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माता-पिता की सेवा कानून नहीं, संस्कारों से ही संभव

पटना। लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण एवं विधि मंत्री कृष्णनंदन प्रसाद वर्मा ने कहा कि भारतीय समाज में कानू

By Edited By: Published: Wed, 29 Jun 2016 03:05 AM (IST)Updated: Wed, 29 Jun 2016 03:05 AM (IST)
माता-पिता की सेवा कानून नहीं, संस्कारों से ही संभव

पटना। लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण एवं विधि मंत्री कृष्णनंदन प्रसाद वर्मा ने कहा कि भारतीय समाज में कानून बनाकर बुजुर्गो को सम्मान और सुरक्षा उपलब्ध नहीं कराई जा सकती। माता-पिता की सेवा कानून से नहीं, संस्कारों से ही संभव है। पीएचइडी एवं विधि मंत्री मंगलवार को जागरण प्रकाशन समूह द्वारा स्थापित बुजुर्गो के 'बागबान क्लब' की तीसरी वर्षगांठ पर राजधानी के होटल मौर्य में आयोजित फोरम में 'बुजुर्गो के कानूनी अधिकार और सुरक्षा' विषय पर आयोजित परिचर्चा में भाग ले रहे थे। उन्होंने जागरण समूह की इस पहल की सराहना की।

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विधि मंत्री ने कहा कि मृत्यु जीवन का जितना बड़ा सत्य है, वृद्धावस्था भी उतना ही बड़ा सत्य है। उन्होंने कहा कि बिहार सरकार भी बुजुर्गों के अधिकार व सुरक्षा संबंधित अपनी नीति बनाने में 'बागबान क्लब' के सदस्यों से सुझाव लेगी। वर्मा ने कहा जैसे-जैसे भारतीय समाज में संयुक्त परिवार जैसी संस्था न्यूक्लियर फैमिली में तब्दील हो रही है, बुजुर्गों की देखभाल, उनके अधिकार और सुरक्षा जैसी बुनियादी संस्कारों में गिरावट दर्ज की जा रही है। हमें यह समझना होगा हमारे माता-पिता हमारी पहली जिम्मेदारी हैं। उसके बाद हमारे लिए परिवार और समाज की जिम्मेदारी है। हमें इस जिम्मेदारी को सामूहिकता से संभालना होगा।

जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की तरह बुजुर्गो के लिए भी बने कानून :

पटना हाइकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता रमाकांत शर्मा ने कहा कि जिस तरह हमारे देश में नाबालिग बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए 'जुवेनाइल जस्टिस एक्ट' का प्रावधान है, उसी तरह 80 साल से अधिक उम्र वाले बुजुर्गो के अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक अलग कानून की जरूरत शिद्दत से महसूस की जा रही है। शर्मा ने कहा कि वर्ष 2007 में बुजुर्गो की सुरक्षा के लिए कानून तो बना लेकिन इसके ट्रिब्यूनल की जिम्मेदारी बुजुर्गो को नहीं दी गई। हमारा मानना है कि ट्रिब्यूनल की जिम्मेदारी बुजुर्गों को दी जानी चाहिए। उन्होंने इसके लिए अपने तर्क भी दिए। कहा कि कानून में बुजुर्गो को अधिकार और सुरक्षा प्रदान करने के जो प्रावधान किए गए हैं, उसे क्रियान्वित कराना हमारे नौकरशाहों के वश की बात नहीं है। उन पर पहले से काम का बोझ अधिक है। उन्होंने कहा कि जिस देश की 40 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहती हो, उस देश में बुजुर्गों की देखभाल करने की जिम्मेदारी सरकार को उठानी चाहिए।

वरिष्ठ अधिवक्ता के अनुसार पढ़े-लिखे और शहरी परिवार में बुजुर्गो की देखभाल अब बड़ी समस्या बनने लगी है। लेकिन इस समस्या का समाधान कानून नहीं बल्कि हमारी भारतीय संस्कृति और संस्कार ही हैं। केंद्र ने वर्ष 2007 में वरिष्ठ नागरिक अधिनियम तो लागू कर दिया, लेकिन इसमें कई त्रुटियां हैं। उन्होंने कहा कि पिछले दिनों ही एक 92 वर्षीय बुजुर्ग को न्यायालय ने जेल की सजा सुनाई। जबकि उसने जब अपराध किया था तब उम्र 50 साल थी। लेकिन अदालत को सजा सुनाने में 42 साल का समय लग गया। सजा भी तब सुनाई गई जब अपराध करने वाले के शरीर में सजा काटने तक की ताकत नहीं बची।

संयुक्त परिवार की भावनाओं को बरकरार रखना होगा : सत्यप्रकाश

भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी व पटना के नगर पुलिस अधीक्षक सत्यप्रकाश ने कहा कि यह भारतीय समाज के लिए अजीब विडंबना है कि जिस मां-बाप की उंगलियां पकड़कर हम चलना सीखते हैं, उनके वृद्ध होने पर हम सहारा नहीं देते। यह भारतीय संस्कृति और हमारे संस्कारों में शामिल नहीं है। उन्होंने कहा कि हम भले ही संयुक्त परिवार में न रहते हों, लेकिन हमें संयुक्त परिवार की भावनाओं को बरकरार रखना होगा।

सत्यप्रकाश ने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा के लिए थाना स्तर पर भी कई प्रावधान किए गए हैं। सभी थानों को अपने क्षेत्र में रहने वाले बुजुर्गो की एक पंजी रखनी है। थानेदारों को समय-समय पर उनका हालचाल भी लेना है। उन्होंने स्वीकार किया कि थानों में कामकाज की अधिकता होने से इन प्रावधानों का सख्ती से पालन नहीं होता है। हमारी कोशिश होगी कि हम इस काम में बागबान क्लब के सदस्यों की मदद लें। क्योंकि यह वरिष्ठ नागरिकों का एक बड़ा प्लेटफार्म है।


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