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Bihar Lok Sabha Election Phase 7: सासाराम की चुनावी चर्चा के केंद्र में मीरा, 46 साल तक रहा परिवार का वर्चस्‍व

Bihar Lok Sabha Election Phase 7 सासाराम से आठ बार जगजीवन राम सांसद बने तो दो बार बेटी मीरा कुमार। इस बार यहां मीरा कुमार का मुकाबला सिटिंग सांसद छेदी पासवानसे है।

By Rajesh ThakurEdited By: Published: Sat, 18 May 2019 06:02 PM (IST)Updated: Sun, 19 May 2019 08:56 PM (IST)
Bihar Lok Sabha Election Phase 7: सासाराम की चुनावी चर्चा के केंद्र में मीरा, 46 साल तक रहा परिवार का वर्चस्‍व

पटना [राजेश ठाकुर]। बिहार के सासाराम में सातवें चरण में मतदान हो गया। इस सीट का नाम आजादी के समय शाहाबाद था। 1957 में इसका नाम सासाराम पड़ा। यहां से आठ बार जगजीवन राम सांसद बने तो दो बार उनकी बेटी मीरा कुमार। दोनों बाप-बेटी के कार्यकाल को मिला दें, तो कुल 46 साल होते हैं। जगजीवन राम देश के उपप्रधानमंत्री भी बने। मीरा कुमार लोकसभा की स्‍पीकर रहीं तथा राष्‍ट्रपति चुनाव में यूपीए की प्रत्‍याशी रहीं। इस बार भी यहां से मीरा कुमार कांग्रेस के​ टिकट पर किस्मत आजमा रही हैं और उनका मुकाबला एनडीए के भाजपा प्रत्‍याशी छेदी पासवान से है। हार-जीत के समीकरणों के बीच यहां की चुनावी चर्चा मीरा कुमार के इर्द-गिर्द ही घूम रही है। यहां से कौन जीतेगा, इसका खुलासा 23 मई को हो जाएगा। 

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आइए जानते हैं सासाराम का इतिहास
आजादी के बाद 1952 में लेकर 1984 तक लगातार आठ बार जगजीवन राम यहां से सांसद बने थे। वे 1952, 1957, 1962, 1967, 1971, 1975, 1977, 1980 और 1984 में यहां से जीते। 1952 में इस क्षेत्र का नाम शाहाबाद था, जबकि 1957 के परिसीमन में इसका नाम सासाराम बन गया। जगजीवन राम अपने क्षेत्र में 'बाबूजी' के नाम से फेमस थे। हालांकि, 1977 में जगजीवन राम ने कांग्रेस छोड़ दी थी। उनके निधन के बाद यहां से 1989 और 1991 में मीरा कुमार ने यहां से किस्मत आजमाई, लेकिन हार गयीं। बीच में मीरा कुमार बिजनोर और करोलबाग चली गईं और वहां से सांसद बनीं। इसके बाद वे सासाराम फिर आईं और 2004 तथा 2009 में सांसद बनीं। लेकिन 2014 में मोदी लहर में मीरा हार गईं। 

2009 में जीती थीं रिकॉर्ड मतों से
मीरा कुमार अपने पिता जगजीवन राम की पुश्तैनी सीट सासाराम से दो बार सांसद बनी हैं, जिसमें 2004 में उन्होंने रिकॉर्ड मतों से जीता है। 2004 में कांग्रेस प्रत्याशी रहीं मीरा कुमार को कुल 4 लाख 16 हजार 673 वोट आए थे, जबकि विरोधी भाजपा प्रत्याशी मुनिलाल पासवान को महज 1 लाख 58 हजार 411 वोट ही आए। इस तरह, मीरा कुमार ने विरोधी को 2 लाख 58 हजार 262 वोटों से हराया। हालांकि, 2009 में भी मीरा कुमार जीती थीं, लेकिन जीत का अंतर काफी कम हो गया। 2009 मेें मीरा को 1 लाख 92 हजार 213, ज​बकि विरोधी भाजपा उम्मीदवार मुनिलाल को 1 लाख 49 हजार 259 वोट मिले थे। इस तरह, जीत-हार का अंतर 42 हजार 954 वोटों का रहा।  
छेदी पासवान चौथी बार भी हराएंगे मीरा को या मामला पलटेगा 

इस बार सासाराम में भाजपा की ओर से छेदी पासवान फिर उम्मीदवार बने हैं। 2014 के मोदी लहर में भी छेदी पासवान ने मीरा कुमार को 63 हजार 327 वोटों से हराया था। 2014 में छेदी पासवान को 3 लाख 66 हजार 87 वोट आए थे, जबकि मीरा कुमार को 3 लाख 2 हजार 760 वोट मिले थे। खास बात कि छेदी पासवान इसके पहले भी मीरा कुमार को 1989 तथा 1991 में हरा चुके हैं। तब छेदी जदयू के टिकट पर चुनाव लड़े थे। एक बार फिर दोनों आमने-सामने हैं।

उठ रहे हैं सवाल
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि छेदी पासवान चौथी बार भी कांग्रेस की मीरा कुमार को हराएंगे या इस बार मीरा अपने बाबूजी की सीट को बचाते हुए पासा पलट देंगी? हालांकि छेदी पासवान 1996 और 1998 में सासाराम से हारे हैं, लेकिन तब मीरा कुमार मैदान में नहीं थीं। मीरा 2004 तथा 2009 में मुनिलाल को हराकर सांसद बनी थीं। इसके अलावा मीरा बिजनौर व करोलबाग से भी सांसद रह चुकी हैं। एक बार मीरा के इर्द-गिर्द सासाराम घूम रहा है तथा 23 मई को ही पता चलेगा कि बाजी किसके हाथ लगती है?

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