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बिहार: अस्‍पतालों में फार्मासिस्‍ट नहीं, बिना नाम पढ़े अनुमान से दी जा रहीं दवाएं; हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

बिहार के अस्‍पतालों में फार्मासिस्‍ट नहीं हैं। ऐसे में दवा वितरण का काम चुतुर्थ वर्गीय कर्मचारी संभाल रहे हैं। इसे लेकर दायर लोकहित याचिका पर पटना हाईकोर्ट में सुनवाई हो रही है।

By Amit AlokEdited By: Published: Mon, 24 Jun 2019 06:21 PM (IST)Updated: Mon, 24 Jun 2019 10:20 PM (IST)
बिहार: अस्‍पतालों में फार्मासिस्‍ट नहीं, बिना नाम पढ़े अनुमान से दी जा रहीं दवाएं; हाईकोर्ट ने मांगा जवाब
बिहार: अस्‍पतालों में फार्मासिस्‍ट नहीं, बिना नाम पढ़े अनुमान से दी जा रहीं दवाएं; हाईकोर्ट ने मांगा जवाब
पटना [स्‍टेट ब्‍यूरो]। क्‍या बिहार के कई अस्‍पतालों में दवाओं का वितरण बिना नाम पढ़े रैपर देख महज अनुमान के आाधर पर किया जा रहा है? यह आरोप पटना हाईकोर्ट में दायर एक लोकहित याचिका में लगाया गया है। याचिका के अनुसार राज्‍य के अस्‍पतालों में फार्मासिस्‍ट के 70 फीसद पद खाली पड़े होने के कारण चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी दवाओं का वितरण कर रहे हैं। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने राज्‍य सरकार से जवाब मांगा है।
फार्मासिस्ट के 70 प्रतिशत पद खाली
पटना हाईकोर्ट ने सोमवार को एक लोकहित याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि यह बेहद दुर्भाग्य की बात है कि फार्मासिस्ट के 70 प्रतिशत पद खाली हैं और राज्य सरकार इन रिक्तियों को भरने को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं कर रही है। कोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ ने कहा कि यदि सुनवाई की अगली तिथि एक जुलाई तक स्पष्ट जवाब नहीं मिला तो स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव पर 50 हजार रुपये का आर्थिक दंड लगाया जा सकता है। 
सरकार ने कोर्ट को नहीं दिया जवाब
समाजसेवी गुड्डू बाबा की लोकहित याचिका पर राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग को पिछली ही तिथि को यह बताना था कि खाली पदों को कब तक भर लिया जायेगा। सुनवाई शुरू हुई तो राज्य सरकार की ओर से इस विषय पर कोई जवाब नहीं मिला।
अप्रशिक्षित कर्मचारी करते दवा वितरण
जाहिर है कि फार्मासिस्ट के अभाव में दवाओं का वितरण अप्रशिक्षित कर्मचारियों के द्वारा किया जाता है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर बड़े अस्पतालों  में भी फार्मासिस्ट के पद खाली हैं। इसे स्वास्थ्य विभाग की बड़ी लापरवाही माना जा सकता है।
सुनवाई के दौरान न्यायाधीश उस समय स्तब्ध रह गए जब उन्‍हें यह जानकारी मिली कि प्रदेश के सबसे बड़े हृदयरोग अस्पताल 'इंदिरा गांधी हृदय रोग संस्थान' में भी फार्मासिस्ट नहीं हैं। वहां दवा वितरण का काम चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी कर रहे हैं। यह लोगों की जान के साथ खतरनाक खेल खेलने जैसा है।
रैपर देख कर अनुमान से देते हैं दवा
सुनवाई में उपस्थित रहे याचिकाकर्ता गुड्डू बाबा ने कहा कि प्रदेश के स्वास्थ्य केन्द्रों एवं अस्पतालों में फार्मासिस्ट के नहीं रहने के कारण चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी यह काम करते हैं। इनमें से कई ऐसे हैं जो दवा का नाम नहीं पढ़ सकते हैं। वे रैपर को देख कर अनुमान लगाते हैं कि यह वही दवा है जिसे डॉक्टर ने मरीज के पर्ची में लिखा है।

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