बिहार रेजिमेंट के अदम्य साहस और वीरता का प्रतीक कारगिल द्वार, जानें इसकी कहानी Patna News
बिहार रेजिमेंट के अदम्य साहस और वीरता को प्रदर्शित करता कारगिल द्वार अब नये रूप में दिखने लगा है। ऑपरेशन विजय की याद में बने नए कारगिल द्वारा की शोभा देखते ही बनती है।
By Edited By: Published: Fri, 26 Jul 2019 01:28 AM (IST)Updated: Fri, 26 Jul 2019 08:31 AM (IST)
पटना, जेएनएन। कारगिल दिवस की 20वीं वर्षगाठ पर बिहार रेजिमेंट के अदम्य साहस और वीरता को प्रदर्शित करता कारगिल द्वार अब नये रूप में दिखने लगा है। बिहार रेजिमेंट क्षेत्र में बने कारगिल द्वार को विशेष रूप दे दिया गया है। पहले इसमें एक गेट था, अब दो गेट हैं। ऑपरेशन विजय की याद में बने नए कारगिल द्वारा की शोभा देखते ही बनती है। रेजिमेंट की बहादुरी और बलिदान की कहानी बयान करता यह कारगिल द्वार जवानों और सैन्य अधिकारियों में जज्बा भरता है।
दानापुर से बिहार रेजिमेंट क्षेत्र में प्रवेश करते ही मुख्य सड़क के दायीं ओर बने इस द्वार को पहले से भी अधिक आकर्षक रूप दिया गया है। यह देश पर मर-मिटने वाले उन शहीदों की याद दिलाता है, जिन्होंने अपने प्राण को न्योछावर कर दुश्मनों को रौंदते हुए जम्मू कश्मीर के बटालिक में पाकिस्तानी सैनिकों के सामने अदम्य साहस का परिचय देते हुए उन्हें धूल चटाकर जुबार हिल और थारू पर कब्जा जमाया था। इस कामयाबी के लिए यूनिट को बैटल ऑनर 'बटालिक' एवं 'कारगिल' से सम्मानित किया गया था। उसी सम्मान में बिहार रजिमेंट में कारगिल द्वार स्थापित है। इस द्वार को देख कर शहादत की याद ताजा हो जाती है। उसी की याद में 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाकर वीर शहीदों को सलामी दी जाती है।
1999 में बिहार रेजिमेंट की प्रथम बटालियन जम्मू-कश्मीर के कारगिल के बटालिक सेक्टर में तैनात थी। 29 मई 1999 की बटालियन के जवान के साथ मेजर सर्वानन उन्नीकृष्णन अन्य दिनों की तरह गश्ती पर निकले थे। तभी काफी ऊंचाई पर कब्जा जमाए बैठी पाकिस्तानी सेना ने फायरिंग शुरू कर दी। इसका मुंहतोड़ जवाब दिया गया था। विपरीत परिस्थिति में बर्फीली चोटियों पर गोला दागते मेजर सर्वानन आगे बढ़ते गये थे। पाकिस्तानी सैनिकों को मुंहतोड़ जवाब देते हुए वे वीर गति को प्राप्त हो गये थे। ऑपरेशन विजय में हमारे कई जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे।
दानापुर से बिहार रेजिमेंट क्षेत्र में प्रवेश करते ही मुख्य सड़क के दायीं ओर बने इस द्वार को पहले से भी अधिक आकर्षक रूप दिया गया है। यह देश पर मर-मिटने वाले उन शहीदों की याद दिलाता है, जिन्होंने अपने प्राण को न्योछावर कर दुश्मनों को रौंदते हुए जम्मू कश्मीर के बटालिक में पाकिस्तानी सैनिकों के सामने अदम्य साहस का परिचय देते हुए उन्हें धूल चटाकर जुबार हिल और थारू पर कब्जा जमाया था। इस कामयाबी के लिए यूनिट को बैटल ऑनर 'बटालिक' एवं 'कारगिल' से सम्मानित किया गया था। उसी सम्मान में बिहार रजिमेंट में कारगिल द्वार स्थापित है। इस द्वार को देख कर शहादत की याद ताजा हो जाती है। उसी की याद में 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाकर वीर शहीदों को सलामी दी जाती है।
1999 में बिहार रेजिमेंट की प्रथम बटालियन जम्मू-कश्मीर के कारगिल के बटालिक सेक्टर में तैनात थी। 29 मई 1999 की बटालियन के जवान के साथ मेजर सर्वानन उन्नीकृष्णन अन्य दिनों की तरह गश्ती पर निकले थे। तभी काफी ऊंचाई पर कब्जा जमाए बैठी पाकिस्तानी सेना ने फायरिंग शुरू कर दी। इसका मुंहतोड़ जवाब दिया गया था। विपरीत परिस्थिति में बर्फीली चोटियों पर गोला दागते मेजर सर्वानन आगे बढ़ते गये थे। पाकिस्तानी सैनिकों को मुंहतोड़ जवाब देते हुए वे वीर गति को प्राप्त हो गये थे। ऑपरेशन विजय में हमारे कई जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे।
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