विश्व पुस्तक दिवसः वक्त के साथ मुठ्ठी में समाया पुस्तकों का संसार, ल़ॉकडाउन ने लेखकों को दिया नया आयाम
पटना में सौ साल से ज्यादा पुरानी खुदाबख्श खां लाइब्रेरी औऱ सिन्हा लाइब्रेरी हैं तो मौलाना मजहरूल हक पुस्तकालय जैसी विरासतें भी हैं। विश्व पुस्तक दिवस पर डालते हैं एक नजर।
प्रभात रंजन, पटना। पटना पढ़ने-लिखने वालों का शहर रहा है। इसी कड़ी में अनेकों जगह पुस्तकालय और वाचनालय भी खुले। यहां 130 साल पुरानी खुदाबख्श खां लाइब्रेरी, 100 साल पुरानी सिन्हा लाइब्रेरी और मौलाना मजहरूल हक पुस्तकालय जैसी विरासतें हैं। पटना म्यूजियम में राहुल सांकृत्यायन द्वारा तिब्बत से लायी गयी सैकड़ों साल पुस्तकों और पांडुलिपियों का संग्रह अद्भुत है। राजधानी के कई पुस्तकालयों में वर्षों पुरानी पुस्तकों का डिजिटलाइजेशन भी हुआ है। आइए जानते हैं कि विश्व पुस्तक दिवस पर क्या कर रहे हैं पटना के लेखक।
लॉकडाउन की बंदिश ने पूरी करा दी किताब
लॉकडाउन का लाभ हमारे लेखकों और कवियों ने खूब उठाया है। राजधानी समेत बिहार के कई लेखक खाली समय में अपनी रचनाओं को पूरा करने में लगे हैं। उम्मीद है कि लॉकडाउन समाप्त होने के बाद कई नई रचनाएं पाठकों तक पहुंच पाएंगी। शहर के जाने-माने लेखक रत्नेश्वर इन दिनों देश की पहली सभ्यता और संस्कृति जो 35 हजार पुरानी है, उस पर रिसर्च कर उपन्यास की शक्ल देने में जुटे हैं। रत्नेश्वर की मानें तो पुस्तक 400 पेज की होगी। पुस्तक में सबसे पहले मानव प्रजाति कैसे अफ्रीका से ईरान होते हुए भारत आयी, उनका रहन-सहन कैसा था, संसार का पहला वाद्ययंत्र कैसा था, खान-पान और संस्कृति कैसी थी, इन तमाम बिंदुओं पर जानकारी रहेगी।
शब्दों में बयां होगी पर्वतारोही की मार्मिक कहानी
लेखिका भावना शेखर इन दिनों देश के एक पर्वतारोही के जीवन के बारे में लिखने में लगी हैं। कोरोना काल में अपने अधूरे काम को निपटा रही हैं। कुछ वर्ष पहले एवरेस्ट पर विजय पाने वाले एक पर्वतारोही के जीवन पर लिख रही हैं। भावना के मुताबिक यह काफी पेचीदा और शोधपरक है। आरंभिक रूपरेखा बनाने के बाद कुछ हिस्सा लिखी थीं, बीच में तीन वर्ष का अंतराल आ गया। लॉकडाउन में अपने अधूरे काम को पूरा करने में जुटी हैं।
पटना के प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल की कहानी
लेखक व इतिहास अध्येता अरूण सिंह कोरोना की वजह अपने घर में लॉकडाउन का प्रयोग अपनी किताबों को पूरा करने में लगे हैं। अरूण सिंह फिलहाल तीन पुस्तकों को पूरा करने में लगे हैं। इसमें पहली पुस्तक पटना के प्राचीन काल से लेकर आधुनिक दौर तक की मुकम्मल कहानी होगी। पटना का इतिहास, कला-संस्कृति, स्थापत्य, रीति-रिवाज, धर्म-अध्यात्म, समाज के विभिन्न आयामों को समटेने का प्रयास किया गया है। अरुण का दावा है कि पुस्तक प्रामाणिक ग्रंथों, दस्तावेजों, विदेशी पर्यटकों, यात्रियों का वृतांत, उर्दू इतिहासकारों और मौलिक प्रामाणिक शोधों पर आधारित होगी। दूसरी किताब पटना की प्राचीन इमारतों पर केंद्रित है।