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National Consumers Day: उपभोक्ता करें माफ, यहां इंसाफ है ख्वाब

राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस हर साल 24 दिसंबर को मनाया जाता है। उपभोक्ताओं के लिए पांच लाख तक के वाद के लिए कोर्ट शुल्क माफ है। उपभोक्ता बिना अधिवक्ता खुद अपनी बहस कर सकते हैं। हालांकि इंसाफ मिलना ख्वाब जैसा है।

By Sumita JaiswalEdited By: Published: Wed, 23 Dec 2020 08:52 PM (IST)Updated: Wed, 23 Dec 2020 08:52 PM (IST)
National Consumers Day: उपभोक्ता करें माफ, यहां इंसाफ  है ख्वाब
राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस , सांकेतिक तस्‍वीर ।

पटना, दिलीप ओझा । बिहार के डेढ़ दर्जन जिला उपभोक्ता आयोगों में वादों पर सुनवाई सुचारु रूप से नहीं हो पा रही है। कारण, आयोग का अधूरा होना है। कुछ जिलों में सप्ताह में दो दिन ही कोर्ट लग रहा है। पटना जिला आयोग में 5000 वाद, और राज्य आयोग में 2200 वाद लंबित पड़े हैं। 90 दिनों में उपभोक्ताओं को न्याय देने का प्रावधान है, लेकिन यहां 10 वर्ष के वाद भी सैकड़ों वाद लटके पड़े हैं।

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क्यों बंद है काम :

प्रावधान के अनुसार, जिला फोरम में सुनवाई के लिए एक चेयरमैन (सेवानिवृत्त जिला जज या समकक्ष) और दो सदस्य (एक पुरुष, एक महिला) का होना अनिवार्य है। हालांकि, एक सदस्य के रहने पर भी चेयरमैन सुनवाई कर सकते हैं। बिहार के 18 जिलों में कहीं चेयरमैन हैं तो कहीं सदस्य नहीं, कहीं सदस्य हैं तो चेयरमैन नहीं। इस वजह से सुनवाई नहीं हो पा रही है।

पटना का हाल भी बेहाल

पटना जिला आयोग में भी चेयरमैन नहीं हैं। हाजीपुर जिला आयोग के चेयरमैन सप्ताह में दो दिन (बुधवार व गुरुवार) सुनवाई के लिए आते हैं। हालांकि, राज्य आयोग में सुनवाई हो रही है। जिला और राज्य आयोग में सदस्यों की भी कमी है। आयोगों में स्टॉफ की भी कमी है। आउटसोर्सिंग से काम चल रहा है। 13 जिला आयोगों में तो स्टॉफ ही नहीं हैं।

बिहार राज्य उपभोक्ता अधिवक्ता संघ के अध्‍यक्ष सत्‍येंद्र दुबे ने कहा कि अपरिहार्य कारणों से उपभोक्ताओं को न्याय मिलने में विलंब हो रहा है। 10 वर्ष पुराने कई मामलों में फैसला नहीं आया है। इसे दुरुस्त करने के लिए सरकार कोशिश कर रही है।

कुछ  फैक्‍ट्स एक नजर में :

- 5000 के करीब वाद पटना जिला आयोग में पड़े हैं लंबित

- 2200 राज्य आयोग में पेंडिंग

-डे ढ़ दर्जन जिला आयोग में सदस्य व अध्यक्ष की कमी से काम प्रभावित

- 1986 में इसी दिन उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम विधेयक पारित हुआ था। संशोधन भी हुए।


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