दहेज हत्या: आंकड़े भी बताते हैं बेटियों के दर्द की दास्तां
बिहार में हर रोज दहेज के लिए तीन बेटियों की हत्या कर दी जाती है। बेटियों की हत्या कोई बाहरी व्यक्ति नहीं करता, ये हत्याएं उनके अपने ही कर देते हैं।
पटना [सुनील राज]। आंकड़े कभी झूठ नहीं कहते। वे तो हमें आइना दिखाते हैं। देश दुनिया में जो घट रहा है उसकी बानगी बयां करते हैं। आंकड़े चीख-चीख कर कह रहे हैं कि अकेले बिहार में हर रोज दहेज के लिए तीन बेटियों को मार दिया जाता है।
बेटियों की यह हत्या कोई बाहरी व्यक्ति नहीं करता। यह हत्याएं तो उनके अपने ही करते हैं। जिन्होंने शादी के मंडप में अग्नि के सात फेरे लेते हुए वचन उठाए थे कि वे हमारी बेटी को अपने घर की लक्ष्मी बनाकर रखेंगे। अफसोस, वे ही चंचला लक्ष्मी के मोहपाश में फंस घर की लक्ष्मी को पहले प्रताडि़त करते हैं और फिर उसे असमय ही मौत की जद में भेज देते हैं।
ऐसा नहीं कि सिर्फ बिहार में बेटियों को दहेज के लिए सताया या मार दिया जा रहा हो, कमोबेश पूरे देश की यह स्थिति है। राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े तस्दीक करते हैं कि जहां बिहार में प्रत्येक दिन तीन लड़कियों को दहेज का दानव लील रहा है वहीं देश में ऐसी वारदातों की संख्या औसत 21-22 के करीब है।
भारत सरकार की ओर से दो वर्ष पूर्व राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े सार्वजनिक किए गए। इसमें बताया गया कि बीते तीन साल के दौरान चौबीस हजार सात सौ इकहत्तर बेटियों को दहेज का दानव निगल गए।
दहेज हत्या में बिहार दूसरे पायदान पर
दहेज हत्या के मामलों में पहला नंबर बिहार के पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश का है। उत्तर प्रदेश में तीन साल में सात हजार अड़तालिस बेटियों को मार दिया गया। इस पायदान में बिहार का नंबर दूसरा रहा। यहां करीब 3830 बेटियां दहेज की आग में समा गईं।
तीसरे नंबर पर ब्यूरो ने मध्यप्रदेश को रखा। मध्यप्रदेश में 2252 बेटियों की जान दहेज की वजह से गई। दरअसल दहेज से जुड़ी ये हत्याएं बेटियों की नहीं थी, ये हत्याएं तो रिश्ते और विश्वास के साथ ही विवाह जैसी सांस्कृतिक मान्यताओं की भी है।
यह सब उस वक्त हो रहा है जब समाज में समानता के साथ ही शिक्षा का स्तर बढ़ा है और बढ़ भी रहा है। पर इन बदलावों और सुधारों के बीच भी ऐसी ताकतें आज भी हैं जो बेटी और बेटियों में फर्क करती हैं।
प्रेमवश दी गई भेंट बनी जान लेनी की वजह
ऐसे लोग आज तक यह नहीं स्वीकार कर पाए हैं कि विवाह एक पवित्र सामाजिक बंधन है, जो समाज में प्रचलित एवं स्वीकृत विधियों द्वारा एक लड़के और लड़की को कानूनी रूप से साथ रहने एवं पारिवारिक जीवन जीने की आजादी देता है।
लड़की शादी के बाद परिवार का हिस्सा बनने के लिए अपने साथ सौगात लेकर आए, यह कतई जरूरी नहीं। कानून भी इसकी इजाजत नहीं देता। असल में सौगात का प्रचलन तो पिता का अपनी पुत्री से प्रेम प्रदर्शित करने मात्र का एक जरिया था।
प्राचीन समय में पिता अपनी पुत्री को विवाह के उपरांत प्रेमवश जमीन, जेवरात जैसे कुछ उपहार दिए करते थे, पर समय के साथ यह प्रचलन मानो प्रथा बन गई और समाज में विकृत रूप में सामने आई।
कानून तो बना पर सख्ती से अमल में आया नहीं
बेटे के लिए बाप बोलियां लगाने लगे। कन्या के साथ मोटी रकम, धन-धान्य, जेवरात मानो लड़के वालों के लिए जन्मसिद्ध अधिकार बन गए। जब ये सब नहीं मिला तो बेटियां दहेज की भेंट चढऩे लगी। समाज में तेजी से फैलती इस विकृति से निपटने के लिए कानून तो बना पर जिस कदर अमल में आना चाहिए आया नहीं। अगर आया होता तो बेटियां यूं बे-मौत मारी न जा रही होतीं।
कानून कहता है दहेज लेना और देना दोनों ही अपराध हैं। ऐसे व्यक्ति को छह महीने की सजा तक हो सकती है पर लोग रुक कहां रहे। दहेज हत्या के लिए तो उम्र कैद तक का प्रावधान है बावजूद बेटियां मारी जा रही हैं।
शोषण प्रणाली की व्यापक व्यवस्था बना दहेज
आज दहेज समुदाय के हर वर्ग में पहुंच गया है। अब इसका संबंध अमीरी गरीब से कतई नहीं रहा। न ही सम्प्रदाय, जाति का इसमें भेदभाव है। लड़के के परिवार की हर मांग पूरी करना मानो लड़की पक्ष के लिए अनिवार्य व्यवस्था बन गई है।
वर पक्ष को मानो कानून ने यह अधिकार दे दिया हो कि वह लड़की के घर वालों से कुछ भी मांग सकता है। असल में दहेज ने शोषण प्रणाली की एक व्यापक व्यवस्था का रूप ले लिया है। सही मायने में दहेज शब्द के अंदर से ही महिलाओं, बेटियों के खिलाफ होने वाली हिंसा की गूंज सुनाई देती है जो जोर पकड़ती जा रही है, लगातार चिल्ला रही है।
बिहार के कुछ प्रमुख जिलों में दर्ज हैं दर्द की प्राथमिकी
जिला केस हत्या
* पटना 231 105
* मुजफ्फरपुर 190 53
* भागलपुर 30 30
* गया 123 54
* प. चंपारण 137 30
* भोजपुर 125 43
क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े 2015