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बेरोजगारी का बढ़ रहा बोझ, आरक्षण के अंदर भी हो कोटे की व्यवस्था

बदलते समय के साथ आरक्षण सिर्फ भावनात्मक मुद्दा बन गया। नियोजन और नौकरी का समाधान नहीं है। पीयू के प्रो. आरएन शर्मा ने जागरण के खास कार्यक्रम में कई महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Tue, 15 Jan 2019 06:05 PM (IST)Updated: Tue, 15 Jan 2019 06:05 PM (IST)
बेरोजगारी का बढ़ रहा बोझ, आरक्षण के अंदर भी हो कोटे की व्यवस्था
बेरोजगारी का बढ़ रहा बोझ, आरक्षण के अंदर भी हो कोटे की व्यवस्था

जितेन्द्र कुमार, पटना। आरक्षण देश के बड़े मुद्दे का छोटा पक्ष है। सैद्धांतिक और व्यावहारिक पक्ष में किसी स्तर पर ‘सरवाइवल ऑफ फिटेस्ट’ से मैच नहीं करता है। मॉडर्न सोसाइटी में जात और जन्म नहीं बल्कि गरीबी का दंश सबसे बड़ा मुद्दा है। परंपरागत समाज में जाति, वर्ग और पिछड़ेपन को देखते हुए आरक्षण की व्यवस्था समानता की मंशा से संविधान में शामिल की गई थी। बदलते समय के साथ यह सिर्फ भावनात्मक मुद्दा बन गया। नियोजन और नौकरी का समाधान नहीं है। पटना विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो. आरएन शर्मा ने दैनिक जागरण कार्यालय में ‘जरूरत नौकरियां बढ़ाने की या आर्थिक आरक्षण जरूरी’ विषय पर कई महत्वपूर्ण बातें कहीं।

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मॉडर्न सोसाइटी मेरिट और क्वालिटी की

प्राचीन समाज में जाति, वर्ग, गोरा-काला जैसे विभेद रहे हैं। मॉडर्न सोसाइटी मेरिट और क्वालिटी की है। आजादी के बाद संविधान में समाज के वंचित वर्ग को आगे बढ़ाने की मंशा से आरक्षण की व्यवस्था दस वर्षो के लिए तय की गई थी। तय था कि जरूरत के अनुसार दस वर्षो के लिए इसे बढ़ाया जा सकता है। आजादी के 70 सालों में स्थिति यथावत है। जो वंचित वर्ग था वह आज भी वंचित रह गया। आज जरूरत रिजर्वेशन में आरक्षण की व्यवस्था करने की है ताकि नीचे के लोगों तक इसका लाभ मिल सके।

आदमी का काम छीन रही मशीन

आबादी और बेरोजगारी का बोझ तेजी से बढ़ रहा है। आदमी का काम मशीन और कंप्यूटर छीन रहा है। बोकारो स्टील प्लांट की जब स्थापना हुई थी तब 56 से 60 हजार कर्मचारियों की जरूरत पड़ी थी। आज 11 हजार कर्मचारी इस तरह के प्लांट को बना देते हैं। किसी भी सरकार के लिए नियोजन बड़ी समस्या है। जरूरत कौशल विकास, बेहतर शिक्षा, छात्रवृत्ति और रोजगार के लिए अवसर देने का है। यदि नौजवानों को दक्षता सिखा दें तो रोजगार खड़ा कर सकते हैं।

सन् 1980-81 तक गुजरात के लोगों में यूपीएससी के प्रति आकर्षण नहीं था। तब मात्र 17 आवेदन आए थे। पता चला कि उन दिनों एक आइएएस का वेतन दस हजार के करीब था। गुजरात के लोगों की सोच थी कि इससे अधिक पैसे तो उन्हें अपने कारोबार से आ जाता है। गुजरात आज कारोबार के कारण विकसित राज्य है और बिहार में मेधा रहते हुए भी बीमारू कहलाता है। प्रधानमंत्री मुद्रा लोन से युवा चाहें तो कारोबार कर सकते हैं। यहां नौकरी के लिए परेशान होते हैं।

इंजीनियरिंग की डिग्री ले गैंगमैन बन रहे युवा

पटना विश्वविद्यालय से एमए की डिग्री हासिल कर एक लड़की बिहार पुलिस में नौकरी करने गई है। इंजीनियरिंग और एमबीए की डिग्री लेकर नौजवान रेलवे के गैंगमैन में जा रहे हैं। शहर में एक दक्ष इलेक्ट्रीशियन और प्लंबर खोजने पर नहीं मिलता है। आर्थिक आधार पर आरक्षण का लाभ 30 फीसद मार्क्‍स वालों को नहीं बल्कि उन्हें मिलेगा जो अगर कटऑफ मार्क्‍स 50 है, और वे 49 से 40-45 अंक पा रहे हैं। हालांकि अभी यह सुप्रीम कोर्ट पर निर्भर करेगा कि 50 फीसद से अधिक आरक्षण को मान्य करता है या नहीं। इससे वैसे लोगों की उम्मीद जगी है जिनके साथ पढ़कर 30 अंक पाने वाले नौकरी पा गए और 48 अंक लाकर डिप्रेशन में जी रहे हैं। गरीबी को आरक्षण में अवसर की शुरुआत के तौर पर एक कदम के रूप में देखा जा सकता है।


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