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शीर्ष रैंक पाने वाले छात्रों का मानना, मेधा की उड़ान में मोबाइल बनते हैं बाधा

प्रतियोगी परीक्षाओं में बड़ी सफलता हासिल करने वाले छात्र अब इसके मोबाइल के नकारात्मक पहलू का जिक्र करने लगे हैं। आइए जानते हैं क्या कहते हैं वो।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Mon, 17 Jun 2019 01:50 PM (IST)Updated: Mon, 17 Jun 2019 01:50 PM (IST)
शीर्ष रैंक पाने वाले छात्रों का मानना, मेधा की उड़ान में मोबाइल बनते हैं बाधा
शीर्ष रैंक पाने वाले छात्रों का मानना, मेधा की उड़ान में मोबाइल बनते हैं बाधा

अनिल तिवारी, पटना। क्या सचमुच मेधा की उड़ान भरने में मोबाइल फोन का इस्तेमाल, इसपर देर तक बातें, चौबीस घंटे इंटरनेट खोल सोशल साइटों पर सक्रियता, गेम खेलना, यू-ट्यूब पर इंटरटेनमेंट की दुनिया में खोए रहना बड़ी बाधा बन रहा है? मनोचिकित्सक तो पहले से ही इससे इत्तेफाक रखते हैं, सावधान करते हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं में बड़ी सफलता का परचम लहराने वाले छात्र भी अब इसके नकारात्मक पहलू का जिक्र करने लगे हैं।

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सरकारी इंजीनियरिंग संस्थानों में दाखिले के लिए सबसे बड़ी परीक्षा जेईई एडवांस्ड का परिणाम जारी होने के बाद शीर्ष रैंक पाने वालों की टिप्पणी उन युवाओं के लिए खासा सबक है जो मोबाइल लेकर सोते हैं और सुबह उठते ही इससे चिपककर दैनिक क्रियाओं की अनदेखी करते हैं। इन्हें ना तो समय से नहाने-धोने, नाश्ते और खाने की फिक्र है और ना ही पढ़ाई और कॅरियर की चिंता।

पढ़ाई के लिए इस्तेमाल करते हैं मोबाइल-लैपटॉप

मोबाइल फोन के लती बच्चों और युवाओं के लिए आइआइटी टॉपर महाराष्ट्र के कार्तिकेय चंद्रेश गुप्ता बड़ा उदाहरण हैं। उनकी ऊंची उड़ान की वजह सिर्फ की-पैड फोन है, सोशल मीडिया से उनकी बिल्कुल भी दोस्ती नहीं है। वो मानते हैं कि ऊंचा मुकाम पाने में इंटरनेट की लत, महंगे मोबाइल पर फेसबुक, वाट्स एप चैटिंग बड़ी बाधाएं हैं। हां, लैपटॉप और टैब इसलिए काम का है, क्योंकि यह पढ़ाई की राह आसान करता है।

थोड़ी छूट देना है एकदम सही

आइआइटी परीक्षा में ही द्वितीय स्थान प्राप्त करने वाले उत्तर प्रदेश के हिमांशु गौरव ङ्क्षसह को भी बड़ी सफलता सोशल मीडिया से दूरी बनाए रखने पर ही मिली है। हालांकि जरूरी कार्य के लिए वाट्सएप का थोड़ा बहुत इस्तेमाल करने की छूट को वह सही मानते हैं। कहते हैं कि उन्होंने सोशल मीडिया में सिर्फ वाट्सएप का इस्तेमाल किया।

कोर्स से जुड़े मैटर के लिए यू-ट्यूब बना सहारा

गुवाहाटी जोन में छात्रा वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाली पटना की आकृति ने भी पढ़ाई के लिए खुद को मोबाइल और सोशल मीडिया से काफी दूर रखा। उसका कहना है कि मोबाइल व सोशल मीडिया का इस्तेमाल सिर्फ जरूरत भर करना चाहिए। यूट्यूब पर इंटरटेनमेंट की जगह कोर्स से संबंधित वीडियो सर्च करना चाहिए। हालांकि तृतीय स्थान पर रहे हाजीपुर मूल के अर्चित बुबना इसका अपवाद भी हैं। उन्हें पढ़ाई के अलावा वीडियो गेम खेलना पसंद है।

लगातार पढ़ाई से बचें

आइआइटी टॉपर कार्तिकेय चंद्रेश गुप्ता कहते हैं परीक्षाओं में बड़ी सफलता हासिल करने के लिए मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया से दूरी बनाने के साथ लगातार पढ़ाई से बचना चाहिए। दिमागी तनाव से मुक्ति और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए ब्रेक लेना जरूरी है, हर दो घंटे पढऩे के बाद थोड़ा ब्रेक लेने  से मस्तिष्क रिचार्ज हो जाता है।

मोबाइल रेडिएशन से बढ़ रहा चिड़चिड़ापन

यूपी के जाने-माने मनोचिकित्सक डॉ. आरके ठुकराल कहते हैं कि किसी भी चीज की लत या आदत इंसान को नुकसान पहुंचाती है। आजकल अभिभावक बच्चों में मोबाइल और इंटरनेट की लत से परेशान हैं। छोटे बच्चे भी पबजी जैसे गेम खेलकर दुव्र्यवहार करने लगे हैं। युवा तो बात ही नहीं सुनते। मोबाइल रेडिएशन बच्चों में चिड़चिड़ापन बढ़ा रहा है और गेम स्वभाव को उग्र कर रहा है। सावधानी ही इसका सही इलाज है।

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