आईन-ए-अकबरी में है जिक्र कारोबारी शहर पटना का
दस-बारह साल पहले अचानक दिखी रियल एस्टेट की हलचल ने भी पटना के ग्रोथ रेट को बड़ी उछाल दी। पिछले कुछ सालों से यहां विकास दर 8-10 प्रतिशत के बीच बनी है। हाल के वर्षों में राज्य सरकार ने भी शहर में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य आरंभ किए।
पूर्वी भारत में कोलकाता भले ही आर्थिक गतिविधियों का बड़ा केंद्र हो, मगर पटना भी पीछे नहीं है। बेहतर आधारभूत संरचना के सहारे पटना फिर से अपने उस गौरव को वापस पाने की कोशिश में है, जो वर्षों पहले इसे हासिल था। तब पटना व्यापारिक गतिविधियों का पूर्वी भारत का सबसे बड़ा केंद्र था।
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आईन-ए-अकबरी में अबुल फजल ने पटना का जिक्र कागज, पत्थर और शीशे के उद्योग के बड़े सेंटर के रूप में किया है। 17वीं शताब्दी में पटना अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के बड़े केंद्र के रूप में उभरा। इससे पहले यह मत है कि पंद्रहवीं शताब्दी में उत्तर भारत के शासक शेरशाह सूरी के समय रुपये प्रचलन में आया। यही रुपये आज भारतीय अर्थव्यवस्था का मानक है।
शेरशाह ने बंगाल से पेशावर तक जिस ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण कराया उसका भी अर्थव्यवस्था को गति देने में ऐतिहासिक अवदान है। आजादी से ठीक पहले पटना शहर के आसपास कई चीनी मिलें थीं।
आज पटना को एक बार फिर से महत्वपूर्ण इकोनॉमिक सेंटर बनाने में कंस्ट्रक्शन सेक्टर, रियल एस्टेट और सर्विस सेक्टर अहम भूमिका निभा रहे हैं। नई सड़क, नए भवन और टेलीकॉम कपंनियों एवं आईटी के नए-नए सेंटर नजर आने लगे हैं। सरकार के स्तर से भी लगातार हो रही पहल ने पटना की वित्तीय गतिविधियों को तेज रफ्तार दी है।
पिछले कुछ वर्षों से बजट का बड़ा हिस्सा पटना को विभिन्न सुविधाओं से संपन्न बनाने पर खर्च हो रहा है। शहर का विस्तार भी हुआ है। देश की कई बड़ी कंपनियों ने पटना में अपने दफ्तर खोल लिए हैं। रोजगार के अवसर बढ़े हैं। इन प्रयासों का ही नतीजा है कि पटना की प्रति व्यक्ति आय कोलकाता के 1,08,372 रुपये से कुछ ही कम है।
हालांकि प्रदेश के अन्य शहरों की स्थिति ठीक इसके विपरीत है। पटना की प्रति व्यक्ति आय अभी 1.06 लाख रुपये है। इस प्रगति को विश्व बैंक ने भी नोटिस किया। वर्ल्ड बैंक की 2009 की एक रिपोर्ट ने पटना को बिजनेस करने के लिए देश में दूसरी सबसे बेहतर सिटी करार दिया है।
बात इस सर्वे तक ही नहीं रुकी रही। पिछले वर्ष की केंद्रीय उद्योग मंत्रालय की 'ईज आफ डूइंग बिजनेस' पर आई सर्वे रिपोर्ट में पटना की रैंकिंग पूर्व के मुकाबले और बेहतर दिखाई गई है। पटना की विभिन्न वित्तीय गतिविधियों पर नजर डालें तो आरंभ से ही पटना शिक्षा का हब रहा है।
चार दशक पहले प्राइवेट कोचिंग सेंटर के शुरू हुए चलन ने पटना की वित्तीय गतिविधियों को नई गति प्रदान की। साथ ही इलाज के लिए निजी क्लीनिक और अस्पताल भी खुलने लगे। पिछले कुछ सालों में इस सेक्टर ने काफी जोर पकड़ा है। पटना में अब कई कॉरपोरेट हॉस्पिटल भी खुल चुके हैं।
दस-बारह साल पहले अचानक दिखी रियल एस्टेट की हलचल ने भी पटना के ग्रोथ रेट को बड़ी उछाल दी। पिछले कुछ सालों से यहां विकास दर 8-10 प्रतिशत के बीच बनी है। हाल के वर्षों में राज्य सरकार ने भी शहर में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य आरंभ किए।
इनमें शिक्षण संस्थानों, न्यायिक संस्थानों और अस्पतालों के भवनों के अलावा म्यूजियम, पार्क, कन्वेंशन सेंटर आदि शामिल थे। इन गतिविधियों ने शहरवासियों की लाइफ स्टाइल पर भी असर डाला है। हाल के दिनों में कई नए रेस्तरां, स्पा एवं मल्टीप्लेक्स भी शहर की इकोनॉमी को नई ऊर्जा देने में लग गए हैं।
कहते हैं किसी भी शहर की स्थिति तभी हमेशा बेहतर बनी रहती है, जब उसका म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन चुस्त-दुरूस्त रहे। सरकार ने शायद इसी सोच के साथ पटना नगर निगम को चालू वित्तीय वर्ष में पहले से अधिक 792 करोड़ रुपये उपलब्ध कराए हैं, मगर फिर भी यह निगम के वास्तविक खर्च से 72 करोड़ कम है।
इस कमी को निगम को अपने स्रोत से पूरा करना है। निगम का राजस्व बढ़ना या बढ़ाया जाना इस बात द्योतक है कि पटना का वित्तीय संसार फल फूल रहा है।