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जमीन मुआवजा और परेव के जेनरेटर की दिख रही कसक

राजधानी पटना से बिहटा प्रखंड क्षेत्र में प्रवेश करते ही खेतों में बन रहे आलीशान अपार्टमेंट

By JagranEdited By: Published: Thu, 25 Apr 2019 01:37 AM (IST)Updated: Fri, 26 Apr 2019 06:33 AM (IST)
जमीन मुआवजा और परेव के जेनरेटर की दिख रही कसक

पटना। राजधानी पटना से बिहटा प्रखंड क्षेत्र में प्रवेश करते ही खेतों में बन रहे आलीशान अपार्टमेंट, मेड़ की जगह पिलर, पक्की व निर्माणाधीन चौड़ी सड़कें, आधुनिक उत्पाद से भरे स्टोर स्वागत करते हैं। आइआइटी, नाइलेट, एनआइटी, डीएमआइ, ईएसआइ सुपर स्पेशलिटी हॉस्पीटल, एनएसआइटी जैसे राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के संस्थान क्षेत्र के विकास को बयान करते हैं। लेकिन, जिस तेजी से ढांचागत सुविधाएं बढ़ी हैं, उस रफ्तार से स्थानीय लोगों की दुश्वारियां कम नहीं हुई। जमीन की कीमत आसमान पर है। स्थानीय लोग जमीन बेचकर अपनी जरूरतें पूरी कर रहे हैं। लेकिन, यह सभी को नसीब नहीं है। जिनके पास है, उनका कहना है कि आखिर कब तक बेचकर पेट भरें?

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प्रखंड के अधिकारी भी स्वीकारते हैं कि 80 फीसद आबादी खेती-किसानी पर निर्भर है। सिंचाई व्यवस्था ध्वस्त होने के कारण बड़ी आबादी पलायन को मजबूर है। स्थानीय लोगों का कहना है कि जनप्रतिनिधि परेशानियों को कम करने का प्रयास कम और दिखावा ज्यादा करते हैं। पीतल उद्योग के लिए प्रसिद्ध परेव की भी अपनी परेशानी है। कारोबारियों का कहना है कि सरकारी व्यवस्था में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। छोटे-छोटे काम के लिए कार्यालय की गणेश परिक्रमा और प्रसाद चढ़ाना पड़ता है। लोगों का कहना है कि दुर्भाग्य है कि चुनावी मुद्दे में दैनिक दुश्वारियां शामिल नहीं हो रही हैं। यह फैक्टर हार-जीत भले तय नहीं कर पाए, मतदान फीसद पर इसका प्रभाव जरूर दिखेगा।

मुंह देखकर मिल रहा मुआवजा

स्वामी सहजानंद आश्रम, बिहटा में समाधि चबूतरे पर दर्जनों ग्रामीण दोपहर की थकान मिटा रहे हैं। चुनाव और मतदान जैसे शब्द सुनते ही रवींद्र कुमार सिंह फूट पड़ते हैं। बोले, मुंह देखकर मुआवजा मिलता है। कौन गांव किस जात है, यह देखकर अधिकारी जमीन की कीमत तय करते हैं। अब आप ही बताइए? जात-पात को कौन मुद्दा बना रहा है? त्रयंवक राज, गोपाल जी, श्यामल कुमार, राकेश कुमार आदि जमीन अधिग्रहण की पूरी-पूरी राशि नहीं मिलने पर नाराजगी जाहिर करते हैं। अमहारा के संतोष कुमार सिंह का कहना है कि जिस जमीन को छह दशक तक पूर्वजों ने जोता-कोड़ा उसे सरकार सरकारी बता रही है। 50 साल तक सरकार को उक्त जमीन का टैक्स दिया। जब सरकारी जमीन ही थी तो टैक्स क्यों लिया जा रहा था। शिकायत करने पर सरकारी बाबू कोर्ट की शरण में जाने का तंज कसते हैं। जब सब कोर्ट ही तय करेगा तो सरकार क्या करेगी? यह जनप्रतिनिधि से पूछते हैं तो हाथ जोड़ लेते हैं। आखिर हाथ जोड़ने से समस्या का समाधान तो नहीं होता? भीड़ और कैमरे का फ्लैश दिखने के बाद विभिन्न दलों के कार्यकर्ता भी पहुंच गए। उन्होंने भी माना कि लोकसभा चुनाव में जमीन मुआवजा प्रमुख मुद्दा होगा।

तीन दशक से नहर को पानी मयस्सर नहीं

सोन नहर से बिहटा के खेतों की सिंचाई के लिए छोटी नहर अंग्रेजों के जमाने से है। नहर अब नाले में तब्दील हो चुके हैं। राजवंशी पासवान कहते हैं, हुजूर! खेती-किसानी कम होवे के सबसे ज्यादा असर गरीब पर पड़ हे। 30 साल से खेत का, नहर के भी पानी नसीब न होलई ह। पुनीत साब कहते हैं, छोटकी नहर से 100 मन अनाज लेकर नाव सोन नद में चल जा हल। आज नाला बन गेल। अमहारा गांव के अवनीश नंदन ने बताया कि उनके गांव में 12 ट्यूबवेल हैं। स्थानीय लोगों की सक्रियता पर एक-दो ही काम करता है। जमीन इतनी अच्छी है कि पानी रहने पर सालों भर फसल मिलती है। देव शंकर जी भी समर्थन करते हैं। उनका कहना है कि कृषि क्षेत्र पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। गांव की पक्की सड़क खाकर थोड़े ही कोई जिंदा रहेगा? पप्पू जी, विवेक रंजन आदि का कहना है कि पानी की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने के कारण खेती घाटे का सौदा हो गई है। शंभु शर्मा ने बताया कि 30-35 बीघा में खेती करते थे। लागत के अनुरूप कीमत नहीं मिलने के कारण एक फसल ही अब लगाते हैं।

52 डॉक्टरों के गांव के एपीएचसी में ताला

बिहटा प्रखंड के सबसे बड़े गांव अमहारा में 52 डॉक्टर हैं। इनमें कई बड़े नाम हैं। ग्रामीणों का कहना है कि इनके पास जाने पर सहूलियत जरूर मिलती है। लेकिन, गांव के सरकारी अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (एपीएचसी) में ज्यादातर ताला ही लटका रहता है। अवधेश कुमार कहते हैं कि पल्स पोलियो, टीकाकरण आदि अभियान के दौरान ही एपीएचसी में डॉक्टर और कर्मी दिखते हैं। सर्दी-खांसी के लिए पटना जाना मजबूरी है। वीरेंद्र पासवान कहते हैं कि यह कहनी सिर्फ अमहारा गांव की ही नहीं है। सभी अस्पतालों में कमोबेश स्थिति यही है। जमुनापुर पंचायत के मुखिया मदन सिंह का कहना है कि आयुष्मान भारत योजना के कार्ड के लिए 50-100 रुपये लिए जा रहे हैं। नगीना पासवान, तेतर मोची, राजवंशी पासवान, लालसा देवी, सुनीता देवी, राजेंद्र राम आदि रिश्वत मांगने की शिकायत लेकर उनके पास पहुंचे थे।

सरकारी स्कूल तोड़ रहे कम आय वालों की कमर

युवा रजनीश कुमार का कहना है कि सरकारी स्कूल में पढ़ाई नहीं के बराबर हो रही है। एक तो शिक्षक कम हैं। उसपर योजनाओं ने रही-सही कसर पूरी कर दी है। दो शिक्षक मिड-डे-मिल में ही परेशान रहते हैं। गुड्डू कुमार सिंह का कहना है कि स्कूलों की गुणवत्ता के लिए अधिकारियों का दौरा कमीशन से आगे नहीं बढ़ पाता है। वहीं, अमहारा गांव के सरकारी हाईस्कूल की स्थिति ग्रामीणों के शब्दों में अच्छी है। स्कूल के पठन-पाठन में स्थानीय लोगों के साथ-साथ आइआइटी विद्यार्थी भी सहयोग करते हैं। आइआइटी गेट पर पटना के लिए बस का इंतजार कर रहे जगदीश साव का कहना है कि सरकारी स्कूल में पढ़ाई नहीं होने के कारण निजी का ही आसरा है। दो बच्चों की पढ़ाई में हर माह 3000 रुपये खर्च हो रहे हैं। कम आय वालों के लिए सरकारी स्कूलों में कुव्यवस्था आफत की तरह है।

फैक्ट्री है पर रोजगार नहीं मिलता

बिहटा में लगभग एक दर्जन बड़ी फैक्ट्रियां हैं। हीरो साइकिल, रेमंड, फ्लावर आदि की बड़ी फैक्ट्री है। आधा दर्जन से अधिक सरिया बनाने की फैक्ट्री है। सीमेंट और चीनी मिल में ताला लग गया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि रोजगार के नाम पर किसानों से जमीन ली गई, लेकिन एक को भी रोजगार नहीं मिला। मजदूर भी बाहर के हैं। सड़क और सरकारी भवनों के निर्माण कार्य में भी राजस्थान और बाहर के मजदूर लगे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता अवनीश नंदन का कहना है कि रोजगार किसी के लिए मुद्दा नहीं है।

बिजली की चकाचौंध में जेनरेटर का सहारा

पीतल उद्योग में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान रखना वाला परेव गांव में रोलिंग मशीन जेनरेटर से चलाई जाती हैं। पांच रोलिंग मशीन हैं। सभी जेनरेटर के हवाले हैं। कारोबारियों ने बताया कि बिजली कमोबेश 24 घंटे मिलती है। लेकिन, बिजली बिल की गड़बड़ी के कारण रोलिंग मशीन जेनरेटर से चलाते हैं। परेव वर्तन-थाली कुटीर उद्योग समिति ने सरकारी अनुदान पर रोलिंग मशीन लगाई है। अध्यक्ष रामावतार प्रसाद ने बताया कि बगैर एक दिन बिजली से मशीन चले 4.5 लाख का बिजली बिल थमा दिया गया। उन्होंने बताया कि किसी से कोई शिकायत नहीं है। हमलोग अपने स्तर से ही अपनी समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करते हैं। युवा संतोष ने बताया कि सरकारी काम बगैर पैसा का आगे बढ़ता ही नहीं है। लफड़ा के डर से शासन-प्रशासन के पास कारोबारी नहीं जाते हैं। 2000 लोग हर दिन पीतल का वर्तन बनाने में दिन-रात एक करते हैं। इनमें से आधे से अधिक काम करने वाले मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश के हैं। कारोबारी विजय प्रसाद, सुरेश कुमार, प्रमोद कुमार आदि ने बताया कि परेव में बने लोटा-थाली, परात, कठौती, हांठी आदि की मांग मुंबई तक है। कोलकता और रांची के बाजार में अधिक माल खपत होती है।


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