खुशियों में दिया साथ तो गम में भी तेरे संग रहेंगे उदास, देखी है कहीं एेसी मिसाल
धर्म को लेकर आपस में जहां खून खराबा की खबरें आती रहती हैं वहीं सद्भावना और प्रेम की भी मिसाल देखने को मिलती है। पटना के दुल्हिन बाजार का सिंघाड़ा गांव इसकी मिसाल है। जानिए..
पटना [अमित कुमार]। कहते हैं, इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है। राजधानी से करीब 40 किमी दूर दुल्हिन बाजार प्रखंड का सिंघाड़ा गांव एक बार फिर इसकी तस्दीक कर रहा है। तीन दिनों पूर्व कुएं की जहरीली गैस से सुरेश साव के दो बेटों और छोटे भाई की मौत हो गई थी। इस बात का सदमा पूरे गांव में ऐसा पसरा कि मुस्लिम परिवारों ने मुहर्रम की तैयारी ही फीकी पड़ गई है।
बुधवार को मुहर्रम की चार तारीख होने के बावजूद गांव के इमामबाड़ों में न तो डंका बजा न ही पारंपरिक तरीके से लाठी भांजने का रिहर्सल हुआ। सिंघाड़ा पंचायत के मुखिया व अखाड़ा के खलीफा मो. नईम कुरैशी कहते हैं, गांव में एक ही परिवार के तीन लोगों की हुई मौत के बाद से ही इमामबाड़ा के समक्ष होने वाली गतिविधियां शांत पड़ गई हैं।
अखाड़ा सूना पड़ा है। पहलाम की तैयारी को लेकर कोई उत्साह नहीं है। वृद्ध, युवा से लेकर बच्चे तक गमजदा परिवार के दुख में शामिल हैं। शाम को तैयारी के लिए न खलीफा पहुंचे और न ही उस्ताद।
पहले, मुहर्रम का चांद देखे जाने के साथ ही गांव में डंका बजने लगा था। हर धर्म व समाज के लोग मिल कर मुहर्रम की तैयारी में जुटने ही वाले थे कि बड़ा हादसा हो जाने के बाद से सन्नाटा पसर गया।
सिंघाड़ा गांव के मो. मतीन, मो. चांद अंसारी, सगीर राईन, शाहिद रजा, शकील अहमद खलीफा ने बताया कि अब तक परंपरागत तरीके से लाठी भांजने, करतब दिखाने और ताजिया को सजाने की कोई तैयारी नहीं हुई है। इस बार ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है। सदस्य मो. जावेद अंसारी, मो. दिलशाद ने बताया कि कोपा और
निजामपुर से आने वाले ताजिया का वर्षों से सिंघाड़ा के अखाड़ा में होता आ रहा मिलन भी इस बार नहीं होगा। सिंघाड़ा मुहर्रम अखाड़ा मैदान के उस्ताद मो. शमीम इराइन ने बताया कि इस बार मुहर्रम पर अखाड़ा मैदान की सजावट नहीं की जाएगी। अखाड़ा पहलाम के लिए बैंड और डीजे की व्यवस्था नहीं होगी।
एक साथ तीन लोगों की मौत जिस कुएं में उतरने से हुई थी उसकी जांच सरकारी स्तर पर नहीं कराए जाने का आक्रोश ग्रामीणों में है। इनका कहना है कि कुएं में जहरीली गैस कैसे उत्पन्न हुई? इसकी जांच होनी चाहिए। सिंघाड़ा में करीब 500 परिवार रहते हैं, जिसमें 200 से अधिक मुस्लिम परिवार हैं।
1968 में नहीं मना था ईद का जश्न
ग्रामीण बताते हैं कि गांव में यह दूसरी घटना है। इससे पहले 1968 में गांव के चार लोगों की मौत हो गई थी। उस समय गांव में ईद की तैयारी चल रही थी। ग्रामीण कामेश्वर यादव ने बताया कि प्रेमलाल यादव उर्फ पहलवान जी (50 वर्ष) मानसिक रूप से बीमार थे। उनके घर में पूजा थी।
पहलवान जी ने प्रसाद में जहर मिला दिया था, जिसे खाने से परिवार के सिगासन यादव (25 वर्ष), सोनमतिया कुमारी (9 वर्ष), सिरीतिया कुमारी (10) और प्रेमलाल यादव उर्फ पहलवान जी (50 वर्ष) की मौत हो गई थी। मातम ऐसा पसरा कि उस साल ईद का जश्न ही नहीं मना।