बिहार: जनसंख्या का बढ़ता ग्राफ, शादीशुदा महिलाएं भी नहीं करतीं गर्भ निरोधक पर बात
बिहार में प्रजनन दर अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक है। राज्य के शहरी तबके में कुछ तो इसके बारे में जानकारी रखते हैं लेकिन ग्रामीण तबके के इलाके में आज भी जागरुकता की कमी है।
पटना [काजल]। छोटा परिवार-सुखी परिवार, ये नारा बिहार के शहरी इलाकों में कुछ हद तक तो कारगर है लेकिन ग्रामीण इलाकों में हकीकत आज भी कुछ और बयां कर रही है। यहां शादीशुदा जोड़ों को बच्चों के बीच कितना अंतर रखना है? बच्चे कितने प्लान करने हैं? के साथ ही परिवार नियोजन तक के विषय में जानकारी नहीं है। परिवार नियोजन का नाम सुना भी है तो ये पता नहीं कि ये क्या होता है? एक तो शिक्षा का अभाव, दूसरा कम उम्र में शादी और तीसरा पुरुष नसबंदी के प्रति उदासीनता, ये सारी बातें बिहार में बढ़ती प्रजनन दर के लिए चिंता का विषय हैं।
इन तीनों कारणों से बिहार में स्वास्थ्य विभाग और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा चलाए जा रहे परिवार नियोजन के सारे दावे फेल हो रहे हैं। साथ ही इसके लिए चलाई जा रहीं बडी-बड़ी योजनाएं भी प्रचार-प्रसार के अभाव में दम तोड़ती नजर आ रही हैं। जनसंख्या नियंत्रण के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है लड़कियों, युवाओं को कॉंन्ट्रासेप्टिव्स की जानकारी होना और सुरक्षा के उपाय के बारे में उनसे खुलकर बात करना।
नीति आयोग के ताजा आंकड़े के मुताबिक, बिहार में प्रजनन दर (टीएफआर) अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक है। राज्य में बड़ी संख्या में महिलाएं परिवार नियोजन के दायरे से बाहर हैं। राज्य में परिवार नियोजन के ऑपरेशन का प्रतिशत मात्र 36 है और गर्भनिरोधक को हां कहने वाली महिलाओं की संख्या तो छह जिलों में दस फीसदी से भी कम है।
बिहार के पश्चित चंपारण में तो मात्र 3.9 फीसदी महिलाएं ही गर्भनिरोधक का इस्तेमाल कर रही हैं। गौर करने वाली बात यह है कि प्रदेश में बालिकाओं की कम उम्र में शादी का 50 प्रतिशत से अधिक रेट रहने के बावजूद 15-19 आयु वर्ग की मात्र दो प्रतिशत शादीशुदा युवतियां ही गर्भनिरोधक का इस्तेमाल कर रही हैं। इसकी वजह है कि उन्हें गर्भनिरोधक के इस्तेमाल की जानकारी नहीं है।
यूनाइटेड नेशंस फाउंडेशन का आंकड़ा ये बताता है कि 30 से 39 आयु वर्ग की 35 प्रतिशत महिलाओं को ही गर्भनिरोधक के विषय में पता है। जब हमने राज्य के कुछ सरकारी स्कूल में पढऩे वाली लड़कियों से बात की तो शर्म और झिझक की वजह से उन्होंने इस बारे में बात करने में कोई खास रुचि नहीं दिखाई।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे, एनएफएचएस के चौथे चरण की रिपोर्ट बताती है कि बिहार में मात्र 63 प्रतिशत युवतियों को ही रीप्रोडक्टिव हेल्थ से संबंधित जानकारी मिल पाती है।
युवाओं में यह आंकड़ा 56 प्रतिशत है। परिवार के दबाव और जानकारी के अभाव में ये युवतियां दो बच्चों के बीच गैप भी बरकरार नहीं रख पाती हैं। बिहार इस मोर्चे पर भी अन्य राज्यों से पीछे है। दो बच्चों के बीच गैप का यहां प्रतिशत 44.4 का है, जबकि राष्ट्रीय औसत 51.9 प्रतिशत है।
प्रजनन दर की स्थिति
बिहार ---- 3.3
उत्तर प्रदेश ---- 3.1
मध्य प्रदेश ---- 2.8
छत्तीसगढ़ ---- 2.5
ओडीशा ---- 2.0
दिल्ली ---- 1.6
राष्ट्रीय औसत --- 2.3
छह जिले जहां कॉन्ट्रासेप्टिव का उपयोग सबसे कम
1. पश्चिम चंपारण -- 3.9 प्रतिशत
2. पूर्वी चंपारण -- 5.5 प्रतिशत
3. सारण -- 8 प्रतिशत
4. गोपालगंज -- 8.9 प्रतिशत
5. मुजफ्फरपुर -- 9.2 प्रतिशत
6. सिवान -- 9.4 प्रतिशत
परिवार नियोजन क्या है....
परिवार नियोजन का अर्थ है यह तय करना कि आपके कितने बच्चे हों और कब हों ? अगर आप बच्चे पैदा करने के लिए थोड़ी प्रतीक्षा करना चाहते हैं तो अनके उपलब्ध साधनों में से कोई एक साधन चुन सकते हैं। इन्हीं साधनों को परिवार नियोजन के साधन, बच्चों के जन्म के बीच अंतर रखने के साधन या गर्भ निरोधक साधन कहते हैं।
प्रतिवर्ष लगभग पांच लाख महिलाएं गर्भधारण, प्रसव, तथा असुरक्षित गर्भपात की समस्याओं के कारण मृत्यु की शिकार हो जाती हैं। इनमें अनेक मौतों को परिवार नियोजन के द्वारा रोका जा सकता है।
कॉपर टी सबसे प्रचलित गर्भनिरोधक
कॉपर टी या मल्टी-लोड आईयूडी होती है। देखने में ये डिवाइस अंग्रेजी के ञ्ज अक्षर जैसी होती है और इसमें कॉपर होता है, इसलिए इसे कॉपर टी कहा जाता है। मल्टी-लोड एंड कॉपर टी गर्भनिरोधक उपकरण (आईयूसीडी) है और ये गर्भ को रोकने के लिए गर्भाशय में डालने के लिए डिज़ाइन किए गया है। यह प्लास्टिक की बनी होती है। जिसमें कॉपर या तांबे का तार लिपटा होता है और इसे गर्भाशय में फिट किया जाता है, जो अनचाहे गर्भ को रोकने में मदत करता है। वहीं इसको लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं जो सही नहीं हैं।
कॉपर टी के फायदे
इससे परिवार नियोजन में मदत मिलती है और बच्चो में अंतर रखा जा सकता है।
यह लगभग 98त्न केसेस तक सुरक्षित है और सही से काम करता है।
यह पांच वर्षों के लिए लगाया जाता है और इसके बाद इसे आसानी से निकाला जाता है।
डीएमपीए, गर्भनिरोधक इंजेक्शन, सबसे सेफ है
पीएमसीएच की स्त्री और प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अनुपमा ने बताया कि आजकल गर्भधारण से बचने के लिए सबसे कारगर इंजेक्शन डिपो मेड्रोक्सी प्रोजेस्ट्रॉन एसीटेट, यानि डीएमपीए है। इस इंजेक्शन का असर महिला के शरीर में बनने वाले अंडाणु पर पड़ता है। फिर बच्चेदानी के मुंह पर एक दीवार बना देता है जिससे महिला के शरीर में शुक्राणु का प्रवेश मुश्किल हो जाता है। इन दोनों वजहों से बच्चा महिला के शरीर में ठहर नहीं पाता। इसकी कीमत 50 रुपये से लेकर 250 रुपये तक है।
गर्भ निरोधक इंजेक्शन से जुड़ी ग़लतफ़हमियां
दुनिया के दूसरे देशों में इसका इस्तेमाल बहुत सालों से चल रहा है। भारत में भी 90 के दशक में इसके इस्तेमाल की इज़ाजत मिल गई थी। इसके बाद भी भारत सरकार के परिवार नियोजन के लिए दिए जाने वाले किट में इसका इस्तेमाल नहीं हो रहा था।
ग़लतफ़हमी थी वजह
कहा गया था कि गर्भ निरोधक इंजेक्शन के इस्तेमाल से महिलाओं की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं, कैंसर का ख़तरा बढ़ जाता है। ऐसी ग़लतफ़हमियों की वजह से महिलाएं इसका इस्तेमाल करने से डरती थीं लेकिन डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट ने इस तरह की ग़लतफ़हमियों पर से पर्दा उठा दिया।
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट का हवाला देते हुए डॉ्क्टर अनुपमा ने बताया कि महिलाओं में इंजेक्शन के लंबे इस्तेमाल से हड्डियां कमज़ोर होती हैं। ये बात सही है, लेकिन इसका इस्तेमाल बंद करते ही वापस सामान्य हो जाती हैं। इतना ही नहीं इससे महिलाओं में कैंसर का ख़तरा भी कम हो जाता है।
गर्भ निरोध इंजेक्शन के फ़ायदे
डॉक्टर अनुपमा के मुताबिक गर्भ निरोधक इंजेक्शन के इस्तेमाल के कई फ़ायदे हैं। इसको गोली की तरह हर ऱोज लेने की झंझट नहीं है। इसको इस्तेमाल करने से गर्भ धारण करने का ख़तरा न के बराबर है। बच्चा होने के तुरंत बाद भी इसका इस्तेमाल शुरू किया जा सकता है क्योंकि इसमें प्रोजेस्ट्रॉन होता है।
इंजेक्शन के इस्तेमाल के बाद कुछ महिलाओं में ब्लीडिंग बहुत कम हो जाती है और डॉक्टर इसे अच्छा मानते हैं क्योंकि इससे महिलाओं में एनीमिया का ख़तरा कम हो जाता है। गर्भनिरोधक इंजेक्शन की सफलता की दर 99.7 फ़ीसदी है लेकिन डॉक्टर ने कहा कि हम ये इंजेक्शन अविवाहित, युवतियों और लड़कियों को लेने की सलाह नहीं देते। ये इंजेक्शन सिर्फ विवाहित और बच्चों को जन्म दे चुकीं महिलाओं को ही लेने की सलाह दी जाती है।
अंतरा वैक्सीन भी है सुरक्षित
प्रशिक्षक डॉ. रक्षा रानी सिंह ने बताया कि परिवार नियोजन के लिए प्रेगनेंसी से बचाने वाले गर्भ निरोधक इंजेक्शन की सरकारी अस्पतालों में आपूर्ति शुरू की दी गई है। अंतरा नाम वैक्सीन का इंजेक्शन एक बार लगाने से तीन माह तक प्रेगनेंसी रोकी जा सकती है।
पहले इसके लिए कंडोम का प्रयोग करने के साथ ही कॉपर टी आदि लगाने की विधियों का प्रयोग किया जाता था। रोज-रोज गोलियां खाने की बजाए एक बार इंजेक्शन से ही तीन माह तक राहत मिलने की तकनीक बेहतर मानी जा रही है।
डॉ. रक्षा रानी सिंह ने बताया कि यह वैक्सिन पूरी तरह से हानिरहित है इसका लंबे समय तक प्रयोग करने से भी शरीर पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। अंतरा वैक्सिन जिला स्तरीय अस्पतालों के साथ ही प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर उपलब्ध है। इंजेक्शन को प्रसव के छह माह बाद महिलाएं लगवा सकती हैं। सरकारी अस्पतालों पर गर्भनिरोधक वैक्सीन निश्शुल्क मिलती है।
छाया टैबलेट भी है परिवार नियोजन में लाभदायक
स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी छाया टेबलेट भी परिवार नियोजन के लिए लाभकारी होगा। यह टेबलेट हार्मोन रहित सुरक्षित साप्ताहिक गर्भ निरोधक गोली है। फुलवारीशरीफ सदर अस्पताल की महिला चिकित्सक डॉक्टर किरण सिंह कहती हैं कि इस गोली का सेवन इच्छुक महिला लाभार्थियों को डॉक्टर की सलाह के बाद प्रथम तीन माह में दो गोली व तीन महीने बाद सप्ताह में एक गोली दी जाती है। यह एनमिक व कम खून वाली महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
परिवार नियोजन महिलाओं के जिम्मे
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 की रिपोर्ट बता रही कि महिलाओं पर परिवार नियोजन की जिम्मेदारी थोप कर पुरुषों ने किनारा कर लिया है। बिहार में पुरुष नसबंदी की दर 2005-06 में 0.6 प्रतिशत थी, जो 2015-16 में शून्य हो गई। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि महिलाएं खुद ही नहीं चाहतीं कि उनका लाइफ पार्टनर नसबंदी कराए।
इस बारे में जब हमने कुछ शादीशुदा पुरुषों से बात की तो उनका कहना था कि उनके घर की महिलाएं ही नहीं चाहतीं कि वो नसबंदी कराएं। इसके पीछे की वजह उन्होंने ये बताई कि इससे कमजोरी आ जाती है और उनकी मर्दानगी कम हो जाती है।
जबकि हकीकत कुछ और ही है। पटना के पीएमसीएच में महिला एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अनुपमा ने बताया कि ये सरासर गलतफहमी है कि नसबंदी कराने से मर्दानगी में कमी आ जाती है या पुरुष कमजोर हो जाता है। उन्होंने बताया कि पुरुष नसबंदी को लेकर जागरूकता फैलाने की जरूरत है।
गर्भनिरोधक का व्यापक हो प्रचार-प्रसार
यूनिसेफ बिहार के स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉक्टर सैय्यद हुबे अली ने बताया कि गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल की दर में दस फीसद की गिरावट आई है। यह 34.1 प्रतिशत से घट कर 24.1 प्रतिशत रह गई। कंडोम का इस्तेमाल दो से घट कर एक प्रतिशत पर आ गया। महिला बंध्याकरण 23.8 प्रतिशत से गिरकर 20.7 प्रतिशत पर पहुंच गया है। उन्होंने बताया कि गर्भनिरोधक के बारे में भ्रांतियां खत्म कर इसका प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। तभी जनसंख्या पर लगाम लगाई जा सकती है।
डॉक्टर ने बताया कि परिवार नियोजन एक जटिल सामाजिक विषय है। हमें विशेष तौर पर बिहार को समझने की कोशिश करनी होगी कि यहां इसकी पहुंच कैसे बढ़ाई जाए। हमें सामाजिक परिस्थितियों को बेहतर तरीके से समझ कर इसकी ज्यादा सघन तैयारी करनी होगी।
उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य संबंधित किसी भी योजना की सफलता के लिए महिलाओं का शिक्षित होना जरूरी है। महिला शिक्षित होगी तो परिवार नियोजन, बच्चों का टीकाकरण, बच्चों में कुपोषण जैसी समस्या नहीं आएगी।
शहरी लड़कियों को है जानकारी, ग्रामीण तबके में अभाव
पीएमसीएच में महिला और प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अनुपमा ने बताया कि बिहार में परिवार नियोजन सेवा में भी जरूरी विकास नहीं हो सका है। अब तक सिर्फ 23 फीसदी विवाहित महिलाओं तक ही आधुनिक परिवार नियोजन साधन पहुंच पा रहे हैं। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर इसकी पहुंच दोगुना से ज्यादा है। राज्य में 20 से 24 साल की 42 फीसदी महिलाओं की शादी 18 साल से पहले हुई है। यह आंकड़ा एनएफएचएस-3 के दौरान 69 फीसदी था। अब भी सात में एक ही महिला गर्भावस्था के दौरान जांच के लिए चार बार स्वास्थ्य केंद्र पर पहुंचती हैं। अभी 36 फीसदी प्रसव घर में ही होता है।
शहरी लड़कियों, युवतियों को गर्भनिरोधक के बारे में जानकारी है और उसे लेकर वो सजग रहती हैं लेकिन ग्रामीण तबके की लड़कियों को इस बारे में पता नहीं होता। ग्रामीण इलाकों में शादी के तुरंत बाद ही युवतियों पर बच्चे को जन्म देने का दबाव परिवार की ओर से बनाया जाने लगता है। ऐसे में उनके पास खुद से बच्चे प्लान करने का ऑप्शन ही नहीं बचता और वो गर्भवती हो जाती हैं।
खतरनाक है असुरक्षित गर्भपात
दुनिया भर में हर साल लगभग 5.6 करोड़ गर्भपात असुरक्षित तरीके से होते हैं, जिससे प्रति वर्ष कम से कम 22,800 महिलाओं की मौत हो जाती है। यह जानकारी पिछले एक दशक में वैश्विक गर्भपात ट्रेंड्स पर गुटमेचर इंस्टीट्यूट की सबसे व्यापक रिपोर्ट में दी गई है। गर्भपात पर प्रतिबंध लगाने से महिलाओं को गर्भावस्था समाप्त करने से नहीं रोका जा सकता, बल्कि ऐसी स्थिति में वे अवांछित गर्भ को गिराने के लिए खतरनाक तरीकों का सहारा ले सकती हैं, जिससे जोखिम बढ़ जाता है।
यूनिसेफ के डॉक्टर होदा ने कहा कि गर्भपात की उच्च दर के प्रमुख कारणों में एक यह भी है कि अनेक क्षेत्रों में लोगों को अच्छे गर्भनिरोधक नहीं मिल पाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अनचाहे गर्भ के मामले बढऩे लगते हैं। गर्भपात की गोलियां प्रभावी हो सकती हैं, बशर्ते उन्हें उचित तरीके से लिया जाए. हालांकि, कई महिलाओं को उन्हें लेने का सही तरीका मालूम नहीं होता है, जो उनके स्वास्थ्य के लिए घातक भी हो सकता है। केवल कुछ प्रतिशत महिलाओं की पहुंच ही गर्भपात की गोलियों तक है। ऐसे में बाकी महिलाओं को भी इस बारे में सही जानकारी देने की जरूरत है ताकि वे इन गोलियों का उपयोग कर सकें और किसी जटिलता की स्थिति में अच्छे स्वास्थ्य देखभाल केंद्र तक पहुंच सकें।
डॉक्टर होदा ने बताया कि गर्भ निरोधकों और गर्भपात के बारे में शिक्षा व जागरूकता की जरूरत है। स्थिति का आंकलन करने के लिए, समय की आवश्यकता है कि सुरक्षित गर्भपात को वास्तविकता के नजरिए से देखा जाए और पूरे देश में इसकी सुविधा उपलब्ध हो। यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है कि समाज के सभी स्तरों की महिलाओं को सही जानकारी प्राप्त हो।
प्रचार-प्रसार का अभाव
परिवार नियोजन के साधन अपनाने को लेकर स्वास्थ्य विभाग प्रचार प्रसार में भी पीछे दिख रहा है। पिछले एक वर्ष की अवधि में प्रचार-प्रसार के मद में स्वास्थ्य विभाग ने कागज पर चाहे जो भी राशि खर्च की हो, लेकिन धरातल पर एक भी कार्यक्रम आयोजित नहीं किया गया। हाल यह रहा कि इस अवधि में किसी भी स्थान पर न ही बैनर व पोस्टर लगे और ना ही विभाग ने नुक्कड़ नाटकों का आयोजन कर लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया।