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फणीश्वरनाथ रेणु जयंती विशेषः बाढ़ की विभीषिका पर रेणु ने पटना में लिखी थी 'ऋणजल-धनजल'

भारत छोड़ो आंदोलन जेपी मूवमेंट नेपाल आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले रेणु का संबंध कई राज्यों और देशों से रहा लेकिन उनका पटना से अधिक लगाव रहा। जानें।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Wed, 04 Mar 2020 08:19 AM (IST)Updated: Wed, 04 Mar 2020 08:19 AM (IST)
फणीश्वरनाथ रेणु जयंती विशेषः बाढ़ की विभीषिका पर रेणु ने पटना में लिखी थी 'ऋणजल-धनजल'
फणीश्वरनाथ रेणु जयंती विशेषः बाढ़ की विभीषिका पर रेणु ने पटना में लिखी थी 'ऋणजल-धनजल'

प्रभात रंजन, पटना: मैला आंचल, कितने चौराहे, ऋणजल-धनजल, परती-परिकथा, पलटू बाबू रोड आदि पुस्तकों की रचना करने वाले कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु ने देश और साहित्य के लिए बड़ा योगदान दिया। पूर्णिया के औराही हिंगना में  में चार मार्च 1921 को रेणु का जन्म हुआ था। भारत छोड़ो आंदोलन, जेपी मूवमेंट, नेपाल आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले रेणु का संबंध कई राज्यों और देशों से रहा लेकिन उनका पटना से अधिक लगाव रहा। राजधानी के राजेंद्र नगर इलाके में बने क्वार्टर में उन्होंने काफी समय व्यतीत किया। यहां उन्होंने कई उपन्यास, रिपोर्ताज लिखकर साहित्य जगत में कभी न मिटने वाली पहचान बनाई।

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रेणु का आवास स्थान राजेंद्र नगर गोलंबर से ठीक सटे गोल मार्केट के पास पीआरडी क्वार्टर के ब्लॉक नम्बर दो के फ्लैट में था। जहां आज भी उनसे जुड़ी कई यादें वहां जाने पर ताजा हो जाती हैं। तीसरी कसम से देशभर में ङ्क्षहदी साहित्य में प्रसिद्ध हुए आंचलिक उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु की यादों को संजोने के लिए बिहार सरकार ने बिहार हिंदी दिवस पर 1996 में ङ्क्षहदी भवन की आधारशिला रखी थी। लेकिन वर्ष 2004 तक इसमे एक भी ईंट नहीं जुड़ी। इसके बाद बिहार विधान परिषद के तत्कालीन सभापति डॉ. जाबिर हुसैन ने अपने फंड से 2004-05 में इसका काम शुरू करवाए जिसके बाद भवन बनकर तैयार हुआ।

कंकड़बाग में रेणु के नाम पर है खूबसूरत पार्क

रंगकर्मी अनीश अंकुर की मानें रेणु की याद में बने हिंदी भवन में इन दिनों बिहार सरकार के कई विभाग के कार्यालय संचालित हो रहे हैं। अनीश कहते हैं कि जिस उद्देश्य से भवन का निर्माण हुआ था वो आज नहीं दिख रहा। रेणु की याद में कंकड़बाग में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनकी जयंती पर वर्ष 2012 में आदमकद प्रतिमा का अनावरण किया था। यहां इनके नाम पर रेणु पार्क भी मौजूद है। जहां पर विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे पार्क की खूबसूरती में चार-चांद लगा रही है।

रेणु आवास पर साहित्यकारों की लगती थी भीड़

वरिष्ठ कवि आलोक धन्वा बताते हैं कि राजेंद्र नगर स्थित रेणु के क्वार्टर में उनके साथ उनकी पच्ी लतिका रेणु रहती थीं। उनसे मिलने के लिए राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, रामवृक्ष बेनीपुरी, दिनमान के संस्थापक रघुवीर सहाय, अज्ञेय, रामवचन राय आदि आदि आते थे।

राजकमल चौधरी ने रेणु से कराई थी पहली मुलाकात

आलोक धन्वा बताते हैं कि वर्ष 1965 के आसपास मैथिली साहित्यकार राजकमल चौधरी ने पहली बार राजेंद्र नगर आवास पर रेणु जी से मेरी मुलाकात कराई थी। धन्वा बताते हैं कि जब रेणु को पहली बार देखा तो आश्चर्यचकित हो गया। लगभग छह फीट का आदमी लंबे और घुंघरे बाल और क्लीन शेव किए व्यक्ति कुर्सी पर बैठे था। चारों ओर बड़े-बड़े रचनाकारों की भीड़ उन्हें घेरे हुई थी।

कॉफी हाउस में साहित्य और राजनीति पर होती थी बात

उन दिनों पटना स्थित डाकबंगला चौराहे पर स्थित कॉफी हाउस में रेणु के साथ दिनकर, बाबा नागार्जुन सहित कई बड़े साहित्यकारों का जुटान होता था। उनसे मिलने के लिए सच्चिदानंद बाबू, नेपाल के प्रधानमंत्री कोइराला आदि मिलने आते थे। रेणु कॉफी पिलाते और बिल स्वयं देते थे। वे खाने और खिलाने में भी आगे रहते थे।

जेपी आंदोलन के बाद लौटाया पद्मश्री का पुरस्कार

जेपी आंदोलन में रेणु ने भी महती भूमिका निभाई। आंदोलन के दौरान जब जेपी पर लाठीचार्ज हुआ तो रेणु काफी दुखी हुए। जिसके बाद उन्होंने पद्मश्री पुरस्कार लौटा दिया। आंदोलन के दौरान दिनकर, नागार्जुन एवं रेणु को लोगों ने एक मंच पर भी देखा था।

बिहार में आई बाढ़ पर रेणु ने लिखी रिपोर्ताज

बिहार में 1975 में आई बाढ़ के बारे में आलोक धन्वा बताते हैं, त्रासदी से पूरा शहर डूबा था। राजधानीवासियों का हाल देख रेणु भी चिंतित थे। बिहार में अकाल के दौरान रेणु और अज्ञेयजी ने राज्य के प्रमुख जिलों का भ्रमण किया और बाढ़ को केंद्रित कर 'ऋणजल-धनजल' रिपोर्ताज पटना में लिखी।

नेहरू के प्रति रेणु का था खास लगाव

अलोक धन्वा बताते हैं कि रेणु के घर में नेहरू की तस्वीर उनके सिराहने में हमेशा रहती थी। लाल गुलाब लगाए नेहरू की तस्वीर के बारे में कई बार लोगों ने पूछा लेकिन रेणु मुस्कुरा कर रह जाते थे। रेणु ने जिस प्रकार नेपाल के आंदोलन में अपना सहयोग दिया था उसी दौरान नेहरू का भी साथ नेपाल को मिला।

राजकपूर और वहीदा रहमान भी थीं प्रभावित

रेणु की कालजयी रचनाओं में से एक 'मारे गए गुलफाम उर्फ तीसरी कसम' कहानी पर फिल्म निर्देशक बासु भट्टाचार्य ने फिल्म तीसरी कसम बनाई थी। इस फिल्म में फारिबसगंज की कहानी को बयां किया गया था। फिल्म में वहीदा रहमान और अभिनेता राजकपूर ने मुख्य अभिनय कर रेणु के कद को और ऊंचा कर दिया था।


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