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साहित्य ही नहीं संगीत का भी दीवाना है पटना : उषा उत्थुप

पटना पुस्तक मेले में उषा उथुप की रही धूम

By JagranEdited By: Published: Thu, 14 Nov 2019 01:10 AM (IST)Updated: Thu, 14 Nov 2019 01:10 AM (IST)
साहित्य ही नहीं संगीत का भी दीवाना है पटना : उषा उत्थुप

प्रमोद सिंह, पटना। पांच बजकर दस मिनट पर पटना पुस्तक मेले का मुख्य द्वार पूरी तरह खुलता है। कई सारे लोग उधर ही मुखातिब होते हैं। गोधूलि बेला में उषा उदित हो रही थीं। राजकमल प्रकाशन के स्टॉल पर जाना है। अशोक महेश्वरी, अमित झा सहित कई लोग आगवानी में खड़े हैं। लंबे बाल, बालों में गजरा, कानों में बड़े-बड़े झुमके, माथे पर बड़ी बिंदी और पूर्णत: भारतीय परिधान में जब उषा उत्थुप उतरीं तो पूरा मेला परिसर जैसे झंकृत हो उठा। मंच पर अपनी आत्मकथा 'उल्लास की नाव' का विमोचन उषा उत्थुप, कथाकार ऋषीकेश सुलभ और अशोक महेश्वरी ने किया। पाठकों ने किताबें खरीदी और उनके ऑटोग्राफ भी पुस्तक पर लिए। इस दौरान विषय प्रवर्तन किताब के लेखक विकास कुमार झा ने किया। बताया कि उषाजी पर बाइस भाषाओं में लिखा जा चुका है। वह कई भाषाओं में गा चुकी हैं।

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स्वागत करते हुए ऋषीकेश सुलभ ले कहा कि भूमि और भाषा दोनों की दीवारें लांघ उषाजी ने संगीत के क्षेत्र में नया प्रतिमान गढ़ा है। यह उल्लास से ही संभव था। इनका पूरा जीवन स्पंदन से भरा हुआ है।

फिर उषाजी दर्शकों-श्रोताओं से मुखातिब हुई। उनका उल्लास देखते बन रहा था। बोलीं-वैसे तो मैं पटना और बिहार के कई हिस्सों जैसे बेतिया, मुंगेर, छपरा आदि में कई बार आ चुकी हूं, पर इस बार यहां आना बहुत खास है। मैं जान गई हूं कि यहां के लोग साहित्य की तरह ही संगीत के भी दीवाने हैं। मैं मूलत: मद्रासी हूं। मेरे संगीत ने बंगाल में विस्तार पाया और दिल्ली, मुम्बई समेत पूरे देश में सुनी जाती हूं। इतनी विविधता के बावजूद मैं एक मुकम्मल भारतीय हूं। मैं संगीत की दुनिया में एक 'नाइट क्लब सिंगर' हूं। इसके लिए मैंने मिस्टर कालरा से हिदी सीखी। दरअसल, संगीत एक नशा है। इशारों में कहा कि यहां नशाबंदी है, इसलिए संगीत का नशा सुकून देगा।

बातें खत्म हुई तो स्वर लहरी पूरे कैंपस में तैरने लगी। दम मारो दम..से जैसे ही गाने की शुरुआत की लोगों के पांव थिरकने लगे। स्वर से स्वर एकाकार होने लगे। फिर क्या था एक से बढ़कर एक गीत गाकर झूमा ही तो दिया। रम्भा हो.हो.हो., जो भी किया हमने किया शान से., डार्लिग आंखों से आंखे चार कर ले.और जाने जां ढूंढ़ता ही रहा..आदि गानों ने कुछ ऐसा रंग जमाया कि लोग थिरकने को मजबूर हो गए। जैसे-जैसे शाम जवां होती जा रही थी उनका गीत-संगीत परवान चढ़ता जा रहा था। गीतों में गजब के तान-अनुतान, आरोह-अवरोह और स्वर पर पकड़ थी। 'आ.' का भी एक अलग एक्सेंट। ऐसा लगा जैसे स्वर की देवी तानपुरे की तान पर नृत्य कर रही हों। लगा जैसे पॉप संगीत की महारानी भारतीय पाग में पग जाना चाहती हों। सार में कहें तो उषा उत्थुप श्रोताओं को लहालोट कर गई।


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