बैंक हुए गरीब और एटीएम कंगाल, तंत्र रो रहा रुपयों की कमी का रोना
राजधानी पटना के बैंक गरीब और एटीएम कंगाल हो गए हैं। शहर के अधिसंख्यक एटीएम पर कैश नहीं का बोर्ड लगा है। लोग पैसे के लिए एक एटीएम से दूसरे की दौड़ लगाते रहते हैं।
पटना [जेएनएन]। सुविधा के लिए शहर भर में लगे एटीएम ठूंठ बनते जा रहे हैं। एसबीआइ के अधिसंख्य एटीएम पर 'कैश नही' का बोर्ड लगा रह रहा है। ग्राहक एक एटीएम से दूसरे की दौड़ लगाते रहते हैं, लेकिन उन्हें रुपये नहीं मिलते। निजी बैंकों के एटीएम पैसा मिल जाता है, लेकिन दूसरे एटीएम से कई बार निकासी करने पर शुल्क भी कटता है। कुल मिलाकर चरमराई एटीएम व्यवस्था ग्राहकों के लिए बड़ी समस्या बन गई है।
नहीं मिल रहा पर्याप्त रुपया
इधर, भारतीय स्टेट बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष उमाकांत सिंह ने दैनिक जागरण को बताया कि एटीएम की डंवाडोल स्थिति के पीछे भारतीय रिजर्व बैंक से रुपया न मिलना है। हमारे बिहार-झारखंड स्थित 110 करेंसी चेस्टों की क्षमता 12 हजार करोड़ रुपये है, जबकि बैलेंस ढाई हजार करोड़ रुपये रहता है। इस स्थिति में हम बिहार-झारखंड में के एटीएम का सुचारू रूप से संचालन कैसे करें?
हर दिन सिर्फ एटीएम के लिए चाहिए 600 करोड़
बिहार-झारखंड में एसबीआइ के 1500 से अधिक एटीएम है। एक एटीएम की क्षमता करीब 40 लाख रुपये होती है। इस हिसाब से करीब 600 करोड़ रुपये प्रतिदिन सिर्फ एटीएम के लिए चाहिए। उमाकांत सिंह ने कहा कि पटना शहर में बैंक के 150 से अधिक एटीएम है। यहां निकासी का फ्लो भी अधिक है। रुपये की कमी की वजह से एटीएम में क्षमता के अनुरूप पैसे नहीं डाले जा रहे जिससे ये कुछ ही घंटों में खाली हो जा रहे हैं।
200 रुपये के नोटों की आपूर्ति भी कम
200 रुपये के नये नोटों के लिए एटीएम में कैसेट बने हुए हैं। अधिसंख्य एटीएम में ये कैसेट खाली हैं क्योंकि 200 रुपये के नोटों की आपूर्ति भी बहुत कम है।
शाखाओं में भी दिक्कत
एसबीआइ के एटीएम तो बेपटरी हैं ही, शाखाओं में भी कम दिक्कत नहीं है। दरअसल, एटीएम में 2000 रुपये और 500 रुपये के नोट डालने के निर्देश दिए गए हैं। इस वजह से शाखाओं में 10, 20, 50, 100, 200 रुपये के नोट मिल रहे हैं। ग्राहक ठीक इसके उलट एटीएम से छोटे, और शाखाओं में बड़े नोट की अपेक्षा रखते हैं। ग्राहक शिवनारायण ने कहा कि शाखाओं में छोटे नोट मिलने से उन्हें ले जाने में दिक्कत होती है।
बढ़ गया है खर्च भी
करेंसी चेस्ट के लिए रुपये देने के लिए पहले साल में दो बार आरबीआइ के पास जाना पड़ता है। उमाकांत सिंह ने कहा कि अब थोड़ी-थोड़ी मात्रा में रुपये मिल रहा है। इसलिए आरबीआइ के पास हर माह दो बार जाना पड़ रहा है। इसलिए रुपये की ढुलाई पर परिवहन खर्च भी अधिक करना पड़ रहा है। एक बार ट्रक से रुपये लाने में डेढ़ से दो लाख रुपये का खर्च आता है। कानून-व्यवस्था की भी समस्या है। रुपये लाने के समय पुलिस बल हर समय उपलब्ध नहीं हो पाता। इसके लिए भी इंतजार करना पड़ता है।
आरबीआइ से हो रही बातचीत
उमाकांत सिंह ने कहा कि रुपये की आपूर्ति बढ़ाने के लिए आरबीआइ से बातचीत हो रही है। उम्मीद है कि कुछ दिनों में समस्या का समाधान हो जाएगा।