JDU Workers Summit: तेजस्वी से मिलने को लेकर दुविधा में थे जदयू कार्यकर्ता, नीतीश ने कही ये बात
JDU Workers Summit जदयू कार्यकर्ताओं को नीतीश ने दुविधा से निकाला। कहा- किसी से मुलाकात का मतलब यह नहीं कि कुछ चल रहा है एनडीए के साथ रहकर ही विधानसभा का चुनाव लड़ेगा जदयू।
पटना, अरविंद शर्मा। राजधानी पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान से महासमर के लिए प्रस्थान करने से पहले जदयू कार्यकर्ताओं को दुविधा से निकालते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तीन चीजें बिल्कुल साफ कर दी। पहला, अगले चुनाव के लिए कोई नया समीकरण नहीं बनने जा रहा। जदयू विधानसभा चुनाव राजग के साथ ही लड़ेगा। दूसरा, किसी से मेल-मुलाकात का मतलब यह नहीं कि हमारे बीच कुछ चल रहा है और तीसरा अल्पसंख्यकों का असली हमदर्द जदयू है, कांग्रेस और राजद नहीं।
बिहार विधानमंडल के बजट सत्र के दौरान तीन दिनों के भीतर नीतीश के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव से दो-दो बार की मुलाकात ने इस बात को खूब प्रचारित किया कि दोनों के बीच खिचड़ी पकने लगी है। रविवार की सुबह तेजस्वी ने नीतीश को जन्मदिन की बधाई जिन शब्दों में दी, उससे भी चर्चाओं को मजबूती मिलने लगी। कड़वे बयानों से जदयू को असहज कर देने वाले तेजस्वी ने नीतीश को अपना अभिभावक बताया था। जाहिर है, गांवों से गांधी मैदान तक पहुंचे कार्यकताओं में दुविधा थी कि चुनाव मैदान में दोस्ती किससे रखनी है और लड़ाई किससे लडऩी है? निचले स्तर पर दुविधा थी, किंतु नेतृत्व के सामने किसी तरह का असमंजस नहीं था। नीतीश कुमार समेत सबके सब शुरू से ही राजद पर प्रहार शुरू कर दिए थे।
नीतीश ने अपने पूरे भाषण में किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन संकेतों में लालू-राबड़ी सरकार के 15 साल बनाम राजग सरकार के 15 साल की तुलना करते हुए विपक्ष को आईना दिखाया। 24 नवंबर 2005 से लेकर अभी तक की अपनी उपलब्धियों का ब्योरा दिया। यह भी बताया कि जंगल राज से बिहार को मैंने ही मुक्त कराया। सत्ता में आने से पहले न्याय यात्रा निकालकर वादा किया था कि मौका मिलेगा तो बिहार में कानून का राज स्थापित करूंगा। पब्लिक ने मौका दिया और राजग ने कर दिखाया। सरकारी दफ्तरों से चढ़ावा संस्कृति को दूर किया।
नीतीश ने विपक्ष के एक-एक मुद्दे पर पूरी तैयारी और आंकड़ों के साथ बात की। तेजस्वी की डोमिसाइल नीति और बेरोजगारी हटाओ यात्रा पर जोरदार प्रहार किया। डेढ़ दशक के दौरान बिहार की शिक्षा, सड़कें, बिजली, रोजगार, व्यापार, कारोबार, आधारभूत संरचनाएं एवं अपराध नियंत्रण से लेकर सरकारी नौकरियों की गिनती कर डाली। कहा कि कुछ लोग न आकलन करते हैं , न सर्वे, सिर्फ जुबान चलाना जानते हैं। उनके समय में क्या मिलता था? न आपदा से बचाने की कोशिश होती थी, न ही अनुदान की व्यवस्था। बाढ़ प्रभावितों की लिस्ट भी अक्टूबर में बनती थी। प्रतिभा पलायन और नौकरियों में स्थानीय आरक्षण के विपक्ष के मुद्दे को खारिज करते हुए नीतीश ने कहा कि दूसरे प्रदेश में नौकरी करना खराब बात नहीं। हम अपने बच्चों को ऐसा प्रशिक्षण देंगे कि वे बाहर में बिहार का झंडा बुलंद कर सकें।