जयप्रकाश नारायण ने भारत में न्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था की स्थापना के लिए किया था संघर्ष
Jayaprakash Narayan Birth Anniversary जयप्रकाश नारायण का मानना था कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राष्ट्र निर्माण को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए थी किंतु राजनीतिक प्रक्रिया ने ऐसा नहीं होने दिया। भारत में न्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था की स्थापना के लिए उन्होंने किया था संघर्ष।
प्रो. तपन कुमार शांडिल्य। लोकनायक जयप्रकाश नारायण यानी जेपी एक महान चिंतक एवं दूरदर्शी राजनीतिज्ञ थे। आधुनिक भारत के उन प्रमुख व्यक्तियों में वे एक थे, जिन्होंने भारत की राजनीति को गहन रूप से प्रभावित किया है। गांधी जी ने देश को आजादी दिलाने तथा नेहरू ने आधुनिक भारत की आधारशिला रखने का काम किया था। जयप्रकाश नारायण ने भारत में न्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था की स्थापना के लिए संघर्ष किया। उनके मौलिक विचार आज भी अपने देश की ज्वलंत सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक समस्याओं के समाधान के लिए प्रासंगिक हैं।
जयप्रकाश का चिंतन गांव के विकास से जुड़ा था। अपने देश के सर्वागीण विकास एवं नव निर्माण के लक्ष्य के महत्व को ध्यान में रखकर उन्होंने लोकतांत्रिक समाजवाद, सवरेदय तथा गांधी दर्शन के विभिन्न आयामों का न केवल गहरा चिंतन किया, बल्कि उनके प्रयोग के दौरान युक्तिसंगत संशोधन में भी जीवनपर्यंत संलग्न रहे। जयप्रकाश एक महान समाजवादी तथा सामाजिक न्याय के प्रबल समर्थक थे। गांधी जी के साथ उनके लगाव ने उन्हें राष्ट्रवादी और अहिंसा के पथ का राही बना दिया। उन्होंने लोकतांत्रिक समाजवाद के पथ का अनुगमन किया।
जयप्रकाश नारायण का मानना था कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राष्ट्र निर्माण को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए थी, किंतु राजनीतिक प्रक्रिया ने ऐसा नहीं होने दिया। ‘भारतीय राज्य व्यवस्था की पुनर्रचना का एक सुझाव’ नामक अपनी पुस्तक में जयप्रकाश नारायण ने पंचायती राज योजना के माध्यम से विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया पर बल दिया। ग्राम सभा का सशक्तीकरण होना उन्होंने आवश्यक बताया। जयप्रकाश नारायण का कहना था कि विकेंद्रित अर्थव्यवस्था का लक्ष्य होना चाहिए कि स्थानीय एवं क्षेत्रीय साधनों के पूर्ण उपयोग का संबंध स्थानीय एवं क्षेत्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति से जुड़े। विकेंद्रित उद्योग एवं व्यापार के संगठन का ढांचा स्पष्टत: केंद्रीय क्षेत्र के ढांचे से भिन्न होना चाहिए।
विकेंद्रित ढांचा अधिकांशत: मालिक-मजदूर का या सहकारी किस्म का होगा। इस प्रकार यह क्षेत्र न तो नौकरशाही प्रधान और न ही शोषण प्रधान होगा। केंद्रीय क्षेत्र की अपेक्षा चाहे वह सार्वजनिक हो या निजी, अधिक समतामूलक भी होगा। जयप्रकाश नारायण की सोच थी कि भारत जैसे गरीब देश में आर्थिक विकास का लक्ष्य विकेंद्रित अर्थव्यवस्था होना आवश्यक है। मानव जीवन और उसके विकास के लिए कृषि एवं उद्योग का विकास होना आवश्यक है। उनका कहना था कि उद्योग के प्रश्न पर मानव के संपूर्ण जीवन की दृष्टि से विचार करना चाहिए। उद्योग मनुष्य के लिए हैं, मनुष्य उद्योग के लिए नहीं। जयप्रकाश नारायण ने गांव को आर्थिक दृष्टि से मजबूत होना आवश्यक बताया। उन्होंने बताया कि गांव एक प्राथमिक और प्रत्यक्ष समुदाय है, जहां लोगों को वस्तुत: आमने-सामने रहना पड़ता है और एक-दूसरे के सुख-दुख का भागीदार होना पड़ता है।
जयप्रकाश नारायण ने कहा कि राज्य पद्धति का आधार स्वाधिकार प्राप्त, आत्मनिर्भर एवं नगर-ग्रामीण स्थानीय समुदाय होंगे। ग्राम पंचायतों की स्थापना कर तथा सामुदायिक विकास जैसे कार्यक्रम अपनाकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की वकालत उन्होंने की था। स्थानीय समुदाय का विकास इस ढंग से होना चाहिए कि वह छोटे-मोटे कल्याणकारी राज्य का रूप ग्रहण कर सके। विपन्न और आवश्यकताग्रस्त लोगों की सहायता समुदाय का सबसे पहला कार्य होगा। समुदाय के प्रत्येक व्यक्ति को चाहे वह कहीं रहता हो अपनी आय का एक अंश समुदाय द्वारा संचालित प्राथमिक सामाजिक सेवाओं के लिए देना होगा। समुदाय में रहने वाले प्रत्येक परिवार को अपने कल्याण के लिए कार्य करते समय अन्य परिवारों के कल्याण की बात भी ध्यान में रखनी होगी?
समुदाय की कल्याण कामना और हित साधन गांव के आर्थिक साधनों और गतिविधियों का प्रथम लक्ष्य होना चाहिए। जयप्रकाश के नजर में सामुदायिक विकास होना चाहिए। उनका कहना था कि ग्राम उद्योगों का विकास किया जा रहा है, उनको बढ़ावा दिया जा रहा है, लेकिन उनका एकमात्र उद्देश्य बेकारी दूर करना और ग्रामीणों का जीवन स्तर उठाना है, लेकिन आज जयप्रकाश का जो सपना था वह पूरा नहीं हो सका। स्पष्ट हो चुका है कि ग्राम पंचायतों की स्थापना के पीछे जो उद्देश्य था वह पूरा नहीं हो पाया है।
जयप्रकाश नारायण ने कहा था कि गांव और उसकी राजनीतिक एवं आर्थिक समस्याओं को प्रभावी तथा समन्वित संगठन का रूप देने के लिए सबसे आवश्यक आर्थिक सुधार होगा कि गांव की संपूर्ण भूमि का स्वामित्व एवं प्रबंध ग्राम सभा में निहित कर दिया जाए, जिससे गांव का प्रत्येक व्यक्ति गांव की भूमि, संपत्ति का समान रूप से अधिकारी बन जाए और ग्रामीण समुदाय के प्रत्येक सदस्य के साथ संपूर्ण समुदाय के लाभ के लिए उस संपत्ति का समान रूप से उपयोग हो सके। कुल मिलाकर उनके जीवन और चिंतन का एक ही लक्ष्य था और वह था आर्थिक, सामाजिक न्याय और नैतिकता पर आधारित व्यवस्था की स्थापना करना तथा शोषण रहित समाज की स्थापना करना।
[प्राचार्य, कालेज आफ कामर्स, आर्ट्स एंड साइंस, पटना]
जयप्रकाश नारायण ने भारत में न्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था की स्थापना के लिए किया संघर्ष। फाइल