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पटरी पर लौट रही जिंदगी मगर संवारने को बहुत कुछ बाकी

वर्ग संघर्ष और खेतों पर आर्थिक नाकेबंदी से तबाह हुई जिंदगी पटरी पर लौटी

By JagranEdited By: Published: Thu, 18 Apr 2019 01:54 AM (IST)Updated: Thu, 18 Apr 2019 01:54 AM (IST)
पटरी पर लौट रही जिंदगी मगर संवारने को बहुत कुछ बाकी
पटरी पर लौट रही जिंदगी मगर संवारने को बहुत कुछ बाकी

जितेंद्र कुमार, पटना। वर्ग संघर्ष और खेतों पर आर्थिक नाकेबंदी से तबाह हुई जिंदगी पटरी पर लौट रही है। गांव की गलियां धीरे-धीरे संवर रही हैं। संपर्क सड़कें बनीं लेकिन नदियों में पुल-पुलिया के बिना बरसात में बच्चों का स्कूल, मरीजों के लिए अस्पताल और प्रशासनिक कार्य के लिए सरकारी कार्यालय से संपर्क टूट जाता है। वर्ग संघर्ष में गांव छोड़कर भागे लोग भी वापस लौट रहे हैं। हालांकि कामगारों की कमी के कारण गेहूं की फसल खेतों से कटकर खलिहान नहीं पहुंच सकी है।

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वर्ग संघर्ष पर विराम लग चुका है। आर्थिक नाकेबंदी से जो भूमि बांझ हो गई थी उसमें फिर से फसल उपज रही है। हिसा और दुश्मनी के कारण जो लोग गांव छोड़कर चले गए थे, वे वापस लौट रहे हैं लेकिन पुराने जख्म फिर हरे हो जाते हैं जब वोट देने के लिए इन्हें आज भी इन्हें दो घंटा कम समय मिलता है। हम बात कर रहे हैं पटना जिले के मसौढ़ी की। इस क्षेत्र को आज भी नक्सल प्रभावित क्षेत्र माना जाता है। मतदान कर्मियों और पुलिस बल को उजाले में ही सुरक्षित वापस लौटने की गारंटी के लिए निर्वाचन आयोग दो घंटे पहले अर्थात 4:00 बजे तक ही वोटिंग का अधिकार देता आ रहा है। ऐसा इसलिए कि कालांतर में नक्सली वोट बहिष्कार का फरमान जारी करते रहे हैं। मतदान कर्मियों और पुलिस बल पर हमले भी हो चुके हैं।

मसौढ़ी के नूरा, कोरियावां, दीघवां, भदौरा, महादेवपुर, शिवचक, पचरूखिया, कोरिगांव जैसे पिछड़े गांवों की गलियां धीरे-धीरे संवर रही हैं। हालांकि गांव में रबी फसल की दौनी के लिए बैल नहीं बचे। बिचौलिये भैंस का दूध 30 रुपये किलो में खरीदकर ले जाते हैं। गांव में देशी मुर्गा दूध से दस गुना महंगा साढ़े तीन सौ रुपये किलो बिक जाता है। इलाके की अर्थव्यवस्था खेती, पशुपालन, मुर्गीपालन और दैनिक मजदूरी पर निर्भर है क्योंकि कोई दूसरा उद्योग धंधा यहां नहीं लग सका।

बात खुली तो शासन के खड़े हुए कान

दोपहर के करीब 12 बजे 40 डिग्री तापमान में चेहरा झुलस रहा था। मसौढ़ी-नौबतपुर मार्ग से वोट यात्रा कोरियावां गांव पहुंचती है। प्रखंड प्रमुख रमाकांत रंजन किशोर इसी गांव के निवासी हैं। गली में चंचल देवी, कुंती देवी और बिंदा देवी से मुलाकात होती है। महिलाएं कहती हैं बिजली, नल का पानी और शौचालय की सुविधा मिल गई। चंचल देवी की शिकायत है कि शौचालय का पैसा नहीं मिला। गांव में दैनिक जागरण की ओर से आयोजित मतदाता जागरूकता अभियान में शामिल होने मसौढ़ी के प्रखंड विकास पदाधिकारी पंकज कुमार, अंचल अधिकारी योगेन्द्र कुमार भी मौजूद थे। शौचालय का पैसा नहीं मिलने की शिकायत पर खुलासा हुआ कि करीब पांच लोगों को पैसा नहीं मिला है। महिलाओं की शिकायत यहीं नहीं थमी। बीते चुनाव में मतदान के दौरान बूथ पर मारपीट की घटना पर भी सवाल-जवाब शुरू हो गया। महिलाओं का कहना था कि वोट देने के कारण पिछली बार मारपीट की गई थी। गांव के मर्दो को कई रात घर छोड़कर खेत में गुजारना पड़ा था। सीओ और बीडीओ ने भरोसा दिया कि इस बार ऐसी कोई परेशानी नहीं होगी। अधिकारियों ने मतदाताओं को ईवीएम के साथ वीवीपैट मशीन से वोट देने और अपने प्रत्याशी के पक्ष में मतदान के सत्यापन का तरीका समझाया।

एक पुल के बिना कई गांव का संपर्क नहीं

मीरचक गांव पहुंचे तो सबसे पहले 65 वर्षीय रामगोविंद दास मिलते हैं। गांव में जाने के लिए मोरहर नदी सबसे बड़ी बाधा है। मीरचक और शिवचक गांव के बीच मोरहर नदी पर पुल के बिना देवरिया पंचायत का संपर्क किसी इलाके से नहीं है। पूरब में मोरहर नदी और पश्चिम में डेढ़ किलोमीटर तक कोई रास्ता ही नहीं है। शिवचक, मीरचक, अनौली, चैनपुर, सरवानीचक और करवा गांव का आवागमन आसान हो जाता। नतीजा सात किलोमीटर दूर मसौढ़ी अनुमंडल मुख्यालय 20 किलो मीटर चक्कर काटकर पहुंचते हैं।

प्याज की खेती में नुकसान, रबी से उम्मीद

वोट यात्रा अब मसौढ़ी नगर परिषद इलाके से होते हुए भदौरा पंचायत में प्रवेश कर रही है। पहला गांव महादेवपुर में अजीत सिंह बताते हैं कि इलाके में धान-गेहूं के अलावा आलू और प्याज की खेती होती है। प्याज की खेती में नुकसान के बाद किसान रबी फसल से उम्मीद पाले बैठे हैं। सिंचाई के लिए बिजली पर निर्भरता है। बिजली आपूर्ति पर्याप्त है लेकिन कामगार कम हो गए हैं। नकदी फसल नहीं होती। बुटन रविदास कहते हैं कि खेत में काम करने वालों को 12 में एक हिस्सा मजदूरी मिलती है। पहले 16 में एक हिस्सा मजदूरी मिलती थी। महंगाई बढ़ी है तो मजदूरी भी बढ़ा है। इलाके में उग्रवादी काम करने लगे हैं। सड़क बनी तो आवागम सुगम हुआ है। गांव से पश्चिम खलिहान में राजकुमार अपनी पत्‍‌नी के साथ चना की फसल पीटने में लगे हैं। गोद के बच्चे को जमीन पर सुलाकर मजदूरी में चना की फसल पीटते राजकुमार बताते हैं कि 12 में एक हिस्सा मजदूरी मिलता है। धान की रोपाई में नकदी मजदूरी मिलता है। कटनी में फसल ही मजदूरी का रिवाज चला आ रहा है।

हिंसा में लोगों को मरते देखा

अगला पड़ाव दीघवा गांव था। 70 वर्षीय रामलखन सिंह यादव बताते हैं कि हमने जवानी में सिर्फ वर्ग संघर्ष देखा। करीब 25 लोग संघर्ष में मारे गए। हिसा के दौर में गांव से भागे लोग वापस लौटकर फिर किसानों के साथ मिलकर खेती कर रहे हैं। कुछ झारखंड के जंगलों में रहते हैं। अब गांव में सड़क बन गई। बिजली और नल का पानी भी पहुंच गया। किसानों को मजदूरों से कोई झगड़ा नहीं रहा। पुराने मुकदमे चल रहे हैं लेकिन पहले की तरह दुश्मनी नहीं रही। अब तो मजदूर भी मोबाइल लेकर और जिंस पहनकर काम करता है। अब मनमाफिक मजदूरी देना मजबूरी है। धान की रोपनी के वक्त तो 400 से 500 रुपये नकद मजदूरी देना पड़ता है। मजदूर अब किसानों से मनचाहा मजदूरी लेते हैं।

पुनपुन नदी से हो रहा कटाव

पालीगंज की सीमा पुनपुन नदी के किनारे एक गांव है- देवरिया। देवरिया का टोला हसनपुरा गांव में एक ही जाति के लोग रहते हैं। करीब सवा सौ घरों के इस टोला का कटाव पुनपुन नदी से हो रहा था। शैलेन्द्र सिंह, राजबल्लभ सिंह, अशोक राय बताते हैं कि कटाव रोकने के लिए कार्य हुआ लेकिन अधूरा रह गया। इस गांव में नाई, ब्राह्माण और अन्य सामाजिक कार्य वाले लोग दूसरे गांव से आते हैं। पंचायत के मुखिया मनोज कुमार बताते हैं कि सड़क और बिजली गांव में पहुंचने से जीवन दशा में बदलाव हुआ है। जातीय रंजिश अब नहीं के बराबर है लेकिन नक्सल क्षेत्र के नाम पर लोगों को दो घंटे कम समय में ही वोट देना पड़ता है। कभी कुछ घटनाएं हुई थी जिसका खामियाजा आज तक भुगतना पड़ता है।

किसानों का हाल बुरा

भगवानगंज में नक्सली हिसा के कारण 80 के दशक में पुलिस चौकी बनाई गई थी, बाद में इसे थाना बना दिया गया। इसी थाना क्षेत्र में पचरूखिया गांव पहुंचने पर रामसेवन यादव बताते हैं कि किसानों का हाल आज बहुत बुरा है। अगर नेता गलत हो गया तो हमलोग क्या करें। यहां भैंस का दूध 30 रुपये किलो खरीदकर बाजार में बिचौलिये 50 रुपये लीटर बेच देते हैं।


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