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कलम नहीं करती औरत या मर्द में भेद, स्त्री विमर्श को छोड़ मर्दों की हो बातें

इलाहाबाद की रहने वाली नासिरा शर्मा अपने नए उपन्यास पर बात करने के लिए बिहार की राजधानी पटना आईं। इस दौरान उन्होंने अजनबी जजीरा लिखने का मकसद साहित्य प्रेमियों से साझा किया।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Sun, 17 Mar 2019 08:31 AM (IST)Updated: Sun, 17 Mar 2019 08:31 AM (IST)
कलम नहीं करती औरत या मर्द में भेद, स्त्री विमर्श को छोड़ मर्दों की हो बातें
कलम नहीं करती औरत या मर्द में भेद, स्त्री विमर्श को छोड़ मर्दों की हो बातें

अक्षय पांडेय, पटना। राजधानी के होटल चाणक्या में शनिवार को शब्दों के तापमान ने साहित्य के मौसम का मिजाज खुशनुमा कर दिया। लेखिका नासिरा शर्मा प्रभा खेतान फाउंडेशन और नवरस स्कूल ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट की ओर से 'कलम' कार्यक्रम की 40वीं कड़ी में अपनी पुस्तक 'अजनबी जजीरा' पर बात करने के लिए मेहमान के रूप में मौजूद थीं। एक मंच पर जब साहित्य अकादमी पुरस्कार से अलंकृत नासिरा और संचालन कर रहीं पद्मश्री ऊषा किरण खान ने बोलना शुरू किया तो चंद अल्फाजों ने दुनिया जहां की यात्राएं करा दीं। कार्यक्रम का प्रस्तुतकर्ता श्री सीमेंट रहा तो दैनिक जागरण मीडिया पार्टनर था।

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कार्यक्रम के दौरान ऊषा किरण खान ने इलाहाबाद की रहने वाली नासिरा की कई पुस्तकों का जिक्र किया। 'पारिजात' किताब से शुरू हुई बातें ईरान की कहानी तक गईं। सबसे पहले शाल्मली के पन्नों को शब्दों से सभागार में पलटा गया। सवाल था शाल्मली लिखने का क्या मकसद था? नासिरा ने कहा, इस पुस्तक के माध्यम से स्त्री विमर्श को प्रमुखता दी। घर से बाहर रह रही औरतों के जीवन पन्नों पर उकेरा। नारी के लिए लिखा उनकी स्थिति को बयां किया।

कलम नहीं करती औरत या मर्द में भेद

एक सवाल के जवाब में नासिरा ने कहा, कलम संवेदनाएं नहीं देखती, वो औरत या मर्द में भेद नहीं करती। इसका एक उदाहरण ये भी है कि लेखकों ने औरतों को बेहतरीन किरदार में गढ़ा है।

छूटे इलाहाबाद को कहानियों से किया याद

रूह से जब शब्द निकलने लगे तो पाठकों की तल्लीनता बढ़ती गई। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जन्मी नासिरा ने कहा कि मैंने बचपन में छूटे अपने शहर को पुस्तकों में टटोला। अपने जिले को हीरो बनाया। पाठकों को बताया कि गंगा किनारे बसे इलाहाबाद को क्यों वकीलों का शहर कहा जाता है। पानी की असली समस्या से लोगों को रूबरू कराया।

धीरे-धीरे होता है साहित्य का असर

नासिरा ने कहा की सियासत बहुत तेजी से बदलती है मगर साहित्य का असर धीरे-धीरे होता है। लोगों में पढऩे की आदत खत्म हो रही है। जो देश के लिए बेहतर नहीं। नासिरा ने कहा कि मेरा बिहार से गहरा ताल्लुक है। बिहारियों के मेहनती होने की संज्ञा दी जाती है, लेकिन बहुत से बिहारी मजदूरों की शक्ल में देखे जा रहे हैं।

बेहतर संबंध के लिए पड़ोसियों की खबर भी लें

अपनी पुस्तक 'अजनबी जजीरा' के ईरान की पृष्ठभूमि पर होने की बात पर नासिरा ने कहा कि मैंने दूसरे देश नहीं इंसानियत पर लिखा। लोगों ने कहा कि आप नकारात्मक बातें कर रही हैं पर मैं नहीं मानी। हम पड़ोसियों से बेहतर संबंध चाहते हैं तो हमें उनके विषय में जानना भी होगा। पढऩे की आदत खत्म होने से पड़ोसी देशों से हमारा व्यवहार खराब हो रहा है। कार्यक्रम के दौरान राम बचन राय, त्रिपुरारी शरण, अरुण कुमार सिंह, आलोक धन्वा, डॉ. अजीत प्रधान, अनविता प्रधान, निवेदिता शकील, रत्नेश्वर, भावना शेखर आदि साहित्य प्रेमी मौजूद रहे।


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