स्त्री की ताकत और सहजता को बयां कर गई फिल्म 'अपनी धुन में कबूतरी'
राजधानी के कलाप्रेमियों के लिए रविवार का दिन बेहद खास रहा।
By Edited By: Published: Sun, 09 Dec 2018 11:18 PM (IST)Updated: Mon, 10 Dec 2018 02:47 PM (IST)
राजधानी के कलाप्रेमियों के लिए रविवार का दिन बेहद खास रहा। लोगों ने छुट्टी का खूब आनंद लिया। कालिदास रंगालय परिसर में लगे विभिन्न फिल्मों के पोस्टर बीते फिल्मोत्सव की यादें ताजा करा रहे थे। मौका था हिरावल जन संस्कृति मंच पटना की ओर से 'प्रतिरोध का सिनेमा' थीम पर आधारित 10वें पटना फिल्मोत्सव के आयोजन का। तीन दिवसीय पटना फिल्म महोत्सव के पहले दिन कर्टेन रेजर, दस्तावेजी फिल्म 'अपनी धुन में कबूतरी' और फीचर फिल्म 'लाइफ ऑफ एन आउटकास्ट' आदि फिल्मों की प्रस्तुति के साथ फिल्म निर्देशकों और दर्शकों के बीच बातचीत हुई। फिल्म महोत्सव के मौके पर युवा फिल्मकार पवन श्रीवास्तव ने विस्तार से प्रकाश डाला। श्रीवास्तव ने कहा कि भारतीय सिनेमा हाशिए पर खड़े लोगों के लिए नहीं है। जिसे भारतीय सिनेमा कहा जाता है, वह भारतीय सिनेमा नहीं है। इन भारतीय सिनेमा में गांव के लोग शामिल नहीं होते और न हीं उनकी जिंदगी की सच्चाई होती है। वह कुछ हद तक शहर का सिनेमा है। नये दौर में बड़ी-बड़ी कंपनियां फिल्म निर्माण के क्षेत्र में उतरी हैं, जो उसके कंटेट को कंट्रोल करती हैं। बाजार के प्रभाव से मुक्त रहकर पटना फिल्मोत्सव एक मिसाल - फिल्मोत्सव पर प्रकाश डालते हुए युवा फिल्मकार पवन श्रीवास्तव ने कहा कि हाशिये के लोगों की कहानी हमें कहनी होगी और हमें ही अपने गांव और वहां की वास्तविक जीवन स्थिति को दिखाना होगा। फिल्मकार ने कहा कि पहली फिल्म 'नया पता' और नई फिल्म 'लाइफ ऑफ एन आउटकास्ट' जनसहयोग से ही बनी है। श्रीवास्तव ने कहा कि बाजार के प्रभाव से मुक्त रहकर लगातार 10 साल पटना फिल्मोत्सव का आयोजन एक मिसाल है। फिल्म महोत्सव में जिन फिल्मों का चयन हुआ वे समाज, राजनीति और कला में दलित-वंचित हाशिये के लोगों की कहानी को बयां करती हैं। फिल्मों को सामूहिक रूप से दिखने-दिखाने की संस्कृति को बढ़ावा देने की जरूरत है। जनपक्षधर फिल्में बनाना स्वतंत्रता की दूसरी लड़ाई का हिस्सा फिल्मोत्सव के स्वागत समिति के अध्यक्ष प्रो. संतोष कुमार ने कहा कि आज जनता के प्रतिरोध और संघर्ष का समर्थन करने वाले बुद्धिजीवियों और कलाकारों को नक्सल और देशद्रोही कहा जा रहा है। लेकिन बुद्धिजीवी कलाकार इससे डर कर चुप नहीं हो जाएंगे। जनपक्षधर फिल्में बनाना जोखिम का काम है। यह दूसरी स्वतंत्रता की लड़ाई का अहम हिस्सा है। जन संस्कृति मंच के राज्य सचिव सुधीर सुमन ने कहा कि वर्चस्व की ताकतों से हाशिये का समाज बहुत बड़ा है। पटना फिल्मोत्सव आरंभ से ही हाशिये के लोगों के जीवन की सच्चाई और उनके संघर्ष से संबंधित फीचर फिल्में, लघु फिल्में दिखाता रहा है। उद्घाटन के मौके पर फिल्मकार संजय मट्टू, फिल्म विशेषज्ञ आरएन दास, कवि आलोक धन्वा, साहित्यकार राणा प्रताप, प्रो. भारती, एस कुमार, अरुण पाहवा, सुधीर सुमन आदि ने फिल्मोत्सव की स्मारिका का विमोचन किया। समारोह के दौरान हिरावल की रेशमा खातून, अंजली कुमारी, निक्की कुमारी, नेहा कुमारी, प्रिंस, प्रीति, संतोष आदि ने प्रथम स्वाधीनता संग्राम के दौरान लिखे गए अजीमुल्ला खां के गीत ''हम हैं इसके मालिक हिंदुस्तान हमारा' और ब्रजमोहन के गीत 'चले, चलो' का गायन कर दर्शकों का दिल जीता। सहजता में महानता का साक्षात्कार कराती है कबूतरी - 10वें पटना फिल्मोत्सव की शुरुआत संजय मट्टू निर्देशित व उत्तराखंड की कुमाइनी भाषा की लोक गायिका कबूतरी की जिंदगी पर बनी फिल्म 'अपनी धुन में कबूतरी' की प्रस्तुति सभागार में हुई। यह फिल्म एक सामान्य स्त्री की ताकत और प्रतिभा को बहुत सहजता से दर्शकों को रूबरू कराती है। एक सामान्य परिवार की गृहिणी कबूतरी को रेडियो के जरिए वहां गाने का न्यौता मिलता है। गाने के एवज में रेडियो से पैसे मिलने के बाद उसकी जिंदगी आराम से कटने लगती है। उसका पति भी इन पैसों से ऐशो-आराम करना चाहता है। कबूतरी इसके लिए तैयार भी होती है। हालांकि, इसी बीच उसे पता चलता है कि उसके पति का किसी और महिला से संबंध है। इस जानकारी के बाद कबूतरी स्वयं को सशक्त बनाने में जुट जाती है और खुद की जिंदगी अलग कर लेती है। हाशिये के लोगों के दुख और त्रासदी की कहानी है लाइफ ऑफ एन आउटकास्ट - फिल्मोत्सव के दौरान पवन श्रीवास्तव निर्देशित फिल्म 'लाइफ ऑफ एन आउटकास्ट' का प्रदर्शन हुआ। इसमें फिल्म निर्देशक ने हाशिये पर खड़े लोगों की कहानी के साथ समाज के वास्तविक चेहरे को उजागर करती है। फिल्म में समाज के जाति भेद की सच्चाइयों और उत्पीड़ित जातियों की मुक्ति की जरूरत की ओर भी संकेत करती है। फिल्मोत्सव में आज - लघु फिल्म - वुमानिया, गुब्बारे, छुट्टी, बी-22 की प्रस्तुति। जमीन के लिए आदोलन करने वाली महिलाओं के संघर्ष पर आधारित फिल्म 'अगर वो देश बनाती' की प्रस्तुति। वही भिखारी ठाकुर के जीवन पर आधारित फिल्म 'नाच, भिखारी नाच' की प्रस्तुति।
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