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गुरु की नगरी में स्वाद के शौकीनों का मुफीद ठिकाना, ये व्यंजन हैं पटना की शान

पटना केवल अपने एेतिहासिक स्थलों के कारण ही नहीं गली-गली की स्वादिष्ट दुकानों के लिए भी जाना जाता है। इस खबर में जानें क्या है पटना में खास।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Sat, 30 Mar 2019 12:58 PM (IST)Updated: Sat, 30 Mar 2019 12:58 PM (IST)
गुरु की नगरी में स्वाद के शौकीनों का मुफीद ठिकाना, ये व्यंजन हैं पटना की शान
गुरु की नगरी में स्वाद के शौकीनों का मुफीद ठिकाना, ये व्यंजन हैं पटना की शान

प्रभात रंजन, पटना। पर्यटन के लिए अगर देश घूमने को निकले हैं तो लाजिमी है कि बिहार आना होगा ही। अब पटना न आए तो बिहार कहां देखा। गुरु की नगरी अपने लजीज व्यंजनों के लिए मशहूर है। यहां हर नुक्कड़ में स्वाद की लाजवाब खुशबू आती है। मीठा खाने वाले हों या नमकीन स्वाद के शौकीनों के लिए पटना एक मुफीद जगह है।

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पृथ्वी राज कपूर ने चखा काला जामुन का स्वाद

वैसे तो शहर में काला जामुन की मिठाई हर चौक-चौराहे से लेकर बड़े होटलों में आसानी से मिल जाती है, लेकिन बाकरगंज स्थित कलामंच की काला-जामुन की बात ही अलग है। दुकान संचालक गोपाल प्रसाद यादव बताते हैं कि यह दुकान 50 वर्ष पुरानी है। 50 वर्ष पहले 70 पैसे में काला जामुन मिठाई मिलती थी। मिठाई खाने के लिए लोग सुबह से इंतजार करते थे।  एक दौर था, जब फिल्म जगत के अभिनेता पृथ्वी राज, राजकपूर, दारा सिंह, प्रेमनाथ आदि जब पटना नाटक करने आते थे। उस दौर में इस दुकान पर लोगों की भीड़ लगी रहती थी। अभिनेता पृथ्वी राज कपूर द्वारा निर्मित 'कला मंच संस्था की ओर से नाटकों के प्रदर्शन के दौरान रंगकर्मियों के साथ आम लोग भी इस दुकान की मिठाई का स्वाद लेकर आनंद उठाते थे।

चंद्रकला और नमकीन के साथ चाय की चुस्की लाजवाब

पटना जंक्शन स्थित हनुमान मंदिर के ठीक सटे वाली दुकान का चंद्रकला और नमकीन का स्वाद सभी को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। शाही लस्सी वाली दुकान के नाम से मशहूर यह दुकान चंद्रकला और नमकीन के लिए जानी जाती है। महावीर मंदिर में भगवान हनुमान का नाम जिस तरह हमेशा गूंजते रहता है, उसी तरह मंदिर के नीचे चंद्रकला और नमकीन की सोंधी खुशबू लोगों को अपना दीवाना बनाने में लगी रहती है। शाही लस्सी दुकान के नाम से मशहूर इस दुकान के मालिक अलीम गौहर बताते हैं कि महावीर मंदिर बनने से पहले की दुकान है। 50 साल पहले सरफुद्दीन ने शाही लस्सी के नाम से दुकान खोली थी। शुरुआती दिनों में लस्सी और चाय की बिक्री हुआ करती थी। धीरे-धीरे दुकान जमने के बाद चंद्रकला और नमकीन की बिक्री होने लगी।

मक्खन के साथ लिट्टी की सोंधी खुशबू

पटना जंक्शन के न्यू मार्केट में बसे कबाड़ी बाजार स्थित गोपी लिट्टी दुकान की बात ही अलग है। करीब 50 वर्षो से यहां लिट्टी की दुकान लगी है। दुकानदार गोपी कृष्ण बताते हैं कि उनके दादा मर्यादी राम ने दुकान खोली थी। पुराने दिनों में एक लिट्टी 25 पैसे की मिलती थी। वर्ष 2016 से आठ रुपये प्रति पीस लिट्टी की बिक्री हो रही है। लिट्टी को मक्खन के साथ भूना जाता है। इसके लिए मक्खन के 25, 50 और 100 ग्राम के पैकेट बनाकर रखते हैं। ग्राहक अपनी सुविधानुसार मक्खन लेते हैं, जिसे लिट्टी के साथ गर्म कर परोसा जाता है। ग्राहक बोलचाल की भाषा में 25-4, 50-4 बोलते है। यानी 25 ग्राम मक्खन के साथ चार लिट्टी। इसी तरह लिट्टी और मक्खन बढ़ाया जाता है। लिट्टी बनाने के लिए चना खरीद कर सामने खड़े होकर मील में पिसाते हैं, ताकि सत्तू शुद्ध मिले। दुकान रविवार को छोड़कर प्रतिदिन शाम चार बजे से रात 11 बजे तक खुली रहती है। बाहर से आने लोग यहां से लिट्टी को पैक कर घर ले जाते हैं।

बुंदिया और सेव खाने के लिए लगती है भीड़

देश में मिठाई की अलग-अलग श्रेणियां हैं, लेकिन बेली रोड स्थित पटना जू के कुछ कदम पहले पंचरूपी हनुमान मंदिर स्थित मिठाई की दुकान लोगों को वर्षों से आकर्षित कर रही है। आम से खास सभी इसके स्वाद के दीवाने हैं। तभी तो रोजाना 35 से 40 किलो बुंदिया की बिक्री होती है। दुकान के संचालक भानू प्रताप बताते हैं कि वर्ष 1965 से यहां दुकान लगा रहे हैं। पहले बुंदी मिठाई और सेव 10 से 12 रुपये किलो बिकता था। दो साल पहले से बुंदी मिठाई और सेव 140 रुपये किलो बिक रहा है। वही चाय सात रुपये प्रति कप बिक रही है। दुकान के कारीगर हरि नारायण बताते हैं कि स्वाद के लिए हमेशा सजग रहते हैं।

घुघनी-चूड़ा और दही बड़े का बेमिसाल स्वाद

बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के कार्यालय रोड से गुजरने के दौरान चना की घुघनी और फ्राई चूड़ा का स्वाद लिए बगैर आगे बढऩा राजधानी वासियों के लिए आसान नहीं होता। बोर्ड बैनर के बगैर लोगों की भीड़ टुनटुन के स्टॉल पर दिनभर उमड़ती है। घुघनी-चूड़ा के साथ दही बड़ा और नींबू की चाय का स्वाद भी अनूठा है। दुकानदार टुनटुन बताते हैं कि 40 साल पहले बिहार बोर्ड के सामने ठेले पर दुकान की शुरुआत की थी। सभी सामान तैयार करने के बाद सुबह साढ़े 10 बजे से दुकान पर पहुंच जाते थे। सारी सामग्री घर से तैयार कर दुकान पर लाते थे। नींबू की मसालेदार चाय में चीनी से ज्यादा काला नमक का प्रयोग होता है। दुकानदार की मानें तो घुघनी और चूड़ा हर दिन सचिवालय से लेकर अन्य जगहों पर पार्सल होता है।

स्वाद के कारण महंगु का मटन है खास

नया टोला स्थित महंगु होटल के मटन के सभी मुरीद हैं। यहां के मटन कबाब, मटन गोली, मटन कलेजी के स्वाद की बात अलग है। होटल के मालिक व महंगु राम के पोता उमेश बताते हैं कि यह दुकान 30 साल पुरानी है। उमेश बताते हैं कि दादा महंगु पहले सचिवालय के पास मटन कबाब की दुकान लगाते थे, जहां सचिवालय कर्मी भोजन का आनंद उठाया करते थे। कुछ वर्षो बाद नया टोला में दुकान शिफ्ट हो गई। दुकान में मटन कलेजी से लेकर कीमा की गोड़ी, चीक कबाब, बटेर, बघेरी, चाहा आदि उपलब्ध है। उमेश की मानें तो रोजाना एक क्विंटल मटन की खपत होती थी, लेकिन बाजार में अधिक दुकान खुलने से बिक्री में थोड़ी गिरावट आई है। मटन कबाब 360 रुपये प्रति प्लेट बिकता है।


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