होलिका में प्लास्टिक कचरा बढ़ाएगा सांस की तकलीफ
- पर्यावरण प्रदूषण विभाग ने जारी किया परामर्श - पेट्रोलियम पदार्थ जलाने से भी वायु प्रदूषण ।
- पर्यावरण प्रदूषण विभाग ने जारी किया परामर्श
- पेट्रोलियम पदार्थ जलाने से भी वायु प्रदूषण संभावित
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जागरण संवाददाता, पटना : होलिका दहन की परंपरागत रीति से छेड़छाड़ वायु प्रदूषण को काफी नुकसानदेह स्तर पर पहुंचा सकता है। खासकर शहरी क्षेत्र में होलिका सामग्री में प्लास्टिक कचरा और पेट्रोलियम पदार्थ डालने से सांस की तकलीफ बढ़ सकती है। पर्यावरण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने होलिका दहन के संबंध में परामर्श भी जारी कर दिया है।
राजधानी क्षेत्र में होलिका दहन से वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ने की आशंका को देखते हुए कचरे में शामिल प्लास्टिक को जलाने की मनाही की गई है। परंपरा के अनुसार होलिका दहन के लिए गोइठा (कंडा), झलास, पुआल और लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता था। शहरी क्षेत्र में इन चीजों का अभाव होता है। मोहल्ले में निकलने वाले प्लास्टिक कचरे को लोग होलिका में डाल देते हैं। इसके जलने से वायुमंडल में कार्बन और सल्फर की मात्रा काफी बढ़ जाती है।
दिल्ली के बाद पटना का नाम देश के सबसे प्रदूषित शहरों में जुड़ चुका है। दीपावली के पटाखे और होलिका दहन के मौके पर शहर के वायुमंडल में कार्बन की मात्रा इतनी अधिक बढ़ जाती है कि सांस लेने में भी लोगों को तकलीफ होने लगती है। धूल कण के साथ कार्बन, सल्फर सहित अन्य जहर हवा में घुल जाते हैं।
: आदर्श स्थिति क्या हो :
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हवा में प्रदूषित तत्वों की मात्रा की आदर्श स्थिति एक मीटर की परिधि में दस माइक्रोग्राम बर्दाश्त की जा सकती है। इससे अधिक का स्तर नुकसानदेह हो सकता है। पटना और मुजफ्फरपुर देश के दस प्रदूषित शहरों की सूची में शामिल हो चुके हैं।
पटना में वायु प्रदूषण का औसत स्तर मानक से करीब तीन गुना ज्यादा हो चुका है। अब होलिका दहन में प्लास्टिक कचरा जलेगा तो वायु में जहर फैलना संभावित है। नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड और सल्फर डाई ऑक्साइड हवा को प्रदूषित करते हैं। इससे सांस की बीमारी बढ़ने की संभावना रहती है।
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