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जाति-धर्म के अंधविश्वास पर चोट करते रहे कबीर

जुलाहों की बस्ती है जहां छोटे-छोटे झोपड़े हैं। जिसमें कहीं पर सूत पकाया जा रहा हैझ

By JagranEdited By: Published: Thu, 13 Sep 2018 01:26 AM (IST)Updated: Thu, 13 Sep 2018 01:26 AM (IST)
जाति-धर्म के अंधविश्वास पर चोट करते रहे कबीर
जाति-धर्म के अंधविश्वास पर चोट करते रहे कबीर

जुलाहों की बस्ती है जहां छोटे-छोटे झोपड़े हैं। जिसमें कहीं पर सूत पकाया जा रहा है तो कहीं खड्डी चल रही है। बीच बाजार में खड़े होकर लोगों से सवाल पूछते रहे। सवालों के जवाब देने के बजाए लोग उसे पागल समझते रहे। कुछ ऐसा ही दृश्य मंच पर जीवंत हो रहा था। मौका था भारतीय जन-नाट्य संघ इप्टा पटना की ओर से दो दिवसीय नाट्य प्रस्तुति का। प्रेमचंद रंगशाला में भीष्म साहनी लिखित एवं तनवीर अख्तर के निर्देशन में 'कबीरा खड़ा बाजार में' नाटक का मंचन दूसरे दिन बुधवार को हुआ। कलाकारों ने संत कबीर के बहाने मध्यकालीन भारत और धर्म के आडंबर में पनप रहा अंधविश्वास, अनाचार, तानाशाही और समाज के दबे-कुचलों का संघर्ष दिखा दर्शकों को धर्म का वास्तविक स्वरूप से रूबरू कराया।

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संत कबीर ने पढ़ाया प्रेम का पाठ

कबीर की न कोई जात थी और नहीं कोई मजहब वो हर मजहब को अपना मानते रहे। मध्य कालीन भारत में जहां धर्म को आडंबर बना कर अनाचार और तानाशाही अपने चरम पर थी। कबीर इनके विरुद्ध खड़े होकर अपने दोहे से धर्म के मठाधीशों और शासकों के बीच आवाज उठा समाज को बांधने का काम करते हैं। दूसरी ओर कबीर और उनके परिवारों का संघर्ष के बीच कबीर की रचनाओं में समाज का दर्द साफ झलक रहा था। जन्म से लेकर अंत समय तक कबीर समाज की आलोचना का दंश झेलते रहता है। वे अपने दोस्तों के साथ गलियों और नुक्कड़ों पर सत्संग करते और अपनी बातों को सभी के सामने प्रमुखता से रखते। जो वहां के मौलवी और पंडितों को अच्छा नहीं लगता। कबीर लोगों से सवाल करते हैं कि अपनी जाति और धर्म के प्रति सत्ता बेईमान क्यों हो जाती है। सारे सवाल को जबाव न समाज के मौलवी देते और न पंडित। कलाकारों के उम्दा अभिनय और संवाद प्रस्तुति दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता रहा। कबीर की मंडली जो धर्म और मानवता का मूल उद्देश्य समझाने में समाज को लगा है तो दूसरी ओर सिकंदर लोदी का आतंक जिसके कारण समाज में नृशंसता उभरती है। बावजूद कबीर की वाणी सदियों तक समाज में जीवित रहती है। वरिष्ठ रंगकर्मी परवेज अख्तर के निर्देशन और इप्टा के बैनर तले कलाकार पिछले 75 सालों से लगातार संघर्ष करती रही है। मंच पर विनोद कुमार, कुमार रविकांत, महंत, धीरज कुमार, मनीष कुमार, बांके बिहारी, सूरज पांडेय, रोशन कुमार, सीमा कुमारी, रजनीश कुमार, सुनील किशोर, नूतन तनवीर, संजय कुमार, विकास श्रीवास्तव, अभिमन्यु कुमार, रवि प्रकाश, अंकित अशोक, टीपू सुल्तान, रजनीश कुमार, शशिकांत, प्रियंका कुमारी, सुमित भारती आदि कलाकारों ने उम्दा प्रस्तुति की।


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