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सुशील मोदी का तंज, किसानों को पहले करो 200 करोड़ का पुराना भुगतान

पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि सरकार को इस साल भी धान की खरीद पर कम से कम 300 रुपये प्रति क्विंटल बोनस किसानों को देना चाहिए। पिछले साल बोनस देने के बावजूद सरकार तय लक्ष्य 30 लाख टन के विरुद्ध 24 लाख टन ही खरीद कर सकी।

By Amit AlokEdited By: Published: Fri, 27 Nov 2015 11:07 AM (IST)Updated: Fri, 27 Nov 2015 04:50 PM (IST)
सुशील मोदी का तंज, किसानों को पहले करो 200 करोड़ का पुराना भुगतान

पटना। पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि सरकार को इस साल भी धान की खरीद पर कम से कम 300 रुपये प्रति क्विंटल बोनस किसानों को देना चाहिए। पिछले साल बोनस देने के बावजूद सरकार तय लक्ष्य 30 लाख टन के विरुद्ध 24 लाख टन ही खरीद कर सकी थी।

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मोदी ने कहा कि नई खरीद शुरू करने से पहले सरकार किसानों के पिछले साल का बकाया करीब 200 करोड़ रुपये का भुगतान करे। बकाये की वसूली के लिए जिन एक हजार से ज्यादा चावल मिलों पर मुकदमा किया गया है, उनके लिए 'वन टाइम सेटलमेंट स्कीम' लाकर सरकार इस विवाद का समाधान निकालें।

उन्होंने कहा कि पिछले साल धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,360 रुपये के अतिरिक्त किसानों को 300 रुपये बोनस के साथ प्रति क्ंिवटल 1,660 रुपये का भुगतान किया गया था।

इस साल धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,410 रुपये तय किया गया है। अगर सरकार प्रारंभ में ही बोनस की घोषणा नहीं करती है तो पिछले साल से कम कीमत पर किसान धान बेचने के लिए तैयार नहीं होंगे और इसकी वजह से तय लक्ष्य को प्राप्त करना कठिन होगा।

मोदी ने कहा जब सरकार ने यह तय किया है कि पैक्स व व्यापार मंडल किसानों से धान खरीदने के बाद चावल तैयार कर राज्य खाद्य निगम को देंगे तो धान की मिलिंग के लिए उसे एक हजार से ज्यादा उन चावल मिलों के लिए कोई एक मुश्त समाधान योजना निकालनी चाहिए जिनके ऊपर बकाये की वसूली के लिए मुकदमें किए गए हैं। अगर सरकार चावल मिलों के साथ मिल कर विवाद का समाधान नहीं करती है तो पैक्सों व व्यापार मंडल के लिए चावल तैयार कर राज्य खाद्य निगम को देना संभव नहीं हो सकेगा।

मोदी ने कहा तय लक्ष्य के अनुरूप धान की खरीद के लिए भंडारण क्षमता को बढ़ाने की जरूरत है। राज्य खाद्य निगम के पास मात्र 5 लाख और पैक्स व व्यापार मंडल के पास 7.5 लाख टन भंडारण की क्षमता है। भंडारण क्षमता के अभाव में ही पिछले साल तय लक्ष्य से कम धान खरीद होने के बावजूद हजारों टन धान महीनों खुले में पड़े रहे, जिससे चावल तैयार करने की गुणवत्ता प्रभावित हुई।


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