भोजपुरी लोकगीतों में बाबू वीर कुंवर सिंह की वीरता की दास्तान युवाओं में भर देती है जोश
लोकगीतों में बाबू कुंवर सिंह का जिक्र भर देता है भुजाओं में जोश भोजपुरी के लोकगीतों में वीर कुंवर सिंह के व्यक्तिव का सटीक चित्रण 1857 के पहले स्वाधीनता संग्राम में दिखाया था भोजपुरी माटी का दम अंग्रेजों के छुड़ा दिए थे छक्के
बलिराम सिंह लिखित गीत '1857 के फिर से बिगुल बजाव दादा फिर एक बार तू आव...' के माध्यम से वीर कुंवर सिंह का आने का आह्वान किया गया है। वीर कुंवर सिंह के साथ इनके छोटे भाई अमर सिंह ने भी आजादी की लड़ाई में अपने भाई से कंधे से कंधे मिलाकर साथ दिया। इसका वर्णन पं.राम नरेश त्रिपाठी के लोक गीतों के संग्रह में इस गीत में वर्णन चर्चा है- लिखि-लिखि पतिया के भेजलन कुंवर सिंह, ए सुनु अमर सिंह भाव ए राम...।
बाबू कुंवर सिंह के गंगा पार करते समय का वर्णन हरिहर सिंह ने इस गीत के माध्यम से किया है- मैया सुमिरों विन्ध्याचल भवनियां हो ना, मैया तूही कर आजु बेढ़ा परवा हो ना...। अमर कमर कसि गए, जहां बैठी महरानी, भीतर भवन अनूप जहां सब चतुर सयानी...गीत के माध्यम से गणेश चौबे ने अंग्रेजों से लडऩे का आह्वान किया गया। शिवजी शाहाबादी के गीत- भोजपुर भोज के नगरी हव गंगा जी क कगड़ी, कुंवर सिह रहलन एहिजे सुनल उनकर जिक्री...और अनिल कुमार तिवारी 'दीपू' के गीत बाबू वीर कुंवर सिंह के बाटे बलिहरिया तलवरिया लेके न...पर श्रोता झूम उठते हैं।
होली के मौके पर गाये जाने वाला गीत- बाबू कुंवर सिंह तेगवा बहादुर बंगला में उड़े ला अबीर...झूमने पर मजबूर कर देता है। अन्य प्रमुख गीतों में हैरां हो गइले सब देख के मोछ के पानी कुंवर के..., खौलत खून बहल नस-नस में देखी के गुलामी..., कुंवर दादा हो तूही हव देसवा के शान..., कान्हे बंदुकिया हरवा देसवा के शान रे..., अक्षत फूल से संकल्प कइले माई मंदिर में जाई के वीर कुंवर सिंह के गोली..., जहिया से भइले आजादी के एलनवा भारत छोड़ के भागल गोरख दुश्मनवा...समेत गीतों की एक लंबी फेहरिश्त है।