Move to Jagran APP

जागरण विमर्श : भारत-पाक रिश्ता - उम्मीद है मोहब्बत से जीतेंगे नफरत की बाजी

सवाल उठने लगा है कि क्या भारत को पाकिस्तान के साथ बातचीत जारी रखनी चाहिए? पठानकोट हमले के बाद भी? इसी सवाल का जवाब जानने के लिए सोमवार को दैनिक जागरण कार्यालय में 'जागरण विमर्श' का आयोजन हुआ।

By Kajal KumariEdited By: Published: Tue, 12 Jan 2016 10:05 AM (IST)Updated: Tue, 12 Jan 2016 11:39 AM (IST)
जागरण विमर्श : भारत-पाक रिश्ता - उम्मीद है मोहब्बत से जीतेंगे नफरत की बाजी

पटना [कुमार रजत]। भारत-पाकिस्तान का रिश्ता बेशक जटिल है, मगर शायरी इसे समझने में काफी हद तक आसान बना देती है। फैज कहते हैं- उनका जो काम है वो अहले सियासत जाने / मेरा पैगाम मोहब्बत है जहां तक पहुंचे। भारत-पाक का रिश्ता भी ऐसा ही रहा है। जब-जब ङ्क्षहदुस्तान ने मोहब्बत का हाथ बढ़ाया, जवाब में नफरत ही मिली।

loksabha election banner

तारीख गवाह है। सियासतदां बदलते रहे, तारीखें बदलती रहीं, मगर दोनों देशों के हालात नहीं बदले। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लाहौर जाकर नवाज शरीफ से मिलने के चंद रोज बाद ही पठानकोट हमले ने इस जख्म को फिर हरा कर दिया है।

सवाल उठने लगा है कि क्या भारत को पाकिस्तान के साथ बातचीत जारी रखनी चाहिए? पठानकोट हमले के बाद भी? इसी सवाल का जवाब जानने के लिए सोमवार को दैनिक जागरण कार्यालय में 'जागरण विमर्श' का आयोजन हुआ। इसमें वक्ता के तौर पर शामिल हुए एएन कॉलेज में राजनीति विज्ञान विभाग के पीजी हेड प्रो. विमल प्रसाद सिंह।

प्रो.विमल ने कहा कि युद्ध का जवाब युद्ध नहीं हो सकता। हमें समझना होगा कि भारत अमेरिका नहीं है, कि किसी भी देश में घुसकर हमला कर दे। हां, चुप रहना भी मुनासिब नहीं। ऐसे में बीच का रास्ता ढूंढऩा है, और ये रास्ता बातचीत का है। सवाल ये भी उठता है कि जब भी भारत-पाकिस्तान के बीच वार्ता हुई, उसके तुरंत बाद रिश्ते और खराब हुए हैं।

उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, बंटवारे के दो महीने बाद ही युद्ध। 1971 में शिमला समझौते के बाद युद्ध और बांग्लादेश का बना। फिर 1999 में अटल जी की लाहौर यात्रा के बाद कारगिल युद्ध। आगरा में परवेज मुशर्रफ के साथ वार्ता के बाद भारतीय संसद पर हमला ...और अब पीएम की लाहौर यात्रा के बाद पठानकोट हमला।

इसके बाद भी वार्ता?

इसका जवाब फिर से हां है, क्योंकि इस बार हालात दूसरे हैं। अमेरिका समेत सभी बड़े देश भारत के साथ खड़े दिख रहे हैं। ये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उन्हीं विदेश दौरों का असर है, जिनकी कई लोगों ने आलोचना की थी और दौरों को फिजूलखर्ची बताया था। आज पाकिस्तान पूरी तरह दबाव में है।

उन्होंने कहा कि भारत को चाहिए कि सशर्त बातचीत का प्रस्ताव रखे। शर्त होनी चाहिए- पठानकोट के संदिग्धों के खिलाफ सौंपे गए सुबूतों के आधार पर पाकिस्तान की कड़ी कार्रवाई। पाकिस्तान में बैठकर भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने वाले संगठनों और लोगों को भारत के सुपुर्द करना।

प्रो.विमल ने कहा कि आतंकी हमलों की सुई कभी-कभी चीन पर भी जा ठहरती है। चीन में आज तक कभी आतंकी हमला नहीं हुआ। चीन, भारत का प्रतिद्वंद्वी रहा है, वह नहीं चाहता कि एशिया में उसके अलावा कोई दूसरी 'सुपर पावर' बने। ऐसे में संभव है कि वह भी आतंकियों की फंडिंग करता हो। हालांकि, इसके सबूत नहीं है, मगर बीच-बीच में चीन पर भी शक की सुई जाती है।

मंथन का अमृत

- अमेरिका और विश्व के अन्य देशों की मदद से भारत को पाकिस्तान पर सर्शत वार्ता का दबाव बनाना चाहिए।

- वार्ता के लिए कश्मीर और आतंकवाद दोनों मुद्दों पर अलग-अलग बात हो।

- भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश (पुराने भारतवर्ष) का परिसंघ बने, जिससे देशों में आपसी सामंजस्य बना रहे।

सवाल-जवाब

प्रो.बिमल प्रसाद सिंह के व्याख्यान के बाद दैनिक जागरण की संपादकीय टीम ने उनसे कई सवाल किए। पेश हैं, चुनिंदा सवाल और उनके जवाब।

प्रश्न : पठानकोट आतंकी हमला क्या पीएम नरेन्द्र मोदी के पाक दौरे की प्रतिक्रिया थी?

उत्तर : अतीत में भी इस तरह की हरकतें होती रही हैं। जब भी वार्ता हुई है, दोनों देशों के संबंध को खराब करने का प्रयास हुआ है। जिस तरीके का हमला हुआ है, यह तय है कि साजिश पहले से रची जा रही होगी।

प्रश्न : अमेरिका, फ्रांस जैसे देश आतंकी हमले के बाद घुसकर अपने दुश्मनों पर कार्रवाई करते हैं। भारत ने भी म्यांमार में ऐसा किया था। भारत पाकिस्तान में घुसकर कार्रवाई क्यों नहीं करता?

उत्तर : इसके कई कारण हैं। पहला तो भारत सुपर पावर नहीं है। उसे अमेरिका समेत अन्य देशों को साथ लेकर चलना होता है। कुछ वोट बैंक की राजनीति भी है। हालांकि, आतंक का कोई धर्म नहीं होता। यूएन के सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता के लिए भी जरूरी है कि भारत की छवि शांतिप्रिय देश की रहे।

प्रश्न : पाकिस्तान में सरकार के साथ बड़े शक्ति के केंद्र फौज, आइएसआइ व कई अन्य आतंकी संगठन हैं। ऐसे में क्या वे चाहेंगे कि भारत के साथ वार्ता हो?

उत्तर : यह स्थिति पाकिस्तान की सच्चाई है। फिर भी यही मौका है पाकिस्तान सरकार के पास कि वह खुद को मजबूत करे। आतंक से खतरा पाकिस्तान को भी है।

प्रश्न : आतंकवाद विरोधी परिसंघ में क्या भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के अलावा चीन को भी शामिल किया जाना चाहिए?

उत्तर : नहीं, बिल्कुल नहीं। चीन अपने फायदे के हिसाब से राजनीति करने लगेगा।

प्रश्न : भारत-पाक की हर वार्ता प्राय: कश्मीर मुद्दे पर आकर रुक जाती हैं। क्या इस बार कुछ अलग उम्मीद है?

उत्तर : कश्मीर एक सच्चाई है। सार्थक बातचीत के लिए जरूरी है कि बॉर्डर और आतंकवाद दोनों मुद्दों पर अलग-अलग वार्ता हो। फिलहाल 14 जनवरी तक इंतजार कीजिए, फिर देखिए क्या होता है।

प्रश्न : पाकिस्तान में सरकारें अपनी नाकामी छुपाने के लिए भारत विरोधी भावनाएं भड़काती रही हैं। क्या इस बार दोनों देशों की सरकारें संजीदा हैं?

उत्तर : हां, यह सच है कि पाक में ऐसा होता रहा है। नाकामियों को भारत विरोधी हवा देकर छुपाया जाता है। फिर भी सरकारें बात कर रही हैं।

प्रश्न : हर बार वार्ता और फिर कुछ दिनों बाद युद्ध या हमला? ऐसे में स्थाई समाधान क्या है?

उत्तर : बातचीत किसी भी समस्या का पहला समाधान है। पाकिस्तान पर इस बार अमेरिका सहित अन्य देशों का भी दबाव है। अगर वह नहीं चेतता है तो उसे परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.