बिहार में बाल विवाह पर कसेगा शिकंजा, और कड़ा होगा कानून
बिहार में बाल विवाह पर नकेल कसने के लिए राज्य सरकार 2006 के कानून को संशोधित कर पहले से भी ज्यादा कड़े प्रावधान जोडऩे की तैयारी में है।
पटना [भुवनेश्वर वात्स्यायन]। बाल विवाह पर नकेल कसने को बिहार सरकार 2006 के कानून को संशोधित कर पहले से भी ज्यादा कड़े प्रावधान जोडऩे की तैयारी में है। अब यह प्रावधान किया जा रहा कि बाल विवाह के दोषियों को थाने से जमानत नहीं मिले।
सजा की अवधि वर्तमान के दो साल से बढ़ाकर न्यूनतम सात साल की जा सकती है। दहेज विरोधी कानून को भी और सख्त किया जाए इस लिहाज से कई स्तर पर वैधानिक जवाबदेही तय किए जाने की योजना पर सरकार के स्तर पर विमर्श चल रहा है।
बाल विवाह के वर्तमान कानून में ये है प्रावधान
बाल विवाह प्रतिषेध कानून 2006 उतना सख्त नहीं है। इस कानून में यह प्रावधान है कि बाल विवाह करवाने वाले व्यक्ति को दो वर्ष तक की कठोर कारावास और एक लाख रुपये तक के जुर्माने की सजा हो सकती है।
अगर कोई अभिभावक और किसी अन्य द्वारा बाल विवाह को बढ़ावा दिया जाता है, या उसकी अनुमति दी जाती या फिर कोई व्यक्ति बाल विवाह में भाग लेता है तो उन्हें भी दो वर्ष तक की सजा तथा एक लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। महिलाओं को कारावास की सजा नहीं होगी। इस कानून की धारा 11 (1) कहती है कि महिलाओं को सिर्फ अर्थ दंड देना होगा।
कानून में संशोधन की वजह
कानून संशोधन पर मंथन कर रहे अधिकारियों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला है कि अगर किसी कानून के तहत सात वर्ष से कम की सजा होती है, तो उसे मजिस्ट्रेट के पास सुनवाई को लाया जाए, यह जरूरी नहीं। थाने के स्तर पर ही उसका निपटारा किए जाने के वैधानिक प्रावधान हैैं। ऐसे में बाल विवाह से जुड़े मामले में सख्ती नहीं हो पाती है क्योंकि उसमें दो साल की सजा है। इसलिए बाल विवाह को रोकने के लिए कानून में संशोधन जरूरी है।
क्या जोडऩे की है तैयारी
बाल विवाह पर सख्ती को संशोधित कानून में सजा की अवधि कम से कम सात वर्ष की जा सकती है। कुछ मामलों में इसे दस साल भी किया जा सकता है। बाल विवाह करवाने वालों को अधिक सजा हो इसका प्रावधान किया जा रहा है। जुर्माने की राशि वर्तमान से तीन गुना तक किए जाने की योजना है।