बिहार में इंसेफेलाइटिस का कहर: NHRC ने मांगी रिपोर्ट, सरकार ने एंबुलेंस से इलाज तक किया फ्री
बिहार में इंसेफेलाइटिस से अभी तक 132 बच्चों की मौत हो चुकी है। इसपर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने गंभीरता दिखाई है। इस बीच केंद्र व राज्य सरकारों ने हाई लेवक बैठकें कीं।
पटना [जेएनएन]। यूं तो बिहार में एईएस (एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम) या इंसेफेलौपैथी गर्मी के मौसम की सालाना त्रासदी है, लेकिन इस साल तो हद हो गई। सिस्टम की नाकामी ने मौत के आंकड़ों को ऑल टाइम हाई (132) तो कर ही दिया है। महामारी के ऐसे भयावह माहौल में सोमवार को डॉक्टर भी हड़ताल पर चले गए। एईएस के कहर को देखते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एंबुलेंस से इलाज तक फ्री कर दिया है। केंद्र सरकार ने भी सभी जरूरी मदद कर पेशकश की है। उधर, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मामले का संज्ञान लिया है तो मुजफ्फरपुर में केंद्र व राज्य के स्वास्थ्य मंत्रियों पर लापरवाही के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया है।
अभी तक 132 बच्चों की मौत
बिहार में एईएस से अभी तक 132 बच्चों की मौत हो चुकी है। अकेले मुजफ्फरपुर में ही मौत का आंकड़ा सौ पार कर गया है। समस्तीपुर, मोतिहारी, नवादा व पटना में भी बच्चों की मौत बताती है कि बीमारी का फैलाव कितनी दूर तक हो चुका है। आंकड़ों की बात करें तो इसके पहले सर्वाधिक 120 मौतें साल 2012 में हुईं थीं। इस साल मौत का यह रिकार्ड टूट गया है।
हालांकि, राज्य सरकार के अनुसार अभी तक मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज व अस्पताल (एसकेएमसीएच) में 85 तथा केजरीवाल अस्पताल में 18 बच्चों की मौत हुई है। राज्य सरकार के अनुसार इस साल एईएस से अभी तक 103 मौतें हुईं हैं।
मानवाधिकार आयोग ने मांगी रिपोर्ट
इस भयावह हालात को देखते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने केंद्र व राज्य सरकारों से जवाब-तलब किया है। एनएचआरसी ने मौत के आंकड़ों, बीमारी से बचाव व इसके इलाज की तैयारियों को लेकर चार सप्ताह में जवाब मांगा है।
केंद्र व राज्य सरकारों ने की हाई लेवल बैठकें
एईएस की भयावह स्थिति को देखते हुए सोमवार कर देर शाम पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तथा दिल्ली में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने हाई लेवल बैठकें की।
निजी अस्पतालों में भी इलाज का खर्च उठाएगी सरकार
पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में हाई लेवल बैठक हुई। इसमें स्वास्थ्य मंत्री व आपदा प्रबंधन मंत्री सहित आला अधिकारी शामिल रहे। बैठक में बीमारी की स्थिति की समीक्षा की गई तथा कई महत्वपूर्ण फैसले लिए गए।
मुख्यमंत्री की हाई लेवल बैठक में यह फैसला किया गया कि एईएस के मरीज को अस्पताला लाने के लिए सरकारी एंबुलेंस तो फ्री हैं ही, निजी एंबुलेंस या वाहन के भाड़ा को भी सरकार वहन करेगी। निजी अस्पतालों में भी इलाज सरकारी खर्चे पर होगा।
राज्य को केंद्र सरकार दे रही सभी जरूरी मदद
उधर, केंद्र सरकार ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया है। मुजफ्फरपुर में एईएस की जानकारी लेने के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने एईएस को लेकर हाई लेवल बैठक की। बैठक के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने कहा कि उन्होंने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के साथ रविवार को इस बीमारी की स्थिति का जायजा लिया था। इस बीमारी के कारण अज्ञात हैं। इस बीमारी को लेकर जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। केंद्र व राज्य सरकारें इस बीमारी को लेकर गंभीर हैं। राज्य को केंद्र सरकार सभी जरूरी मदद दे रही है।
केंद्रीय व बिहार के स्वास्थ्य मंत्री पर मुकदमा
इस बीच बिहार में एईएस से बच्चों की लगातार हो रही मौतें व बीमारी के इलाज में लापरवाही के आरोप में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन तथा राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय के खिलाफ मुजफ्फरपुर कोर्ट में परिवाद दायर किया गया है। परिवाद सोमवार को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ( सीजेएम) सूर्यकांत तिवारी के कोर्ट में सामाजिक कार्यकर्ता तमन्ना हाशमी ने दाखिल किया है। कोर्ट ने इसपर सुनवाई के लिए 24 जून की तारीख मुकर्रर की है।
अपने परिवाद पत्र में तमन्ना हाशमी ने आरोप लगाया है कि उक्त मंत्रियों ने अपने कर्तव्य का पालन नहीं किया। जागरूकता अभियान नहीं चलाने के कारण बच्चों की मौतें हो गईं। आरोप के अनुसार बीमारी को लेकर आज तक कोई शोध भी नहीं किया गया। लापरवाही के कारण बच्चों की मौत हुई है।
बीजेपी नेता ने भी लगाए लापरवाही के आरेाप
इसके पहले पूर्व मंत्री व वरीय बीजेपी नेता डॉ. सीपी ठाकुर ने भी राज्य की नीतीश सरकार पर लापरवाही का बड़ा आरोप लगा दिया। उन्होंने कहा कि बीमारी को लेकर सरकार देर से जागी। सरकार ने बीमारी को गंभीरता से नहीं लिया। सीपी ठाकुर ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को खुद मुजफ्फरपुर जाकर देखना चाहिए था।
जानिए बीमारी के लक्षण
एईएस के लक्षण अस्पष्ट होते हैं, लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि इसमें दिमाग में ज्वर, सिरदर्द, ऐंठन, उल्टी और बेहोशी जैसी समस्याएं होतीं हैं। शरीर निर्बल हो जाता है। बच्चा प्रकाश से डरता है। कुछ बच्चों में गर्दन में जकड़न आ जाती है। यहां तक कि लकवा भी हो सकता है।
डॉक्टरों के अनुसार इस बीमारी में बच्चों के शरीर में शर्करा की भी बेहद कमी हो जाती है। बच्चे समय पर खाना नहीं खाते हैं तो भी शरीर में चीनी की कमी होने लगती है। जब तक पता चले, देर हो जाती है। इससे रोगी की स्थिति बिगड़ जाती है।
वायरस से होता राग, ऐसे करें बचाव
यह रोग एक प्रकार के विषाणु (वायरस) से होता है। इस रोग का वाहक मच्छर किसी स्वस्थ्य व्यक्ति को काटता है तो विषाणु उस व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। बच्चे के शरीर में रोग के लक्षण चार से 14 दिनों में दिखने लगते हैं। मच्छरों से बचाव कर व टीकाकरण से इस बीमारी से बचा जा सकता है।
10 सालों में 450 से अधिक बच्चों की मौत
विदित हो कि पिछले 10 सालों के दौरान उत्तर बिहार के 450 से अधिक बच्चों की मौत एईएस या इंसेफेलौपैथी से हो गई है। वर्ष 2012 व 2014 में इस बीमारी के कहर से मासूमों की ऐसी चीख निकली कि इसकी गूंज पटना से लेकर दिल्ली तक पहुंची थी। बेहतर इलाज के साथ बच्चों को यहां से दिल्ली ले जाने के लिए एयर एंबुलेंस की व्यवस्था करने का वादा भी किया गया। मगर, पिछले दो-तीन वर्षों में बीमारी का असर कम होने पर यह वादा हवा-हवाई ही रह गया। पर इस वर्ष बीमारी अपना रौद्र रूप दिखा रही है। इस साल तो मौत का आंकड़ा 10 सालों में सर्वाधिक हो गया है।
वर्षवार एईएस से मौत, एक नजर
2010: 24
2011: 45
2012: 120
2013: 39
2014: 86
2015: 11
2016: 04
2017: 04
2018: 11
2019: 132*
(*अब तक)
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