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पुणे के युवक को बेवजह हिरासत में रखने पर पांच लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश, जानें क्या था मामला

राज्य मानवाधिकार आयोग ने पुणे के युवक को बेतिया पुलिस द्वारा गलत आरोप लगाकर करीब तीन माह अभिरक्षा में रखने पर कड़ी आपत्ति जताई है। आयोग ने गृह विभाग को पत्र लिखकर मामले में पीड़ित युवक की मां को पांच लाख का भुगतान करने का निर्देश दिया है।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Wed, 25 Nov 2020 09:58 PM (IST)Updated: Wed, 25 Nov 2020 09:58 PM (IST)
पुणे के युवक को बेवजह हिरासत में रखने पर पांच लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश, जानें क्या था मामला
बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग ने युवक को बेवजह हिरासत में रखने पर पांच लाख मुआवजा देने का निर्देश दिया है।

पटना, जेएनएन। बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग ने पुणे के युवक जरार ऐराज शेरखर को बेतिया पुलिस द्वारा गलत आरोप लगाकर करीब तीन माह अभिरक्षा में रखने पर कड़ी आपत्ति जताई है। आयोग ने गृह विभाग को पत्र लिखकर मामले में पीड़ित युवक की मां नुसरत एजाज शेरखर को क्षतिपूर्ति के रूप में 11 फरवरी, 2021 के पहले पांच लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया है। इसके अलावा मामले में प्रथमदृष्टया दोषी पाए गए तीन पुलिसकर्मियों के विरुद्ध की गई विभागीय कार्रवाई से अवगत कराने को कहा है। इन पुलिसकर्मियों में नरकटियागंज के तत्कालीन डीएसपी निसार अहमद, साठी थाना के एएसआइ विनोद कुमार सिंह और सिपाही कृष्ण कुमार शामिल हैं। आयोग के सदस्य उज्ज्वल कुमार दुबे ने कार्रवाई से जुड़ी फाइल 18 फरवरी तक उपलब्ध कराने का निर्देश जारी किया है। 

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मामला दो साल पुराना है। बेतिया पुलिस ने साठी थाना कांड संख्या 162/2008 मामले में प्राथमिकी के नामांकिन अभियुक्त जरार एजाज शेरखर को महाराष्ट्र के पुणे से गिरफ्तार किया था। वह पुणे के समार्थ थाना के साइकिल सोसाइटी में रहते थे। युवक पर बलात्कार, छल करने और बेईमानी से बहुमूल्य वस्तु देने का आरोप लगाया गया था। मामले में बेतिया पुलिस ने पुणे के युवक को 26 मार्च, 2019 को गिरफ्तार किया था और 17 जुलाई 2019 तक अनावश्यक रूप से न्यायिक अभिरक्षा में रखा था। बाद में पुलिस की जांच में घटना को पूर्णत: असत्य पाया गया।

आयोग ने कहा- इससे पुलिस व्यवस्था पर विश्वास समाप्त होता है

आयोग ने मामले में सुनवाई करते हुए छह नवंबर, 2019 को कहा था कि युवक को साजिशपूर्वक फंसाना तथा अनावश्यक रूप से अभिरक्षा में रखा जाना सभ्य व कल्याणकारी राज्य के लिए पूर्णत: अस्वीकार्य है। इस अपराध के लिए दोषी पुलिसकर्मियों पर मात्र विभागीय कार्यवाही किए जाने से अल्पसंख्यक समुदाय के एक नवयुवक का पुलिस व्यवस्था से विश्वास समाप्त हो जाता है। इस आदेश के बाद में गृह विभाग ने आयोग को सूचित किया कि पीडि़त को वित्तीय राहत दिए जाने के बिंदु पर राज्य सरकार को कोई आपत्ति नहीं है।


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