Jharkhand Assembly Election Result: फिर चला लालू का जादू, जीत गया महागठबंधन
Jharkhand Assembly Election Result झारखंड विधानसभा चुनाव परिणाम में महागठबंधन ने शानदार जीत दर्ज की है औऱ इसका पूरा श्रेय चारा घोटाला मामले में सजा काट रहे लालू को जाता है। जानिए
पटना [काजल]। Jharkhand Assembly Election Result: राजद सुप्रीमो (RJD Supremo) लालू प्रसाद यादव (Lalu Praasad Yadav) राजनीति (Politics) के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं और उन्होंने जेल में भी रहकर ये साबित कर दिया है कि वो जहां भी रहें, वहां की राजनीति उनसे प्रभावित होती ही है। चारा घोटाला मामले में लालू जेल की सजा काट रहे हैं और स्वास्थ्य कारणों से वे रांची के रिम्स अस्पताल (RIMS) में भर्ती हैं। भले ही लालू (Lalu) की तबियत खराब है, उन्हें बेल नहीं मिल रही है। लेकिन लालू ने फिर से साबित कर दिया है कि वो आज भी किंगमेकर हैं।
लालू की राजनीतिक तकनीक कर गई काम
झारखण्ड चुनाव परिणाम (Jharkhand Assembly Election Result) की बात करें तो महागठबंधन (Grand Alliance) को बनाने और इसे सही धारा देने की लालू की तकनीक काम कर गई और झारखंड की राजनीति में हेमंत सोरेन की वापसी और महागठबंधन (Grand Alliance) की अप्रत्याशित जीत सबके सामने है। जिस तरह से झारखंड में महागठबंधन ने भाजपा की सरकार का तख्ता पलट किया है, इसमें रिम्स में इलाजरत लालू की विशेष भूमिका रही है।
लालू ने पहले ही तय कर दी थी हेमंत सोरेन की भूमिका
झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में भले ही महागठबंधन ने चुनाव लड़ा था, लेकिन हेमंत सोरेन की भूमिका लालू ने चुनाव से पहले ही महागठबंधन की नींव के साथ ही तय कर दी थी और आज उन्हें सीएम की कुर्सी तक पहुंचाने में लालू ने अहम किरदार निभाया है।
सीट बंटवारे में लालू ने तेजस्वी को मनाया
दरअसल, झारखंड में महागठबंधन की एकजुटता से लेकर सीट बंटवारे और उम्मीदवारों के चयन में लालू की बड़ी भूमिका रही। जेल में रहकर भी हेमंत सोरेन से लेकर कांग्रेस और फिर वामदलों को एकसाथ रखकर, साथ ही अपने छोटे बेटे तेजस्वी का मान-मनौव्वल कर लालू ने दिखा दिया कि वो आज भी राजनीति में जोड़तोड़ के महारथी हैं।
सोशल मीडिया औऱ पत्र के जरिए लोगों के बीच बने रहे लालू
जेल में रहते हुए लालू ने सोशल मीडिया और अपने द्वारा जारी किए गए पत्र के जरिये लोगों के दिलों तक, उनके सेंटीमेंट तक पहुंचने में कामयाब रहे हैं। चारा घोटाला मामले में लालू को मिली जेल का मामला तो वैसे कोर्ट से जुड़ा है लेकिन राजद के लिए यह लोगों तक पहुंचने का कारगर तरीका साबित हुआ है। जनता के बीच ये मैसेज देना कि बीमार लालू को जेल में तकलीफ हो रही है, ये मैसेज जनता का सेंटीमेंट पाने का जरिया बना।
राजद नेता ने बतायी लालू की तकनीक
राजद नेता के आइएएनएस को दी जानकारी के मुताबिक झारखंड में विधानसभा चुनावों से पहले, जब कांग्रेस, राजद और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) झारखंड में सीट बंटवारे को लेकर अंतिम बातचीत कर रहे थे, तो लालू प्रसाद यादव ने अपने छोटे बेटे और बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को महागठबंधन का फार्मूला स्वीकार करने के लिए मनाया था।
तेजस्वी को थी अधिक सीटों की चाह
झारखंड में तेजस्वी यादव अपनी पसंद की अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते थे और वो इसे लेकर जिद पर अड़े थे। इसके बाद तेजस्वी ने रांची में रहने के बावजूद महागठबंधन के प्रेस कांफ्रेंस में भाग नहीं लिया था। उस वक्त तेजस्वी की गैरमौजूदगी को लेकर महागठबंधन के अस्तित्व पर सवाल उठ रहे थे। कहा जाता है कि लालू ने तेजस्वी को महागठबंधन के नेताओं के साथ बातचीत करने के लिए मना लिया था।
लालू को ये पता था कि तेजस्वी अगर अपने जिद पर अड़े रहेंगे तो महागठबंधन खतरे में पड़ सकता है और भाजपा को इसका फायदा मिल सकता है। राजद के वरिष्ठ नेता रघुवंश सिंह के मुताबिक यह लालूजी का अपना अनुभव था जिसने राज्य में चुनाव से पहले गठबंधन को बचा लिया।
उन्होंने कहा कि सही समय पर लालू प्रसाद के हस्तक्षेप ने राज्य में भाजपा विरोधी दलों को एक साथ लाने में मदद की क्योंकि उन्होंने तेजस्वी यादव को राजद को आवंटित सात सीटों के लिए सहमत होने के लिए राजी किया। वहीं, झामुमो और कांग्रेस ने 43 और 31 सीटों पर चुनाव लड़ा।
लालू ने दिया सीटों का बलिदान
झारखंड में लालू ने गठबंधन की एकजुटता के लिए सबसे पहले खुद का बलिदान दिया और 14 सीटों से 7 सीटों पर ही समझौता कर लिया। क्योंकि लालू जानते थे कि झारखंड में हेमंत सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा का बड़ा जनाधार है तो उन्होंने हेमंत सोरेन के लिए अपनी सीटें छोड़ दीं। लालू की रणनीति और संयम यहां काम कर गया और परिणाम सबके सामने है।
तेजस्वी को अभी सीखनी पड़ेगी पिता की राजनीति
इसी तरह की जिद तेजस्वी ने बिहार में लोकसभा चुनाव के समय ठान ली थी जिसकी वजह से उस चुनाव में तेजस्वी चूक गए। लालू की तरह तेजस्वी अभी मौसम का रूख भांपना नहीं सीख पाए हैं। लालू की तरह तेजस्वी अपने सहयोगियों को एकजुट करने में नाकाम रहे जिसके चलते बिहार के उपचुनाव में महागठबंधन पूरी तरह से बिखर गया। पिता लालू की तरह राजनीति का गुर अभी तेजस्वी को सीखना पड़ेगा।