जीने के लिए उम्मीद देती है फिल्में : कमलेश
लेखक फिल्म का पहला स्टार होता है। फिल्म सबसे पहले लेखक के दिमाग में बनती है
पटना। लेखक फिल्म का पहला स्टार होता है। फिल्म सबसे पहले लेखक के दिमाग में बनती है। लेखक एक दुनिया की रचना करता है। उसके किरदारों की किस्मत का फैसला लेखक करता है। ये बातें सौदागर, दिल, रंग दे बसंती, जज्बा जैसी फिल्मों की स्टोरी लिखने वाले हिदी सिनेमा के जाने-माने पटकथा लेखक कमलेश पांडेय ने कहीं। वे रविवार को पाटलिपुत्र सिने सोसाइटी द्वारा आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम में प्रशंसकों से मुखातिब थे।
उन्होंने कहा कि सिनेमाघरों में फिल्में देखना गु्रप थेरेपी की तरह है। थियेटर इमोशनल जिम है। थियेटर में भावों की कसरत होती है। वहां दबी हुई भावनाएं बाहर आती हैं। सिनेमाघरों से बाहर निकलने के बाद नयी भावना जन्म लेती है। उन्होंने युवा लेखकों के बारे में बताया कि मुंबई फिल्म व टीवी लेखकों के हक के लिए कार्य कर रही है। स्क्रीन राइट एसोशिएशन युवा लेखकों को मौका दे रही है। यह बात सच है कि फिल्म उद्योग अभिनेताओं के हाथ में है, लेकिन लेखकों का शोषण खत्म होगा। अब लेखकों को भी रॉयल्टी मिलती है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में फिल्मों में अच्छी कहानियों का अभाव है। सिनेमा व साहित्य के बीच एक ट्रैफिक बने ताकि सिनेमा को अच्छी कहानियां मिलें और साहित्यकारों को उनकी पहचान मिले। हमारे पास कई कहानियां हैं बस जरूरत है अवसर मिलने की। आज भी फिल्म जगत में अच्छी कहानियों की मांग है। उन्होंने कहा कि हमारे लेखक अगर लिखना बंद कर दें तो फिल्म जगत बेरोजगार हो जाएगा। उन्होंने 1955-65 की अवधि को हिदी फिल्मों का स्वर्णकाल बताया। उस समय के फिल्मकार लेखकों के साथ समय देते थे। 80 के दशक में जिसको कोई काम नहीं मिला, वहीं लेखक बन गया।
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