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लोकतंत्र ही नहीं मानवाधिकार की जननी भी है बिहार, अशोक का शासनादेश पहला ऐतिहासिक प्रमाण

बिहार ने विश्व को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाया है। इसके साथ ही मानवाधिकार का पहला संदेश भी दिया है। सम्राट अशोक का शासनादेश विश्व में मानवाधिकार का पहला उद्घोष था। उन्होंने इसे अपने साम्राज्य में लागू भी किया था।

By Amit AlokEdited By: Yogesh SahuPublished: Fri, 09 Dec 2022 06:51 PM (IST)Updated: Fri, 09 Dec 2022 06:51 PM (IST)
लोकतंत्र ही नहीं मानवाधिकार की जननी भी है बिहार, अशोक का शासनादेश पहला ऐतिहासिक प्रमाण
बिहार ने विश्व को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाया तो मानवाधिकार का पहला संदेश भी दिया।

पटना, अमित आलोक। बिहार ने विश्व को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाया तो मानवाधिकार का पहला संदेश भी दिया। सम्राट अशोक का शासनादेश विश्व में मानवाधिकार का पहला उद्घोष था। अशोक ने इसे अपने साम्राज्य में लागू किया। हमारे संविधान के मूलभूत अधिकार व कर्तव्य तथा नीति निर्देशक तत्व भी इससे प्रेरित हैं। अशोक के शासन में मानवाधिकारों की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मृत्यु्दंड पाए कैदियों को भी सजा के पहले तीन दिन का अवकाश दिया जाता था, ताकि वे प्रायश्चित, चिंतन व अधूरे काम कर सकें। ऐसा आज के आधुनिक शासन में भी नहीं देखा जाता है। खास बात यह भी कि अशोक के शासनादेश पर मगध के ही कौटिल्य के अर्थशास्त्र की छाप देखी जाती है।

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बिहार के जयप्रकाश विश्वछविद्यालय, छपरा के अंतर्गत गंगा सिंह कालेज के प्राचार्य व इतिहासकार डा. आदित्यग चंद्र झा कहते हैं कि विश्व में इसके पहले मेसोपोटामिया (वर्तमान इराक) के शासक हम्मुरावी ने जनता को कैसे रहना चाहिए, इसका आदेश जारी किया था; लेकिन उसमें मानवाधिकारों की बात नहीं थी। अशोक ने अपने अभिलेखों में सेवक, दास व जीव-जंतुओं सहित समस्त प्राणियों के प्रति दयाभाव की बात कही। एक अभिलेख में उसने कहा है कि जन-कल्याण से बड़ा कोई काम नहीं। अपने कलिंग अभिलेख में अशोक ने प्रजा को संतान बताते हुए राजा व प्रजा के बीच पिता-पुत्र जैसे संबंध की बात की है।

डा. झा बताते हैं कि अशोक ने कैदियों के लिए आज के न्यायकि पुर्नचिवार की व्यवस्था जैसे प्रबंध भी किए थे। सजा माफी को लेकर कैदियों की याचिका पर सुनवाई के लिए अधिकारी (राजुक) नियुक्ति थे। इतना ही नहीं, मृत्युदंड प्राप्त कैदियों को सजा के पहले तीन दिनों का अवकाश दिया जाता था, ताकि वे प्रायश्चित व चिंतन तथा अधूरे काम निबटा सकें। ऐसी व्यवस्था तो आज के आधुनिक समाज में भी नहीं देखी जाती है। अशोक ने मानवाधिकारों को धर्म (धम्म) माना तथा न केवल इसकी बात की, बल्कि अपने आदेशों के अनुपालन को भी सुनिश्चित कराया। इसके लिए धम्म-महामात्रों की नियुक्ति की।

अशोक का साम्राज्य उत्तर में हिन्दुकुश व तक्षशिला की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी व सुवर्णगिरी पहाड़ी से आगे मैसूर तक तथा पूर्व में बंगाल व पश्चिम में अफगानिस्तान, ईरान व बलूचिस्तान तक फैला था। उसके शिलालेख साम्राज्य के बाहर के क्षेत्रों में भी पाए गए हैं। बौद्ध भिक्षुओं के माध्यम से उसके संदेश देश की सीमाओं के बाहर दूर-दूर तक फैले। ऐसे में अशोक के मानवाधिकार के संदेश ऐसी पहली व्याषक घोषणा थी।

बिहार राज्य मानवाधिकर आयोग के अध्यक्ष सेवानिवृत्त न्याायमूर्ति वीके सिन्हा कहते हैं कि इंग्लैंड में नागरिकों के मूल अधिकारों से संबंधित पहला प्रपत्र ‘मैग्नाकार्टा’ (1215) हो या इसके बाद का ‘बिल आफ राइट्स’ (1689), या फिर संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकरों की घोषणा (10 दिसम्बर 1948), सब बाद में आए। वे कहते हैं कि मानवाधिकार का उल्लेख अशोक के शासनादेश के अलावा हमारे धर्मग्रंथों में भी है। भगवान श्री राम के राम राज्य का सिद्धांत भी मानवाधिकार पर आधारित था।


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