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बदलाव के लिए बोलना पड़ेगा, सात दिन चुप रहकर बोले थे बुद्ध

दहेज कुरीति को खत्म करने के लिए दैनिक जागरण के चल रहे अभियान को पूरे बिहार में खूब सराहना मिल रही है। लोग इस अभियान से प्रेरित होकर दहेज ना लेने और दहेज ना देने की बात कर रहे हैं।

By Kajal KumariEdited By: Published: Wed, 06 Dec 2017 10:17 AM (IST)Updated: Wed, 06 Dec 2017 05:34 PM (IST)
बदलाव के लिए बोलना पड़ेगा, सात दिन चुप रहकर बोले थे बुद्ध

पटना [विनय मिश्र]। भीड़ में एक हाथ हिलता दिखा। नहीं का इशारा था। जोर-जोर से। काले-सफेद बालों को करीने से कान के पीछे संवारकर बैठीं वह महिला कुछ कहना चाह रही थीं। चेहरे पर उम्र की सलवटें थीं। वह विधायकजी के उस कथन का विरोध कर रही थीं, जिसमें वह दहेज के लिए बेटे की माताओं को दोषी बता रहे थे।

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टेकारी के विधायक अभय कुशवाहा दो बार बोले, निश्चित तौर पर दहेज की इस कुरीति के लिए वे माताएं भी दोषी हैं, जो बेटे की शादी के पहले लिस्ट बनाती रहती हैं कि उन्हें बहू के मायके से क्या-क्या चाहिए।

निश्चित तौर पर विधायक जी की बात सही थी, लेकिन हाथ हिलाकर, सिर हिलाकर, मुस्कुराकर और अगल-बगल बैठीं सहेलियों की हामी भराकर महिला जताती रहीं कि सभी माएं ऐसी नहीं होंती। वह तो कत्तई ऐसा नहीं करेंगी। किसी जवान होते बेटे की माता थीं वह।   

गरिमा ने बताया राष्ट्रप्रेम क्या है

माता की गरिमा, बेटी के सुख, समाज के कल्याण और प्रशासन की कटिबद्धता की बात कहते हुए एसएसपी गरिमा मलिक के स्वर ऊंचे हुए। मुट्ठियां सख्त हुईं। चश्मे से झांक रही आंखों में उम्मीद की चमक दिखी। वह जो बोलीं, जमकर बोलीं। मशाल की रोशनी को अंतस की ज्वाला से जोड़ा। जज्बे से जोड़ा और कह गईं कि दहेज का समर्थन कुकर्म है और दहेज जैसी कुरीतियों को समाज से हटाने की लड़ाई असली राष्ट्रभक्ति।

कमिश्नर जितेंद्र श्रीवास्तव निकलने लगे तो गरिमा से बोले, शानदार स्पीच था तुम्हारा...। सांसद हरि मांझी भी आह्लादित दिखे। बोले, मैंने दो बेटों की शादी बिना दहेज की कर दी। दो बार उन्होंने सुशील कुमार मोदी के बेटे की शादी का उदाहरण दिया। जाते-जाते बोले, अब पंचायतों में वह दहेज के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाएंगे।

बदलाव के लिए बोलना ही पड़ता है

दहेज मुक्ति रथ ज्ञान और मोक्ष की धरती गया पहुंचा, तो स्वागत संभाषण में हमे याद दिलाया गया कि यहां सब देवता पैदल आए। यानी सबको आना पड़ा। अब भी सबको आना पड़ता है। वैसे भी यहां के इतिहास, भूगोल, वनस्पति और जीवन से बुद्ध जुड़े हैं। सीता, राम, कृष्ण आए थे। ऐसी धरती पर दहेज मुक्ति अभियान की जवानी निखरने लगी। 15 दिन हो गए दैनिक जागरण के इस अभियान के।

कहते हैं संबोधि के बाद बुद्ध सात दिन चुप रहे थे। ज्ञान की गगरी पूरी भरी तो छलकना बंद हुआ। वह संकोच में थे। दूसरों को कैसे ज्ञान दें। लोग उन्हें समझ नहीं पाएंगे। उस समय का समाज, गांव, नगर, सोच सब उनके देखे थे। सब अपनी राह चल रहे थे, उन्हें छेड़े कौन? फिर बुद्ध बोले।

उन्हें समझना पड़ा कि बदलाव के लिए बोलना ही पड़ता है। जो समझते हैं, वे संकोच न करें। वह यह न सोचें कि उनकी नई बात कोई समझेगा नहीं। दहेज मुक्ति रथ का यही संदेश गया में भी गूंजा कि बदलाव के लिए बोलना पड़ेगा।

एसएसपी गरिमा मलिक कह रही थीं, हम तो कटिबद्ध हैं, क्योंकि दहेज लेना कानूनी अपराध है। हम अपनी ड्यूटी निभा रहे, लेकिन लोग अपनी ड्यूटी कब निभाएंगे? यह मशाल उनके हृदय में कब जलेगी?  बदलाव के लिए बोलना पड़ेगा। विधायक जी ने कहा, आप कहें कि हम बिना दहेज की शादी करने जा रहे। लोटा लेकर हम समधी मिलन को चलेंगे। बिना दहेज करने वालों के दुआर की शोभा बढ़ाने जाएंगे।

पंचइती होगी...दहेज की खबर तो दीजिए 

मुखिया नीलू कुमारी को सम्मानित किया गया। गांव में दहेज को लेकर टूट रही शादी को उन्होंने संभाला। फिर दहेज के बिना विवाह कराया। माइक थामने पर वह थोड़ी लडख़ड़ाईं। फिर अपने अंदाज में कहानी सुनाती गईं।

बोलीं, दहेज नहीं देने पर शादी टूटती है, तो गांव-समाज में शिकायत कीजिए। पंचइती होगी। कौन नहीं मानेगा? मानना पड़ेगा। मैंने अपने गांव में मनवाई अपनी बात। फिर सम्मान पाकर मुखिया जी की आंख भर आई। गांव के लोग कहते हैं कि मुखिया लोग बस कमाना जानते हैं। एक बेटी का घर बसाने वाली इस मुखिया को देखकर लगा कि कुएं के मेढक हैं वैसे लोग।

हमने की, हमने भी की 

इस रथ के साथ चलते-चलते हम वैसे सैकड़ों लोगों से मिल चुके हैं, जो कहते हैं कि हमने तो बिना दहेज की शादी की। 30 साल पहले जिनकी शादी हुई, उनके भी दावे सामने आए। ये लोग वैसे ही हैं जैसे एलएलबी डिग्री लेकर कोई शिक्षक बना है तो कोई पत्रकार।

एक दिन अचानक काला कोट पहनकर कहता है कि हम भी वकील हैं। मन खुश हो जाता है, ऐसे लोगों को देखकर। समाज में हजारों समाज सुधारक छिपे हैं। हम खोजने निकले हैं ऐसे लोगों को। बक्से में आप भी बिना दहेज की शादी वाली डिग्री बंद कर बैठे हैं, तो आपको सामने आना चाहिए महाराज। 


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