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छह अप्रैल से नवरात्र की शुरुआत, जानें अपनी राशि के अनुसार कैसे करनी है पूजा

इस बार नवरात्रि में पांच सर्वार्थ सिद्धि दो रवि योग का संयोग बनने से इस दिन की महत्ता बढ़ गई है। अापको कैसे करनी है पूजा इस खबर में जानें।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Tue, 26 Mar 2019 10:00 AM (IST)Updated: Tue, 26 Mar 2019 10:00 AM (IST)
छह अप्रैल से नवरात्र की शुरुआत, जानें अपनी राशि के अनुसार कैसे करनी है पूजा

पटना, जेएनएन। नवरात्र चैत्र शुक्ल प्रतिपदा छह अप्रैल से आरंभ होकर 14 अप्रैल रामनवमी के दिन समाप्त होगा। चैत्र नवरात्र में मां दुर्गा के नौ रूपों की उपासना होगी। पंडित राकेश झा ने कहा कि इस बार चैत्र नवरात्रि पर कई शुभ संयोग बन रहा है। इस बार नवरात्रि में पांच सर्वार्थ सिद्धि, दो रवि योग का संयोग बन रहा है। शुभ संयोग में मां दुर्गा की आराधना करने से भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण होने के साथ धन और धर्म की वृद्धि होगी।

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रेवती नक्षत्र व वैधृति योग में नवरात्र आरंभ

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा छह अप्रैल दिन शनिवार को वासंतिक नवरात्र रेवती नक्षत्र एवं वैधृति योग में आरंभ होकर 14 अप्रैल दिन रविवार को विजया दशमी के साथ संपन्न होगा। नवरात्र में मां दुर्गा अपने भक्तों का दर्शन देने के लिए घोड़ा पर सवार हो आ रही हैं। माता का घोड़ा पर आगमन भक्तों के लिए शुभ फलदायी है। भक्तों को मनचाहा वरदान मिलने के साथ सिद्धि की प्राप्ति होगी।

वहीं राजनीति क्षेत्र में उथल-पुथल होगा। माता की विदाई महिष यानि भैंसा पर होगी। नवरात्र में माता को प्रसन्न करने के लिए  दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा, बीज मंत्र का जाप, भगवती पुराण आदि का पाठ करना शुभ होगा। नवरात्र का आरंभ कलश स्थापना और पूजा अर्चना से होगी। मां की आराधना के पूर्व कलश को विधि विधान से पूजा अर्चना करना जरूरी है। कलश की स्थापना रेवती नक्षत्र में होगा।

कन्या पूजन से पूर्ण होगी मनोकामना

चैत्र नवरात्र में कन्या पूजन का विशेष महत्व है। आचार्य विनोद झा वैदिक ने कहा कि नवरात्र में छोटी कन्याओं में माता का स्वरूप होता है। तीन वर्ष से लेकर नौ वर्ष की कन्याओं का पूजन फलदायी होता है। एक कन्या की पूजा से एश्वर्य, दो कन्या की पूजन से भोग और मोक्ष, तीन कन्याओं के पूजन से धर्म, अर्थ और काम, चार की पूजा से राज्यपद, पांच की पूजा से विद्या, छह की पूजा से सिद्धि, सात की पूजा से राज्य, आठ की पूजा से संपदा और नौ कन्याओं की पूजा से प्रभुत्व की प्राप्ति होती है।

नौ शुभ संयोग में वासंतिक नवरात्र

6 अप्रैल- घट स्थापना रेवती नक्षत्र में

7 अप्रैल- सर्वार्थ सिद्धि शुभ योग द्वितीया

8 अप्रैल- कार्य सिद्धि प्रीति योग तृतीया

9 अप्रैल- सर्वार्थ सिद्धि योग चतुर्थी

10 अप्रैल- लक्ष्मी पंचमी व सर्वार्थ सिद्धि योग

11 अप्रैल- षष्ठी तिथि रवियोग

12 अप्रैल- सप्तमी तिथि सर्वार्थसिद्धि योग

13 अप्रैल- अष्टमी तिथि स्मार्त मतानुसार व सुकर्मा योग

14 अप्रैल- रवि-पुष्य नक्षत्र और सर्वार्थ सिद्धि योग नवमी वैष्णव मतानुसार

कलश स्थापना के शुभ मुहूर्त

प्रात: काल 05.47 बजे से दोपहर 02.58 बजे तक

गुली काल मुहूर्त -  सुबह 05.37 बजे से 07.11 बजे तक

अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 11.30 बजे से 12.18 बजे तक

राशि के अनुसार करें मां की आराधना

मेष - रक्त चंदन, लाल पुष्प और सफेद मिष्ठान अर्पण करें।

वृष -  पंचमेवा, सुपारी, सफेद चंदन, पुष्प चढ़ाएं।

मिथुन - केला, पुष्प, धूप से पूजा करें।

कर्क - बताशा, चावल, दही का अर्पण करें।

सिंह - तांबे के पात्र में रोली, चंदन, केसर, कर्पूर के साथ आरती करें।

कन्या - फल, पान पत्ता, गंगाजल मां को अर्पित करें।

तुला - दूध, चावल, चुनरी चढ़ाएं और घी के दीपक से आरती करें।

वृश्चिक - लाल फूल, गुड़, चावल और चंदन के साथ पूजा करें।

धनु - हल्दी, केसर, तिल का तेल, पीत पुष्प अर्पित करें।

मकर - सरसों तेल का दीया, पुष्प, चावल, कुमकुम और हलवा मां को अर्पण करें।

कुंभ -पुष्प, कुमकुम, तेल का दीपक और फल अर्पित करें।

मीन - हल्दी, चावल, पीले फूल और केले के साथ पूजन करें।


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