Move to Jagran APP

बिहार: कोराेना काल में फिर सिर उठाने लगी महाजनी व्यवस्था, महंगे सूद पर कर्ज ले रहे गांव के लोग

लॉकडाउन में तीन महीने से बंद काम-धंधे ने बिहार में पूरा अर्थ तंत्र बदल दिया है। पाई-पाई जोड़कर बचाई जमा-पूंजी कोरोना की आग में स्वाहा हो गई। पढ़ें पड़ताल करती रिपोर्ट....।

By Rajesh ThakurEdited By: Published: Thu, 28 May 2020 09:52 PM (IST)Updated: Thu, 28 May 2020 09:52 PM (IST)
बिहार: कोराेना काल में फिर सिर उठाने लगी महाजनी व्यवस्था, महंगे सूद पर कर्ज ले रहे गांव के लोग
बिहार: कोराेना काल में फिर सिर उठाने लगी महाजनी व्यवस्था, महंगे सूद पर कर्ज ले रहे गांव के लोग

पटना/ समस्‍तीपुर, जागरण टीम। लॉकडाउन में तीन महीने से बंद काम-धंधे ने बिहार में पूरा अर्थ तंत्र बदल दिया है। पाई-पाई जोड़कर बचाई जमा-पूंजी कोरोना की आग में स्वाहा हो गई। इन परिस्थितियों में गांव-देहात में साहूकारी और महाजनी व्यवस्था सिर उठाने लगी है। दो से लेकर पांच रुपये प्रति सैकड़े ब्याज दर के साथ कर्ज देने की बातें सामने आने लगी हैं। जिले के कई प्रखंडों में बाहर से आए प्रवासी माहौल सामान्य होने के साथ बाहर जाने की उम्मीद पाले सेठ-महाजनों से कर्ज ले रहे। कुछ शर्तों के साथ उन्हें कर्ज दिए भी जा रहे। हालांकि जीविका समूह की आेर से लाेगों को कई तरह की सुविधाएं दी जा रही हैं, ताकि लोग सूदखोरों के चंगुल में नहीं फंसे।

loksabha election banner

सादे कागज या रेवेन्यू टिकट पर लगवा रहे निशान

समस्‍तीपुर, शंभूनाथ चौधरी। प्रवासियों और ग्रामीणों ने पाई-पाई जोड़कर जो राशि बचाई थी, वो कोरोना की भेंट चढ़ गई हैं। परिस्थितियां इस कदर बदलीं कि गांव-देहात में सेठ-महाजनी व्यवस्था सिर उठाने लगी। छोटी-मोटी जरूरतें, दवा-इलाज आदि के लिए तीन से पांच रुपये प्रति सैकड़े ब्याज दर से ग्रामीण कर्ज ले रहे हैं। वहीं, घर लौटे प्रवासी माहौल सामान्य होने पर बाहर जाने की उम्मीद पाले कर्ज वास्ते महाजनों के पास पहुंचने लगे हैं। सामान्य परिस्थितियों में तीन से 10 हजार रुपये तक दिए जानेवाले कर्ज के लिए सादे कागज या रेवेन्यू टिकट पर हस्ताक्षर या निशान लिए जा रहे हैं। रोसड़ा शहर के अनुज्ञप्तिधारी बंधक कारोबारी विनोद देव बताते हैं कि बंधक रखे सामान के बाजार मूल्य की 75 फीसद राशि कर्ज के रूप में दी जा रही। निर्धारित समय पर राशि वापस नहीं करने पर मौखिक तथा लिखित सूचना भेजी जाती है। हालांकि, गांवों की व्यवस्था इससे अलग है। 

गांव और शहर में अलग-अलग ब्याज दर

गुरुग्राम से लौटे रामलाल साव कहते हैं, बेटी की तबीयत खराब हुई तो पैसे की जरूरत पड़ी। महाजन के पास पहुंचे तो बड़ी मिन्नत के बाद पांच रुपये सैकड़े पर तीन हजार कर्ज लिया। इसमें भी पहले महीने का सूद काटकर पैसा दिया गया। रोसड़ा की सोनूपुर उत्तर पंचायत की मुखिया अनीता देवी, हरिपुर के मुखिया श्याम नारायण स्वीकार करते हैं कि इस दौर में महाजनी व्यवस्था मजबूत हो रही। हम लोगों की कोशिश है कि लोगों को इससे बचाया जाए। 

सूदखोरों से बचाएगी जीविका

रोसड़ा परियोजना प्रबंधक अशोक कुमार बताते हैं कि जीविका ऐसे जरूरतमंदों को सूदखोरों से बचा सकती है। जीविका महिला मंडल के माध्यम से गांवों में निम्नस्तरीय ऋ ण उपलब्ध कराया जाता है। इसमें ब्याज दर भी सरकारी मानकों के अनुसार है। लेकिन, इसकी शर्त है कि कर्ज लेनेवाले व्यक्ति के घर की कोई महिला जीविका से जुड़ी हो। इधर, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के क्षेत्रीय प्रबंधक निरंजन कुमार बताते हैं कि बैंक प्रारंभिक स्तर पर व्यवसाय या उद्यम स्थापित करने के लिए मुद्रा योजना के तहत ऋ ण उपलब्ध कराता है। कृषि के लिए भी केसीसी योजना का लाभ मिल सकता है। ग्रामीण स्तर पर इतने निम्न स्तर की जरूरतों और राशि के लिए ऋ ण देने का कोई प्रावधान नहीं है। जीविका समूह इसमें मदद कर सकते हैं। 

अवैध है सूदखोरी का धंधा, इससे बचें  

पटना, राज्य ब्यूरो। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सूदखोरी से जुड़े शोषण को रोकने के लिए 1974 में बिहार साहूकारी अधिनियम बना। इसके जरिए सूद के कारोबार को कानून के दायरे में लाया गया। रोसड़ा के अधिवक्ता प्रभात कुमार सिंह कहते हैं कि मनी लांड्रिंग कंट्रोल एक्ट-1986 के तहत मनमाना ब्याज वसूलने और शर्तों का उल्लंघन दंडनीय अपराध है। इसमें तीन से सात साल कारावास का प्रावधान है। अधिनियम में प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति बिना लाइसेंस के सूद का कारोबार नहीं करेगा।

रकम के अनुसार सीओ, एसडीओ और डीएम को लाइसेंस देने का अधिकार है। अधिनियम के मुताबिक कोई भी साहूकार बैंक के दर से ही सूद की वसूली करेगा। अधिक सूद लेने की शिकायत प्रमाणित हुई तो उसका लाइसेंस तत्काल प्रभाव से रद होगा।  बाद में संशोधन कर इसके दायरे से रिजर्व बैंक में पंजीकृत नन बैंकिंग संस्थानों को अलग किया गया। गांवों में रुपये के एवज में जमीन गिरवी रखने की प्रथा भी चलन में है। इसे सूद भरना या रेहन कहते हैं। इसमें साहूकार रुपया के बदले बंधक के तौर पर जमीन लेता है। रुपया लौटते ही जमीन वापस हो जाती है। बीच की अवधि में साहूकार ही उस जमीन पर फसल उगाता है। रेहन की अवधि तक जमीन पर साहूकार की मिल्कियत रहती है।

इसी अधिनियम की धारा 12 में एक प्रावधान रेहन के बारे में भी है। अगर सात साल की अवधि तक कोई किसान रेहन की रकम वापस न करे, तब भी जमीन पर उसका स्वामित्व हो जाएगा। गांवों में आज भी दोनों प्रथा चल रही है। लेकिन, पहले की तुलना में थोड़ी कमी आई है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.