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समान वेतन के लिए अब सदन, कोर्ट और सड़क पर साथ-साथ संघर्ष

सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियोजित शिक्षकों को समान काम समान वेतन के पटना हाईकोर्ट का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज।

By JagranEdited By: Published: Fri, 10 May 2019 09:00 PM (IST)Updated: Fri, 10 May 2019 09:00 PM (IST)
समान वेतन के लिए अब सदन, कोर्ट और सड़क पर साथ-साथ संघर्ष
समान वेतन के लिए अब सदन, कोर्ट और सड़क पर साथ-साथ संघर्ष

पटना । सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियोजित शिक्षकों को 'समान काम, समान वेतन' के पटना हाईकोर्ट के फैसले को रद करने के बाद शिक्षक संगठनों ने संघर्ष को और तेज करने का फैसला लिया है। शिक्षक संगठनों के प्रतिनिधियों ने बताया कि पटना हाईकोर्ट से पक्ष में निर्णय आने के बाद इस मांग पर सुप्रीम कोर्ट से मुहर की उम्मीद थी। इस कारण सदन और सड़क पर संघर्ष स्थगित कर दिया गया था। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अध्ययन के बाद सदन, कोर्ट और सड़क पर साथ-साथ संघर्ष करने का फैसला रविवार की बैठक में लिया जाएगा। इसमें सभी शिक्षक संगठनों के प्रतिनिधि मौजूद रहेंगे। बैठक कहां और कब होगी, यह दिल्ली से संगठनों के प्रतिनिधियों के लौटने के बाद तय होगा।

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नियोजन के तीन साल बाद कोर्ट में पहुंचा मामला :

2006 में राज्य के सरकारी प्राथमिक, मिडिल, उच्च तथा प्लस टू स्कूलों में शिक्षकों की कमी दूर करने के लिए बड़े स्तर नियोजन किया गया। चपरासी से कम वेतन को लेकर 2009 में बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ ने पटना हाईकोर्ट में अपील की। 2013 में बिहार शिक्षक न्याय मोर्चा सहित कई शिक्षक संगठनों ने इसे लेकर केस फाइल किया। दिसंबर 2016 में पंजाब सरकार व अन्य के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह खेहर की बेंच ने एक ही भौगोलिक परिस्थिति में काम करने वालों को 'समान काम के लिए समान वेतन' को मौलिक अधिकार से जोड़कर फैसला सुनाया। इस मामले को आधार बनाते हुए पटना हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन व न्यायमूर्ति अनिल कुमार उपाध्याय की बेंच ने 21 अक्टूबर, 2017 को नियोजित शिक्षकों के पक्ष में फैसला सुनाया।

राज्य सरकार से पहले संगठन पहुंचे सुप्रीम कोर्ट :

हाईकोर्ट के फैसले पर राज्य सरकार का रुख देखते हुए शिक्षक संगठनों ने नवंबर 2017 में ही सुप्रीम कोर्ट में कैविएट फाइल कर दिया था। राज्य सरकार ने पटना हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध दिसंबर 2017 में एसएलपी दायर की। इसकी मॉनीटरिग शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव स्तर से की गई।

24 सुनवाई के बाद दिया फैसला :

एसएलपी पर जनवरी 2018 में पहली सुनवाई हुई। चार अक्टूबर 2018 को 24 तिथियों पर सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे और न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित की बेंच ने फैसले को सुरक्षित रख लिया। लगभग छह माह बाद 10 मई को फैसले की सुनवाई की खबर मिलते ही नियोजित शिक्षकों के बीच अपने पक्ष में फैसले की उम्मीद जगी। राज्य सरकार की अपील के खिलाफ संगठन व शिक्षकों की ओर से दायर 108 याचिकाओं पर वकीलों ने बहस में भाग लिया था।

स प्रीम कोर्ट में संगठनों ने खर्च किए 12 करोड़ रुपये :

राज्य सरकार के एलपीए के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में लगभग एक दर्जन शिक्षक संगठनों के वकील बहस कर रहे थे। शिक्षक संगठनों की ओर से नामचीन वकील कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, राजीव धवन, पी चिदंबरम, सीएस सुंदरम, सीए वैद्यनाथन, रंजीत कुमार, पीपी त्रिपाठी आदि ने पक्ष रखा। विभिन्न शिक्षक संगठनों के प्रतिनिधियों के अनुसार पूरी सुनवाई के दौरान लगभग 10 करोड़ रुपये से अधिक वकीलों को ही बहस के लिए दिए गए। डेढ़ से दो करोड़ रुपये अन्य मद में खर्च हुए।

रविवार की बैठक में बनेगी आगे की रणनीति :

स प्रीम कोर्ट के फैसले की कॉपी शुक्रवार की शाम वेबसाइट पर अपलोड होने के बाद देर शाम वकीलों के साथ शिक्षक संगठनों ने बैठक की। संगठन प्रतिनिधियों ने बताया कि फैसले के आधार को समझने के बाद सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन फाइल की जाएगी। इसके साथ ही सदन और सड़क पर स्थगित आंदोलन को गति देने के लिए रविवार को महत्वपूर्ण बैठक होगी। इसमें सभी संगठन के सदस्य शामिल होंगे।

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