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बेमिसाल: कभी फुटपाथ पर अंडे बेचता था जो बच्चा, आज है मल्टीनेशनल कंपनी का अफसर

एक युवक के संघर्ष और सफलता की कहानी एेसी कि जिसे जानकर आप भी कह उठेंगे-भई वाह! जो कभी फुटपाथ पर अंडे बेचा करता था वो आज मल्टीनेशनल कंपनी में बड़ा अधिकारी है। जानिए...

By Kajal KumariEdited By: Published: Tue, 10 Sep 2019 09:56 AM (IST)Updated: Tue, 10 Sep 2019 11:07 PM (IST)
बेमिसाल: कभी फुटपाथ पर अंडे बेचता था जो बच्चा, आज है मल्टीनेशनल कंपनी का अफसर
बेमिसाल: कभी फुटपाथ पर अंडे बेचता था जो बच्चा, आज है मल्टीनेशनल कंपनी का अफसर

पटना [जयशंकर बिहारी]। पटना में सड़क किनारे अंडे की दुकान पर बैठने वाले जावेद को ऐसा मददगार मिला कि उसकी तकदीर संवर गई। अनपढ़ जावेद स्कूल पहुंच गया। फिर आइआइटी पहुंचा। और अब बहुराष्ट्रीय कंपनी में इंजीनियर है।

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पटना के पाटलिपुत्र मुहल्ले की झुग्गी बस्ती में बनी झोपड़ी आज भी जावेद अख्तर का स्थायी पता है, लेकिन उनकी सफलता आसपास के बच्चों को उड़ान भरने की शक्ति दे रही है। और हो भी क्यों न, फुटपाथ पर अंडे बेचने वाले जावेद ने पहले भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, आइआइटी) कानपुर में दाखिला पाया और अब मुंबई स्थित बहुराष्ट्रीय कंपनी में बेहतर नौकरी।

मददगारों का एहसान, जिन्होंने दिलायी हौसलों को उड़ान

जावेद के परिजन, बस्ती वाले और स्कूल के शिक्षकों सहित जानने-पहचानने वाले सभी लोग उसकी इस सफलता से गर्व महसूस कर रहे हैं। जावेद कहते हैं, आज जो भी हूं, वह मददगारों की वजह से ही हूं। ब्रदर जेम्स ने स्कूल में दाखिला न कराया होता तो आज पटना के किसी फुटपाथ पर पिता के साथ अंडे बेच रहा होता।

लोयला स्कूल के शिक्षकों ने पढऩे का जज्बा दिया। इंजीनियरिंग के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा (ज्वाइंट एंट्रेंस एक्जामिनेशन, जेईई) की तैयारी में रहमानी सुपर-30 और कन्हैया सिंह ने भी काफी सहयोग किया।

हर शाम पिता के साथ बेचता था अंडा, पढ़ने में थी रूचि

जावेद हर शाम पिता जाकिर आलम के साथ लोयला स्कूल के सामने वाले फुटपाथ पर अंडा बेचता था। एक दिन लोयला स्कूल के ब्रदर जेम्स की नजर जावेद पर पड़ी। उन्होंने उसे स्कूल में पढ़ाने का प्रस्ताव दिया। पिता ने आर्थिक मजबूरी बताई तो ब्रदर ने सारा खर्च उठाने का भरोसा दिया।

ब्रदर एंथोनी और जो-जो सर भी गुदड़ी के लाल को संवारने के लिए आगे आए। ज्ञान गंगा पब्लिकेशन के मालिक भरत सिंह ने मुफ्त में किताबें मुहैया कराईं। जावेद सभी की उम्मीदों के अनुरूप प्रदर्शन करता रहा और सहयोग करने वालों की संख्या बढ़ती चली गई।

इच्छाशक्ति ने दिलायी पहचान 

फिलहाल रोम में रह रहे ब्रदर जेम्स कहते हैं, जावेद की इच्छाशक्ति गजब की थी। बारिश होने पर उसकी झोपड़ी में नाले का पानी आ जाता था, लेकिन पढ़ाई के लिए उसने कभी बहाना नहीं बनाया। जेम्म का कहना है कि सफलता और असफलता के आकलन का अपना-अपना तरीका हो सकता है। पर यह सत्य है कि मेहनत करने वालों के साथ ईश्वर सदा खड़ा रहता है।

12वीं के बाद जावेद का चयन जेईई की नि:शुल्क तैयारी कराने वाली संस्था रहमानी सुपर-30 में हुआ। परीक्षा के तीन माह पहले तबीयत काफी खराब हो गई, ठीक होने में काफी वक्त लगा। परिणाम हुआ कि जेईई क्वालीफाई नहीं कर सका। जावेद कहते हैं, वह दौर जीवन का सबसे बुरा था। लगा जीवन ही खत्म हो गया।

शिक्षकों ने हौसला बढ़ाया और आगे की तैयारी के लिए विकल्प की तलाश में जुट गया। तब जेईई की तैयारी कराने वाले कन्हैया सिंह सहारा बने। अगले साल जेईई एडवांस में बेहतर रैंक प्राप्त करने में सफल रहा। इसके बाद आइआइटी कानपुर में मैथेमैटिक्स इन कंप्यूटिंग में दाखिला लिया। आइआइटी कानपुर से ही बहुराष्ट्रीय कंपनी में प्लेसमेंट मिला है। 


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