RJD की हार के बावजूद बिहार में सियासी केंद्र बने लालू, जेल में रहकर भी विपक्ष को देते रहे मजबूती
चारा घोटाला में जेल में बंद आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की जमानत पर शुक्रवार को रांची हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया। वे जेल में रहें या बाहर आ जाएं उनसे विपक्ष को मजबूती मिलती रही है।
पटना, बिहार ऑनलाइन डेस्क। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) को शुक्रवार को झारखंड हाईकोर्ट (Jharkhand High Court) ने चारा घोटाला (Fodder Scam) के दुमका कोषागार मामले में जमानत (Bail) नहीं दी। फिलहाल वे जेल की सजा के अंतर्गत दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (Delhi AIIMS) में इलाज करा रहे हैं। बीते कई सालों से जेल में रहने के बावजूद पिछले तीन दशक से अधिक से लालू बिहार की सियासत के केंद्र में हैं। यहां की सियासत आज भी उनके समर्थन या विरोध के इर्द-गिर्द घूम रही है। हालिया बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2020) में भी मुद्दा कोई भी रहा हो, लालू की चर्चा जरूर हुई। लालू जमानत पर जेल से बाहर आएं या जेल में रहें, विपक्ष की राजनीति को मजबूती देते रहे हैं।
लालू विरोध की राजनीति के बल पर एनडीए को मिली सत्ता
लालू की गैर मौजूदगी में आरजेडी की कमान फिलहाल नेता प्रतिपक्ष (Leader of Opposition) तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के कंधों पर है। हालांकि, उनके नेतृत्व में हुए पहले चुनाव में आरजेडी को करारी शिकस्त मिली थी। साल 2019 में हुए लोकसभा के उस चुनाव (Lok Sabha Election 2019) में लालू की उनके तीन दशक की राजनीति में सबसे बड़ी हार हुई। न केवल आरजेडी शून्य पर आउट हो गई, बल्कि विपक्षी महागठबंधन (Grand Alliance) में आरजेडी के सहयोगी दलों की भी ऐसी ही स्थिति रही। महागठबंधन में एकमात्र सीट जीतकर कांग्रेस (Congress) ने जैसे-तैसे अपनी प्रतिष्ठा बचाई। यह बिहार की लालू विरोध की राजनीति की सफलता थी, जिसके कंघे पर चढ़कर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने अपना परचम लहराया।
एनडीए व महागठबंधन दोनों की बिसात पर बने बड़ा मोहरा
लोकसभा चुनाव में हार के बावजूद लालू बिहार की राजनीति के केंद्र में रहे। सत्ता पक्ष उनके शासनकाल को ही मुद्दा बनाकर चुनाव मैदान में कूदा था। चुनाव के बाद आगे भी सात जून 2020 को भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वर्चुअल जनसंवाद (Virtual Jan Samvad) में अमित शाह (Amit Shah) ने लालू-राबड़ी शासन की तुलना एनडीए के शासन काल से की। लोकसभा चुनाव के बाद जनता दल यूनाइटेड (JDU) सुप्रीमो नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के बूथ स्तरीय पदाधिकारियों से बातचीत के कार्यक्रम में भी चर्चा में लालू-राबड़ी का शासन जरूर आता रहा। आगे बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2020) में भी एनडीए व महागठबंधन (Mahagathbandhan) की बिसात पर लालू बड़ा मोहरा बनकर उभरे।
विधानसभा चुनाव में लालू के नकारात्मक मॉडल की चर्चा
बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान लालू के नकारात्मक मॉडल (Negative Model) की चर्चा खूब हुई। चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) सहित सत्ता पक्ष के तमाम नेताओं ने मतदाताओं (Voters) को लालू-राबड़ी शासन (Lalu-Rabri Era) के लौट आने के नाम से खूब डराया। महागठबंधन ने लालू के नाम से परहेज किया, लेकिन उनके समाजिक न्याय (Social Justice) की अवधारणा की खूब दुहाई दी। विधानसभा चुनाव में आरजेडी ने भी विकास की बात की, लेकिन इसमें राेजगार (Employment) को भी जोड़ दिया। एनडीए के घटक दलों ने भी रोजगार के वादे किए, लेकिन आरजेडी के रोजगार के वादे को लालू-राबड़ी राज में बेरोजगारी से जोड़ना नहीं भूले।
चुनाव में हार के बावजूद सियासत में स्थापित हुए तेजस्वी
लालू की बिहार की राजनीति से पहली बेदखली नीतीश कुमार के नेतृत्व में 2005 के विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2005) में हार के साथ हुई थी। तब से चार विधानसभा और तीन लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। इनमें 2015 का विधानसभा चुनाव अपवाद है, जिसमें जेडीयू व कांग्रेस के साथ महागठबंधन बना तथा नीतीश कुमार का चेहरा सामने कर लालू ने चुनाव में शानदार जीत हासिल की थी। 2020 के विधानासभा चुनाव में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर जरूर उभरी, लेकिन संख्या बल में एनडीए से कम रह जाने के कारण सत्ता हासिल करने से चूक गई। इस चुनाव में हार कर भी आरजेडी पार्टी मजबूती से उभरी। इसके साथ तेजस्वी यादव के साथ लालू की अगली पीढ़ी बिहार की राजनीति में स्थापित हो गई।
लालू के जेल से बाहर आने पर पार्टी को मिलेगी और मजबूती
स्पष्ट है, चारा घोटाला में सजा पाकर रांची की जेल में बंद लालू प्रसाद यादव कैदी होकर भी राजनीति की धुरी बने हुए हैं। विपक्षी महागठबंधन के नेताओं का उनसे मिलने रांची जाना इसका प्रमाण है। लालू को जेल में मोबाइल सहित अन्य सुविधाएं दिए जाने को लेकर भी राजनीति गरमाती रही है। इस मामले की जांच भी चल रही है। इस बीच शुक्रवार को झारखंड हाईकोर्ट ने उनकी अर्जी पर सुनवाई के बाद जमानत देने से इनकार कर दिया। जेल में रहकर भी राजनीति की धुरी बने लालू अगर जमानत पर जेल से बाहर आते तो न्यायिक बंदिशों के बावजूद आरजेडी ही नहीं, पूरे विपक्ष के लिए भी बड़ा संबल बनते। हालांकि, अगले दो महीने बाद अगली सुनवाई तक इसकी संभावना नहीं दिख रही। आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी मानते हैं कि लालू के जेल से बाहर आने से पार्टी को और मजबूती मिलेगी।