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बिहार में बैंकों की बैलेंस शीट से गायब हो गए 716 करोड़ के लोन

पटना। साख-जमा अनुपात में सुधार के लिए राज्य सरकार की ओर से बैंकों पर दबाव बनाया जाता है लेकिन स्थिति में सुधार नहीं आ रहा।

By JagranEdited By: Published: Sun, 30 Jun 2019 06:49 PM (IST)Updated: Mon, 01 Jul 2019 06:39 AM (IST)
बिहार में बैंकों की बैलेंस शीट से गायब हो गए 716 करोड़ के लोन
बिहार में बैंकों की बैलेंस शीट से गायब हो गए 716 करोड़ के लोन

पटना। साख-जमा अनुपात में सुधार के लिए राज्य सरकार की ओर से बैंकों पर दबाव बनाया जाता है, लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि बार-बार दबाव के बावजूद बैंकों द्वारा बिहार में कर्ज देने से कतराने की बड़ी वजह डूबते लोन खाते हैं। आलम यह है कि साख बचाने के लिए बिहार में बैंकों को अपनी बैलेंस शीट से 716 करोड़ रुपये गायब करने पड़े हैं। बैंकिंग शब्दावली में कहें तो बट्टा खाते (राइट ऑफ) में डालने पड़े हैं। यह स्थिति तब है, जब बैंक बकाएदारों पर हर तरह के कानूनी हथकंडे अपनाकर थक चुके हैं। अब भी ऋण वसूली के लिए विभिन्न बैंकों द्वारा बकाएदारों पर पांच लाख 88 हजार 538 सर्टिफिकेट केस लंबित हैं। इन मुकदमों के चक्कर में बैंकों की चार हजार 266 करोड़ की राशि फंसी पड़ी है। अद्यतन रिपोर्ट के अनुसार बैंकों ने बिहार में 15 हजार दो करोड़ रुपये एनपीए (नॉन परफॉर्मिग एसेट्स) खाते में डाल दिए हैं। बिहार के लगभग हर दस लोन खातेदारों में से एक डिफॉल्टर है। इस भयावह वित्तीय आंकड़ों का खामियाजा बैंक लोन लेकर शिक्षा, उद्योग, कृषि जैसे क्षेत्र में कार्य कर भविष्य का सपना संजोने वाली युवा पीढ़ी भुगत रही है। शिक्षा के क्षेत्र में तो राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजना स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड से बैंकों ने अपने हाथ खींचे ही हैं, किसान क्रेडिट कार्ड, मुद्रा लोन आदि जैसी योजनाओं में भी स्थिति बेहतर नहीं है। ऋण वसूली में नहीं मिलता शासकीय सहयोग

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हाल ही में राज्यस्तरीय बैंकर्स कमेटी (एसएलबीसी) की बैठक में बैंकों ने 31 मार्च 2019 तक का आंकड़ा प्रस्तुत किया था। जमा अनुपात में ऋण देने का अनुपात वर्षो से बिहार में बदतर है। आंकड़ों के अनुसार राज्य के 38 में से 18 जिले आज भी ऐसे हैं, जहां साख-जमा अनुपात 40 प्रतिशत से नीचे है। बैंकों के अधिकारी बताते हैं कि ऋण वसूली में शासकीय सहयोग नहीं मिलने की वजह से डिफॉल्टरों की संख्या बढ़ रही। पब्लिक डिमांड रिकवरी (पीडीआर) एक्ट के तहत सभी जिलों में बड़ी संख्या में सर्टिफिकेट केस लंबित पड़े हैं। एसएलबीसी ने राज्य सरकार के समक्ष नीति में संशोधन कर मुकदमों की सुनवाई के लिए समय-सीमा निर्धारित करने का अनुरोध किया है, पर इस दिशा में नतीजा सिफर है। इसी तरह बकाएदारों की संपत्ति पर कब्जे के लिए सरफेसी एक्ट के तहत बड़ी संख्या में मुकदमे भी लंबित रहते हैं। हालांकि, एसएलबीसी की पिछली बैठक में इस मुद्दे को उठाने के बाद राज्य सरकार ने जिलाधिकारियों को पत्र लिखा है, लेकिन निर्धारित समय-सीमा में मुकदमों को निष्पादित करने की कोई कार्ययोजना तैयार नहीं हो पाई है।

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