाम गौस : जदयू : 56392

कुमारी रीता : शिवसेना : 30942

हरि नारायण यादव : बसपा : 10115

विधानसभा क्षेत्र : हरलाखी, बेनीपïट्टी, बिस्फी, मधुबनी, केवटी, जाले 


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